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UP Elections 2022: कांग्रेस से बीजेपी में शामिल हुए दलजीत सिंह का पार्टी में शुरू हुआ विरोध

अनिल सिंह, बांदा
उत्तर प्रदेश के बांदा के तिंदवारी विधानसभा वीआईपी सीट कहलाती है। इस विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने दलजीत सिंह ने पाला बदलकर शनिवार को बीजेपी का दामन थाम लिया। अब दलजीत सिंह खिलाफ विरोघ के स्वर फूटने लगे हैं।

एक गुट कर रहा है विरोध
पिछले महीने दलजीत के आवास पर आयकर विभाग ने छापा मारा था, उस समय उन्होंने कहा था कि वह कांग्रेस से चुनाव नहीं लड़ेंगे, भले ही उन्हें निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़े। इसके बाद उन्होंने अपनी पसंद में समाजवादी पार्टी और बीजेपी को बताया था। इस बीच जब बीजेपी के नेताओं को इस बात की भनक लगी कि दलजीत सिंह बीजेपी की सदस्यता लेकर तिंदवारी सीट से चुनाव लड़ सकते हैं तो एक गुट ने इसका अंदर ही अंदर विरोध करना शुरू कर दिया। इस गुट ने दलजीत के खिलाफ मुकदमा और बालू माफिया का ठप्पा लगाकर उनके रास्ते पर अवरोध उत्पन्न करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और शनिवार को अंततः दलजीत सिंह ने बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली। इधर बीजेपी के विधायक रहे बृजेश प्रजापति के एसपी में जाने से दलजीत के बीजेपी में शामिल होने की राह आसान हो गई। बीजेपी को इस सीट पर जिताऊ प्रत्याशी की तलाश थी, जबकि बीजेपी में इस समय कोई ऐसा उम्मीदवार नहीं था, जो बीजेपी की सीट को बरकरार रख सके। संभवत इसी कारण से दलजीत सिंह को बीजेपी में शामिल कर उन्हें इसी सीट से चुनाव लड़ाने की सहमति व्यक्त की गई।

विरोधियों ने उठाए सवाल
दलजीत सिंह के बीजेपी में शामिल होने से नाराज गुट के एक नेता का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी के इतने सालों के संघर्ष के बाद एक महत्वपूर्ण विधानसभा जहां से एक मुख्यमंत्री व एक प्रधानमंत्री चुना गया था, उस स्थान पर भारतीय जनता पार्टी के पास एक ऐसा जिताऊ प्रत्याशी नहीं है, जो अपनी पार्टी को विजय दिला सके या ये मान लिया जाए कि संगठन ने अपने मूल कार्यकर्ताओं पर विश्वास करना छोड़ दिया है और आयातित नेताओं पर ज्यादा विश्वास कर रहा है।

जिला पंचायत से शुरू की राजनीति
वर्ष 2005 से राजनीति की शुरुआत करने वाले दलजीत सिंह पहली बार जिला पंचायत सदस्य चुने गए थे। 2007 में विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़े थे। पहली बार चुनाव लड़ने के बावजूद उन्होंने समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता विशंभर प्रसाद निषाद को कड़ी टक्कर दी थी। उस समय 26,512 मत हासिल करके दूसरे स्थान पर रहे, जबकि राष्ट्रीय दल कांग्रेस-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी उनसे पीछे रहे।

निर्दलीय चुनाव लड़कर का लगभग 31 फीसदी मत हासिल करने के कारण ही उनकी अच्छी छवि बनी और 2012 में उन्हें कांग्रेस ने टिकट देकर इसी विधानसभा क्षेत्र को चुनाव मैदान में उतारा था। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री विशंभर प्रसाद निषाद को 15000 मतों से हरा दिया था। उन्हें उस समय 61,184 मत मिले थे।

हार के बाद कांग्रेस से मोहभंग
2017 में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में गठबंधन हो गया, जिससे संयुक्त प्रत्याशी के रूप में दलजीत सिंह चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन मोदी लहर के चलते इन्हें पराजित होना पड़ा। बीजेपी के बृजेश प्रजापति ने उन्हें हरा दिया। इस चुनाव में उन्हें 22.70 फीसदी मत मिले थे। 2017 में चुनाव हारने के बाद उनका कांग्रेस से मोहभंग होता चला गया। पहले उनके भाई और भतीजे बीजेपी में शामिल हुए। इसके बाद इन्हें बीजेपी में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही थीं।

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