29-1-2022
पीएम मोदी ने इस माध्यम से आजादी के अमृत महोत्सव को एक वैश्विक आयाम देने का प्रयास किया है। जल्द ही भारत अपनी स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ मनाएगा, जिसके लिए पीएम मोदी कोई कसर नहीं छोड़ेंगे, और ऐसे पत्र उसी का एक महत्वपूर्ण भाग है। लेकिन, एक और बात है, जो बहुत लोग नहीं समझ पाए, और जिसके पीछे पीएम मोदी की सूझ-बूझ स्पष्ट झलकती है।
ऐसे में ऐसे व्यक्तियों का समर्थन जुटाना, जिनका भारत से जुड़ाव क्षणिक या कृत्रिम न हो, अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है। जिन लोगों से पीएम मोदी ने वार्तालाप करने का प्रयास किया है, उससे इतना स्पष्ट है कि वह अपनी एक वैकल्पिक टास्क फोर्स तैयार कर रहे हैं, जो वामपंथियों को उन्ही के अस्त्र से, उन्ही के गढ़ में पराजित कर सके। गड साद और एशले रिंडसबर्ग हो, या फिर जॉन्टी रोड्स एवं केविन पीटरसन, ये ऐसे लोग हैं, जिनकी फैन फॉलोइंग लाखों में है, और यदि समय पर इनकी आवश्यकता पड़ी, तो इनका समर्थन भी बहुत मायने रखेगा। इसका संकेत पीएम मोदी ने तभी दे दिया था जब उन्होंने विश्व आर्थिक फोरम के सम्मेलन में भारत की ओर वैश्विक ताकतों द्वारा उछले जा रहे कीचड़ की ओर बातों ही बातों में संकेत दिया था।
लेकिन पीएम मोदी की नीति ऐसी नहीं है। वे भली-भांति जानते हैं कि लोहा ही लोहे को काटता है। राजनीति में दो प्रमुख शक्तियां होती है हार्ड पावर और सॉफ्ट पावर। हार्ड पावर का स्पष्ट अर्थ सैन्य शक्ति और अर्थ से है। परंतु सॉफ्ट पावर भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जिसपर बहुत ही कम देश ध्यान देते हैं, और भारत अब उन देशों में शामिल होना चाहता है, जिनके लिए उनका सॉफ्ट पावर भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी उनकी हार्ड पावर यानि सैन्यबल, और ऐसी दूर दृष्टि किसी और भारतीय प्रधानमंत्री ने शायद ही पूर्व में दिखाई होगी।
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