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Editorial :- प्रॉस्पेक्ट थ्योरी : अजीत पवार और उद्धव ठाकरे तथा शरद पवार

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26 November 2019

महाराष्ट्र की वर्तमान गतिविधियों के संदर्भ में अजीत पवार और शरद पवार तथा उद्धव ठाकरे ने जो कदम उठाये हैं उन्हें हम प्रॉस्पेक्ट थ्योरी (सिद्धांत ) के संदर्भ में समझना चाहिये।

आज तेजस्वी यादव का बड़ा बयान आया है: क्चछ्वक्क से समझौता कर लेता तो आज मुख्यमंत्री नीतीश नहीं, राजद का कोई नेता होता।

 शिवसेना के नेता उद्धव ठाकरे को भाजपा के साथ पुन: सरकार बनाना चाहिये था कि नहीं?

अजित पवार ने जो जुआ खेला है जो रिस्क ली है वह उचित है या नहीं?

इन घटनाक्रमों को समझने के लिये हमें अमोस टावस्की और डैनियल काह्नमैन के प्रॉस्पेक्ट सिद्धांत पर एक नजर डालनी चाहिये।

यह सिद्धांत तीन मूल सिद्धांतों पर आधारित है: खोने का विस्मरण, असममित जोखिम प्राथमिकताएं और संभावनाओं का गलत अनुमान।.

–              पहला सिद्धांत इस तथ्य के साथ करना है कि एक नुकसान की पीड़ा एक लाभ के लिए खुशी से अधिक होती है.

–              दूसरा इस तथ्य पर आधारित है कि लोग जब जीत रहे होते हैं तो जुआ नहीं पसंद करते हैं, लेकिन जब वे हार रहे होते हैं तो अधिक जोखिम उठाते हैं.

–              और अंतिम एक विचार पर आधारित है कि कुछ घटनाएँ वास्तव में होने की तुलना में अधिक होने की संभावना

जब कोई व्यक्ति, पार्टी या संगठन लाभ की स्थिति में होता है तो जुआ नही खेलता है, अर्थात रिस्क नहीं लेता है। परंतु जब वह नुकसान की स्थिति में होता है तो रिस्क ले सकता है जोखिम उठा सकता है अर्थात जुआ खेल सकता है। यही यह सिद्धांत है।

शिवसेना अर्थात उद्धव ठाकरे लाभ की स्थिति में थे। उन्हें जुआ नहीं खेलना चाहिये था अर्थात रिस्क नहीं लेनी चाहिये थी।

ठीक इसके विपरीत अजित पवार लाभ की स्थिति में नहीं थे। उन्होंने जोखिम उठाई और उपमुख्यमंत्री बन गये।

शरद पवार असमंजस की स्थिति में रह गये। वे अपनी पार्टी को भी असमंजस की स्थिति में रखे रहे। उन्होंने जोखिम उठाने का साहस नहीं दिखाया। ऐसी स्थिति मेंं उन्हें मलाल तो होगा। जिस प्रकार से अभी तेजस्वी यादव को मलाल हो रहा है कि यदि वह बीजेपी से समझौता कर लेता तो आज वह भी मुख्यमंत्री बनता।