Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

UP Election 2022 : अखिलेश और चंद्रशेखर के बीच गठबंधन पर क्यों नहीं बन पाई बात? पढ़िए इसके पीछे की पूरी कहानी

अखिलेश यादव ने तेजी से ओबीसी और दलित वर्ग के बड़े नेताओं को समाजवादी पार्टी से जोड़ा। माना जा रहा था कि वह बड़े दलित नेता के रूप में पहचान बना चुके चंद्रशेखर आजाद को भी गठबंधन में शामिल करेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सीट बंटवारे को लेकर दोनों नेताओं में बात नहीं बनी। पढ़िए इसके पीछे की पूरी कहानी?

गठबंधन से किसका फायदा होता?
चंद्रशेखर आजाद और उनकी आजाद समाज पार्टी का उत्तर प्रदेश के दलित युवाओं के बीच काफी क्रेज है। खासतौर पर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, मेरठ, अलीगढ़, बुलंदशहर, हाथरस, बिजनौर और आगरा जिलों आजाद के लाखों समर्थक हैं। आजाद खुद सहारनपुर से हैं जहां 20 फीसदी से अधिक दलित वोट हैं। सहारनपुर जिले में सात विधानसभा सीटें हैं जिन पर चंद्रशेखर का सहयोग निर्णायक साबित हो सकता है। उत्तर प्रदेश में करीब बीस प्रतिशत दलित वोट हैं। ये वोटबैंक मायावती की बहुजन समाज पार्टी के साथ रहा है। पिछले कुछ सालों में चंद्रशेखर ने मायावती के इस दलित वोटबैंक में सेंध लगा ली।

ऐसे में अगर समाजवादी पार्टी का गठबंधन चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी के साथ होता तो यूपी में बड़े पैमाने पर दलित वोट सपा के साथ आ सकता था। जाट-दलितों का एक गठजोड़ होने से सपा को चुनाव में काफी फायदा होता।

गठबंधन न होने पर चंद्रशेखर ने क्या कहा?
चंद्रशेखर आजाद ने शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा, ‘एक महीने से मेरी लगातार अखिलेश से बात हो रही है। अखिलेश तय कर चुके हैं वे दलितों से गठबंधन नहीं करेंगे। अखिलेश ने मुझे अपमानित किया है। मुझे लगता है कि वे दलितों की लीडरशिप खड़े नहीं होने देना चाहते। मैंने अखिलेश पर जिम्मेदारी छोड़ी थी कि वे गठबंधन में शामिल करें या नहीं। लेकिन उन्होंने आज तक जवाब नहीं दिया।

वो प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर साथ नहीं आ रहे थे। जिस तरह से बीजेपी दलितों के यहां खाना खाकर खेल कर रही हैं। वैसे ही अखिलेश यादव कर रहे हैं। हम चाहते थे कि अखिलेश यादव हमारे मुद्दे रखें लेकिन वह इससे बच रहे थे। इसलिए हमने तय किया है कि हम गठबंधन में नहीं जा रहे हैं।

मुलायम सिंह यादव को कांशीराम ने सीएम बनाया लेकिन उन्होंने धोखा दिया। हम नहीं चाहते थे कि इस बार भी दलित समाज के साथ ऐसा हो। बीजेपी को रोकने के लिए मैंने अपना स्वाभिमान दांव पर लगा दिया।’

गठबंधन में शामिल ओपी राजभर क्या बोले?
चंद्रशेखर के दावों से उलट सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और सपा के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ रहे ओम प्रकाश राजभर ने बयान दिया। राजभर ने कहा, ‘चंद्रशेखर को गठबंधन के तहत बहुत कुछ ऑफर किया गया। उन्हें मंत्री पद, तीन सीट और एक एमएलसी पद दे रहे थे, लेकिन उन्होंने वादा तोड़ दिया।’

अखिलेश यादव ने क्या जवाब दिया?
चंद्रशेखर के आरोपों का सपा मुखिया अखिलेश यादव ने खुद जवाब दिया। कहा, ‘मैंने चंद्रशेखर को दो सीटें देने की बात कही थी। उसमें एक सीट आरएलडी के पास थी। इसके लिए मैंने आरएलडी नेताओं से बात की थी। उन्होंने मेरी बात मान ली और सहारनपुर की सुरक्षित रामपुर मनिहारान सीट छोड़ दी। इसके बाद ये सीट मैंने चंद्रशेखर को दे दी। साथ-साथ गाजियाबाद की सीट घोषित नहीं थी, उसे भी चंद्रशेखर को दे दिया। बाद में चंद्रशेखर ने कहा कि मैं चुनाव नहीं लड़ सकता है। संगठन के लोग नाराज हैं। वह इतनी कम सीटों पर नहीं मान रहे हैं। इसके बाद मैंने कहा कि हमारे पास इतनी ही सीटें हैं। इसके बाद कोई सीट नहीं है। फिर चंद्रशेखर वापस चले गए।’

अखिलेश यादव ने तेजी से ओबीसी और दलित वर्ग के बड़े नेताओं को समाजवादी पार्टी से जोड़ा। माना जा रहा था कि वह बड़े दलित नेता के रूप में पहचान बना चुके चंद्रशेखर आजाद को भी गठबंधन में शामिल करेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सीट बंटवारे को लेकर दोनों नेताओं में बात नहीं बनी। पढ़िए इसके पीछे की पूरी कहानी?

