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Ground Report: उत्तर प्रदेश का एक गांव जहां 3000 की आबादी के बीच है सिर्फ एक हैंडपंप

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आगरा : सुविधाएं किसको पसंद नहीं, बल्कि ये कहना गलत नहीं होगा कि आज का इंसान अपनी सुविधाओं को लेकर आज से बेहतर कल चाहता है। लेकिन जरा अपने उस दिन के बारे में सोचिए जब आप सुबह सोकर उठे थे और कुछ देर बाद आपको मालुम चला था कि घर में पानी नहीं हैं… इसमें कोई शक नहीं कि ऐसी स्थिति से कोई भी व्यक्ति या परिवार कम से कम सुबह-सुबह तो बिल्कुल भी दो-चार नहीं होना चाहेगा। लेकिन जरा सोचिए क्या हो जब आपके लिए पानी रोज की समस्या बन जाए…

ऐसे में विकास के बड़े वादों के बीच जानिए आगरा के बहरावती गांव का हाल, जहां गांव की 2500 से 3000 की आबादी को पीने के पानी के लिए महज एक हैंडपंप है।

आगरा के बहरावती गांव की मंजू देवी गांव से 2 किलोमीटर दूर लगे हैंडपंप पर पानी भरते-भरते अचानक एक बगल जाकर खड़ी हो गईं। इसका कारण पूछने पर मंजू अपने अंदाज में कहती हैं,’का करें…हैरान होए गए..हाथन में दर्द होए गओ’। इस दौरान नल पर मंजू की जगह एक अन्य महिला ने ले ली। ये सभी महिलाएं अपने घरों से दूर गांव के इकलौते नल पर बड़े-बड़े बर्तन लेकर पानी भरने आई हैं।

इसे देश का दुर्भाग्य ही कहेंगे जहां आजादी के 75 वर्ष बाद भी एक गांव की जनता पानी की आपूर्ती के लिए कोसों दूर लगे एक नल के भरोसे है। आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस ‘ताज नगरी आगरा’ को देश की सरकार स्मार्ट सिटी बनाने की बात करती है। उस आगरा शहर से महज 20 से 22 किलोमीटर की दूरी पर बसे बहरावती गांव में पीने का साफ पानी पीढियों से मुद्दा बना हुआ है।

आगरा के फतेहपुर सीकरी विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले बहरावती गांव में विकास के नाम पर केवल एक हैंडपंप है, जो गांव से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर है। गांव की आबादी करीब 2500 से 3000 के आसपास है। जब एनबीटी ऑनलाइन की टीम इस गांव में पहुंची तो शाम हो चली थी। गांव की महिलाएं दो या तीन का समूह बनाकर बड़े-बड़े बर्तन उठाकर पानी लेने निकल रही थीं। मीडिया की गाड़ी देख गांव के मर्द, बूढ़े, जवान और बच्चों ने हमारी कार को चारों तरफ से घेर लिया। इस दौरान हमने बहरावती गांव के कई लोगों से बात की। बातचीत में मालुम चला कि गांव में सुविधाएं तो बहुत दूर की बात है यहां किसी की मौत हो जाने पर शमशान तक नहीं है।

गांव की ही मीना देवी (66) कहती हैं कि वह भी उसी हैंडपंप से पानी लेने जाती हैं। मीना देवी कहती हैं गांव के सभी लोग वहीं जाते हैं। वहीं गर्मियों में परेशनी के सवाल पर मीना देवी कहती हैं, ‘अब जब पीनौं है तो लानें तो है ही ऐ… वो कहती हैं पानी लेने बर्तन लेकर कभी हम चले जाते हैं तो कभी बच्चे मोटरसाइकिल पर रखलाते हैं।

