सार
राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) का ‘हैंडपंप’ ताजनगरी में दो दशक से सूखा पड़ा है। आखिरी बार 2002 में दो सीटें जीतीं थीं। पार्टी की लगातार हार तो हुई, मत प्रतिशत भी घटता गया। जाट बहुल फतेहपुर सीकरी में भी पार्टी अपना प्रदर्शन नहीं दोहरा पाई।
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विधानसभा चुनाव 2002 में आगरा के एत्मादपुर और फतेहपुर सीकरी में रालोद की तूती बोली थी। एत्मादपुर की सुरक्षित सीट से गंगाप्रसाद पुष्कर और फतेहपुर सीकरी से चौधरी बाबूलाल ने बाजी मारी थी। चुनाव आयोग की वेबसाइट के अनुसार 2007 में रालोद ने खेरागढ़, दयालबाग, फतेहपुरसीकरी और एत्मादपुर से प्रत्याशी उतारे। एक में भी जीत नसीब नहीं हुई।
रालोद ने 2012 के चुनाव में एत्मादपुर, फतेहपुर सीकरी, खेरागढ़ और फतेहाबाद से प्रत्याशी उतारे। जनता को फिर से पार्टी रास नहीं आई। 2017 में पार्टी की सबसे ज्यादा दुर्गति हुई, नौ में से आठ विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा। कोई भी प्रत्याशी सीधे मुकाबले में नहीं रहा, अधिकांश की जमानत जब्त हो गई।
रालोद से जीते बाबूलाल अब भगवा खेमे के प्रत्याशी
2002 में फतेहपुर सीकरी से हैंडपंप चलाने वाले चौधरी बाबूलाल तीन विधानसभा चुनाव में रालोद के प्रत्याशी रहे, इनमें से एक बार ही जीत मिली। चौथी बार फिर से बाबूलाल मैदान में हैं, इस बार वह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी हैं। 2014 आम चुनाव में वह भगवा खेमे में शामिल हुए और फतेहपुर सीकरी के सांसद बने।
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा से टिकट नहीं मिला, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उन पर फिर भरोसा जताया। अब उनका कांग्रेस के हेमंत चाहर, रालोद-सपा गठबंधन के बृजेश चाहर, बसपा के मुकेश राजपूत और आम आदमी पार्टी के नजीर खान से मुकाबला है।
मिनी छपरौली : मत प्रतिशत भी गिरा
जाट बाहुल्य होने के नाते मिनी छपरौली कहे जाने वाले फतेहपुर सीकरी में भी रालोद को जीत नसीब नहीं हुई। यहां तक कि चुनाव दर चुनाव रालोद के प्रत्याशियों का मत प्रतिशत भी लगातार कम हुआ। 2002 में पार्टी को फतेहपुर सीकरी से 39.41 प्रतिशत वोट मिले, जो बीते विधानसभा चुनाव में 16.84 फीसदी ही रह गया।
विधानसभा प्रत्याशी मत प्रतिशत स्थान
2002 चौधरी बाबूलाल 39.41 जीत
2007 चौधरी बाबूलाल 21.25 तीसरा
2012 चौधरी बाबूलाल 16.91 तीसरा
2017 बृजेश चाहर 16.84 तीसरा
निर्वाचन आयोग के अनुसार
विभिन्न दलों से गठबंधन के कारण भरोसा हुआ कम : सुरेंद्र वर्मा
रालोद के पूर्व जिलाध्यक्ष और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे 74 साल के अधिवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा कि रालोद के लगातार कम होते वोट प्रतिशत की वजह पार्टी का चुनावों में विभिन्न दलों से गठबंधन करना भी रहा। भले ही गठबंधन के पीछे पार्टी नेताओं की मंशा समाज के उत्थान की रही, लेकिन इससे जाटों में यह संदेश गया कि पार्टी नेताओं का स्थायित्व नहीं है, जिससे भरोसा कम हुआ।
दूसरी वजह चौधरी चरण सिंह ने जो संगठन तैयार किया था, उसका लाभ शुरुआती दौर में चौधरी अजित सिंह को मिला, लेकिन इसके बाद संगठन कमजोर होता गया। जयंत चौधरी तक स्थिति यही रही। इसका लाभ भाजपा को मिला और जाटों में उसका दबदबा बढ़ता गया। फतेहपुरसीकरी से कई जाट नेताओं के चुनाव लड़ने के कारण भी पार्टी के लिए समाज एकजुट नहीं हुआ और पार्टी को नुकसान हुआ।
इन वजहों से खिसका रालोद का जनाधार
डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय समाज विज्ञान संस्थान के समाज शास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. मोहम्मद अरशद ने बताया कि रालोद से जाट वोट बैंक खिसकने की बड़ी वजह नरेंद्र मोदी की प्रभावशाली छवि और मुजफ्फरनगर दंगा है। मुजफ्फरनगर के दंगों में रालोद मुखिया चौधरी अजित सिंह और जयंत चौधरी ने पूरी दूरी बरती। वहीं भाजपा नेता जाटों के साथ दिखे।
इसका असर हुआ कि जाटों में हिंदुत्व का भाव मजबूत हुआ और वह भाजपा के साथ हो गए। तीसरी वजह रालोद का संगठन का ढांचा बेहद कमजोर होना और नेतृत्व का भी प्रभावशाली नहीं होना रही। इससे पुराने कार्यकर्ताओं में निराशा हुई और युवाओं की लीडरशिप भी खड़ी नहीं हो पाई। परंतु किसान आंदोलन और समाजवादी गठबंधन से परिस्थिति बदल गई है। इस बार भाजपा के लिए पहले की तरह से जाट वोट पाना आसान नहीं है।
विस्तार
विधानसभा चुनाव 2002 में आगरा के एत्मादपुर और फतेहपुर सीकरी में रालोद की तूती बोली थी। एत्मादपुर की सुरक्षित सीट से गंगाप्रसाद पुष्कर और फतेहपुर सीकरी से चौधरी बाबूलाल ने बाजी मारी थी। चुनाव आयोग की वेबसाइट के अनुसार 2007 में रालोद ने खेरागढ़, दयालबाग, फतेहपुरसीकरी और एत्मादपुर से प्रत्याशी उतारे। एक में भी जीत नसीब नहीं हुई।
रालोद ने 2012 के चुनाव में एत्मादपुर, फतेहपुर सीकरी, खेरागढ़ और फतेहाबाद से प्रत्याशी उतारे। जनता को फिर से पार्टी रास नहीं आई। 2017 में पार्टी की सबसे ज्यादा दुर्गति हुई, नौ में से आठ विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा। कोई भी प्रत्याशी सीधे मुकाबले में नहीं रहा, अधिकांश की जमानत जब्त हो गई।
रालोद से जीते बाबूलाल अब भगवा खेमे के प्रत्याशी
2002 में फतेहपुर सीकरी से हैंडपंप चलाने वाले चौधरी बाबूलाल तीन विधानसभा चुनाव में रालोद के प्रत्याशी रहे, इनमें से एक बार ही जीत मिली। चौथी बार फिर से बाबूलाल मैदान में हैं, इस बार वह भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी हैं। 2014 आम चुनाव में वह भगवा खेमे में शामिल हुए और फतेहपुर सीकरी के सांसद बने।
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