चंद्रशेखर आजाद और उनकी आजाद समाज पार्टी का उत्तर प्रदेश के दलित युवाओं के बीच काफी क्रेज है। खासतौर पर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, मेरठ, अलीगढ़, बुलंदशहर, हाथरस, बिजनौर और आगरा जिलों आजाद के लाखों समर्थक हैं। आजाद खुद सहारनपुर से हैं जहां 20 फीसदी से अधिक दलित वोट हैं। सहारनपुर जिले में सात विधानसभा सीटें हैं जिन पर चंद्रशेखर का सहयोग निर्णायक साबित हो सकता है। उत्तर प्रदेश में करीब बीस प्रतिशत दलित वोट हैं। ये वोटबैंक मायावती की बहुजन समाज पार्टी के साथ रहा है। पिछले कुछ सालों में चंद्रशेखर ने मायावती के इस दलित वोटबैंक में सेंध लगा ली।

ऐसे में अगर समाजवादी पार्टी का गठबंधन चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी के साथ होता तो यूपी में बड़े पैमाने पर दलित वोट सपा के साथ आ सकता था। जाट-दलितों का एक गठजोड़ होने से सपा को चुनाव में काफी फायदा होता।

चंद्रशेखर आजाद ने शनिवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा, ‘एक महीने से मेरी लगातार अखिलेश से बात हो रही है। अखिलेश तय कर चुके हैं वे दलितों से गठबंधन नहीं करेंगे। अखिलेश ने मुझे अपमानित किया है। मुझे लगता है कि वे दलितों की लीडरशिप खड़े नहीं होने देना चाहते। मैंने अखिलेश पर जिम्मेदारी छोड़ी थी कि वे गठबंधन में शामिल करें या नहीं। लेकिन उन्होंने आज तक जवाब नहीं दिया।

वो प्रमोशन में आरक्षण के मुद्दे पर साथ नहीं आ रहे थे। जिस तरह से बीजेपी दलितों के यहां खाना खाकर खेल कर रही हैं। वैसे ही अखिलेश यादव कर रहे हैं। हम चाहते थे कि अखिलेश यादव हमारे मुद्दे रखें लेकिन वह इससे बच रहे थे। इसलिए हमने तय किया है कि हम गठबंधन में नहीं जा रहे हैं।

मुलायम सिंह यादव को कांशीराम ने सीएम बनाया लेकिन उन्होंने धोखा दिया। हम नहीं चाहते थे कि इस बार भी दलित समाज के साथ ऐसा हो। बीजेपी को रोकने के लिए मैंने अपना स्वाभिमान दांव पर लगा दिया।’

चंद्रशेखर के दावों से उलट सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष और सपा के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ रहे ओम प्रकाश राजभर ने बयान दिया। राजभर ने कहा, ‘चंद्रशेखर को गठबंधन के तहत बहुत कुछ ऑफर किया गया। उन्हें मंत्री पद, तीन सीट और एक एमएलसी पद दे रहे थे, लेकिन उन्होंने वादा तोड़ दिया।’

चंद्रशेखर के आरोपों का सपा मुखिया अखिलेश यादव ने खुद जवाब दिया। कहा, ‘मैंने चंद्रशेखर को दो सीटें देने की बात कही थी। उसमें एक सीट आरएलडी के पास थी। इसके लिए मैंने आरएलडी नेताओं से बात की थी। उन्होंने मेरी बात मान ली और सहारनपुर की सुरक्षित रामपुर मनिहारान सीट छोड़ दी। इसके बाद ये सीट मैंने चंद्रशेखर को दे दी। साथ-साथ गाजियाबाद की सीट घोषित नहीं थी, उसे भी चंद्रशेखर को दे दिया। बाद में चंद्रशेखर ने कहा कि मैं चुनाव नहीं लड़ सकता है। संगठन के लोग नाराज हैं। वह इतनी कम सीटों पर नहीं मान रहे हैं। इसके बाद मैंने कहा कि हमारे पास इतनी ही सीटें हैं। इसके बाद कोई सीट नहीं है। फिर चंद्रशेखर वापस चले गए।’