इसके बाद गांव के लोगों ने हमें वो रास्ता पैदल चलकर देखने को कहा जहां से गांव की महिलाएं करीब 20-20 लीटर की बाल्टी सिर पर रखकर और हांथ में स्टील का कलस लेकर पानी लेने जाती हैं। कुछ देर उस रास्ते पर चलने के बाद हमें नल बहुत दूर मालूम हुआ इसलिए हमने अपनी कार का सहारा ले लिया। अगले कुछ मिनट में हम गांव के उस इकलौते हैंडपंप पर खड़े थे। हमने देखा कि इकलौते होने के कारण वहां पानी भरने के लिए गांव की महिलाओं का जमघट लगा है। महिलाएं हमारे सामने तो सलीके से अपनी बारी का इंतजार करती दिखीं। लेकिन जब हमने उन महिलाओं में से एक से बात की तो उन्होंने बताया कि गर्मियों में इस नल पर खूब झगड़ा होता है। गर्मी के कारण पानी की खपत बढ़ जाती है। पानी की किल्लत से परेशान लोग दिन में कई-कई बार इस नल के चक्कर लगाते हैं। ऐसे में धूप से तिलमिलाए लोगों की गुस्सा अक्सर एक दूसरे पर फूट पड़ती है।

हैंडपंप पर पानी भरने आयी एक महिला ने बताया कि ये नल उनके घर से 1 से डेढ किलोमीटर या उससे भी दूर पढ़ता है। महिला ने बताया वो इन दिनों भी दिन में दो से तीन बार या कभी-कभी इससे ज्यादा बार भी पानी लेने इस हैंडपंप पर आती हैं। पानी भरने आयीं ये महिलाएं चुनावों में अपने मताधिकार का प्रयोग करती हैं। लेकिन हमने बातचीत में पाया कि कुछ महिलाओं को अपने प्रत्याशियों के और उनके चुनाव चिन्ह के बारे में कोई जानकारी नहीं हैं। वहीं कुछ महिलाओं ने ‘कमल का फूल’ कह… बीजेपी की तरफ अपने झुकाव को भी दर्शाया। दूसरी और हमारे सवाल- अपने जनप्रतिनिधियों के सामने आपने गांव की समस्या रखने की बात पर भी महिलाओं ने संतोषजनक उत्तर नहीं दिए।

गांव के प्रधान ने क्या कहा
इन सभी समस्याओं पर जब हमने गांव के प्रधान से बात की तो उन्होंने अपने नवीनतम होने की बात कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया। वहीं उन्होंने कहा कि ये मुद्दे काफी पुराने हैं। गांव के प्रधान ने कहा कि फिलहाल यही है कि लोग इसी नल से पीने का पानी ले जाते हैं.. उन्होंने भविष्य का हवाला देकर समस्याओं को कम करने की दिशा में कहा कि यहां बड़ी टंकी लगे ऊपर से बजट आए लोगों के घर-घर में नल लगें…प्रधान ने कहा कि मैं इस समस्या को आगे उठाउंगा और उठा भी रहा हूं। उन्होंने कहा नेता आते हैं कह जाते हैं पर कोई सुनवाई नहीं होती है…

गांव में शमशान घाट भी है अहम मुद्दा
गावं के बड़े-बुर्जुगों ने पानी के साथ-साथ शमशान घाट को भी गांव का ज्वलंत मुद्दा बताया। गांव के ही एक व्यक्ति ने इस पर बात करते हुए कहा कि गांव में शमशान घाट के लिए कहीं भी जगह नहीं है। वर्तमान में गांव की एक जमीन के बहुत छोटे से हिस्से में शमशान है। लेकिन वहां टीन शैड नहीं है जिससे गांव के लोगों को बरसात के मौसम में किसी मृत व्यक्ति का अंतिम संस्कार करने में बढ़ी कठनाई होती है। वहीं गांव के ही एक अन्य व्यक्ति ने बताया कि वर्तमान में गांव में जहां शमशान घाट है वहां की जमीन पर भी कुछ लोगों ने कब्जा कर रखा है, जो एक बड़ी समस्या है।

अब सूरज ठलने को था, गांव की हवा अब हर पल ठंडी और ठंडी होती जा रही थी। इसलिए हमने अंधेरा गहराने से पहले चलने का प्लान बनाया। हम वापस लौट रहे थे कि गांव कि रास्ते में एक छोटे से चौक पर हमें कई लोग अलाव सेंकते नजर आ गए…हमने उनसे विधानसभा चुनावों के मद्देनजर जब उनकी नस टटोली तो सभी ने बसपा पार्टी के प्रति अपना लगाव जताया। जातीय समीकरण पूछने पर हमें बताया गया कि गांव में पहले स्थान पर जाटव विरादरी व दूसरे पर गौड़ विरादरी के लोग हैं।