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यूपी चुनाव का पहला चरण: 11 जिलों की 58 सीटों पर मतदान, जानिए यहां पहले क्या हुआ था और अब क्या बन रहे समीकरण?

आज से ठीक चौथे दिन यानी 10 फरवरी को उत्तर प्रदेश के 11 जिलों में पहले फेज की वोटिंग होगी। यहां 58 विधानसभा सीटों पर कुल 623 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। मथुरा और मुजफ्फरनगर दो सीट ऐसी हैं, जहां से सबसे ज्यादा 15-15 प्रत्याशी मैदान में हैं। पहले चरण में मैदान में उतरे 46% उम्मीदवार करोड़पति हैं। प्रत्याशियों की औसतन आय 3.72 करोड़ रुपये है। 156 प्रत्याशियों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं।

पिछली बार इन सीटों पर क्या हुआ था?
शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, हापुड़, अलीगढ़, बुलंदशहर, आगरा और मथुरा की जिन 58 सीटों पर पहले चरण में वोट पड़ने वाले हैं, उनमें से 53 पर 2017 में भाजपा ने जीत हासिल की थी। सपा और बसपा के खाते में दो-दो सीटें गईं थी, जबकि एक पर रालोद प्रत्याशी की जीत हुई थी, जो बाद में भाजपा में शामिल हो गए थे।
2017 में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था। इसके बावजूद उत्तर प्रदेश में बुरी हार का सामना करना पड़ा था। रालोद और बसपा ने अकेले चुनाव लड़ा था। रालोद ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 23 जिलों की 100 सीटों पर चुनाव लड़ा था।

1. शामली : यहां कुल तीन विधानसभा सीटें हैं। 2017 में दो सीटों पर भाजपा, जबकि एक पर सपा प्रत्याशी की जीत हुई थी।
2. हापुड़ : यहां तीन विधानसभा सीटें हैं। पिछली बार इनमें से दो पर भाजपा जबकि एक पर बसपा की जीत हुई थी।
3. गाजियाबाद : एनसीआर में पड़ने वाले इस जिले में विधानसभा की कुल पांच सीटें हैं। 2017 में सभी सीटें भाजपा के खाते में गईं थीं।
4. मेरठ : यहां विधानसभा की सात सीटें हैं। पिछली बार इनमें से छह पर भाजपा जबकि एक पर सपा प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी।
5. मुजफ्फरनगर : पश्चिमी यूपी के इस महत्वपूर्ण जिले में पांच विधानसभा सीटें हैं। 2017 में सभी सीटों पर भाजपा की जीत हुई थी।
6. बागपत : यहां विधानसभा की तीन सीटें हैं। 2017 में इनमें से दो पर भाजपा जबकि एक पर रालोद प्रत्याशी की जीत हुई थी।
7. बुलंदशहर : यहां सात विधानसभा सीटें हैं और 2017 में सभी भाजपा के खाते में गईं थीं।
8. नोएडा (गौतमबुद्ध नगर) : यहां की तीन सीटों पर 2017 में भाजपा उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी।
9. अलीगढ़ : यहां की सभी सात सीटों पर 2017 में भाजपा प्रत्याशियों ने ही जीत हासिल की थी।
10. आगरा : यहां विधानसभा की नौ सीटें हैं। 2017 में सभी सीटों पर भाजपा की जीत हुई थी।
11. मथुरा : यहां पांच सीटें हैं और इनमें चार पर भाजपा ने जीत हासिल की थी, जबकि एक पर बसपा प्रत्याशी ने परचम लहराया था।

इस बार राजनीतिक दलों की क्या है चाल?
2017 के मुकाबले इस बार राजनीतिक दलों की चाल और स्थानीय स्तर पर वोटों का समीकरण भी बदला है। जहां 2017 में भाजपा ने शानदार जीत हासिल की थी, वहीं इस बार पार्टी के सामने काफी मुश्किलें हैं। किसान आंदोलन, लखीमपुर खीरी कांड के चलते यहां वोटर्स का मिजाज कुछ बदला सा नजर आ रहा है। समाजवादी पार्टी और रालोद गठबंधन इसका फायदा उठाना चाहता है। वहीं, बसपा और कांग्रेस के प्रत्याशी अलग से चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं।

किन-किन नेताओं ने बदला पाला

आगरा के फतेहाबाद से भाजपा के विधायक रहे जितेंद्र वर्मा अब समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं। सपा ने उन्हें आगरा का जिलाध्यक्ष बना दिया है। जितेंद्र फतेहाबाद और आगरा की अन्य सीटों पर भाजपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
मुजफ्फरनगर के बड़े कांग्रेस नेता और चार बार के विधायक रहे हरेंद्र मलिक के बेटे को इस बार चरथापल सीट से सपा-रालोद गठबंधन ने टिकट दिया है। चुनाव से ठीक पहले पंकज और हरेंद्र दोनों ही कांग्रेस छोड़कर सपा में शामिल हो गए थे।
खैरागढ़ से बसपा के विधायक रह चुके भगवान सिंह कुशवाहा इस बार भाजपा से चुनाव लड़ रहे हैं।
एत्मादपुर में विधायक रहे और सपा के बड़े नेताओं में शुमार डॉक्टर धर्मपाल सिंह अब भाजपा में शामिल हो गए हैं। इस बार भाजपा ने उन्हें एत्मादपुर से टिकट दिया है।