छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने शुक्रवार को छेराछेरा पर्व के अवसर पर अन्नदान लेकर सुपोषण अभियान काे समर्पित किया। वे राजधानी रायपुर स्थित प्राचीन दूधाधारी मठ पहुंचकर पूजा-अर्चना की और प्रदेश की खुशहाली के लिए अशीर्वाद मांगा। इस दौरान मठ के प्रमुख महंत राजे रामसंुदर दास ने अन्न और सवा लाख रुपए का चेक सुपोषण अभियान को दिए। मुख्यमंत्री बघेल उनसे अन्नदान लेने के साथ ही कलाकारों के साथ मंदिर के आस-पास के घरों में पहुंचे और वहां से भी धान का दान लेकर अभियान के लिए दिया।
मुख्यमंत्री ने किया ट्वीट- छेर छेरा.. माई कोठी के धान ला हेर हेरा
- छत्तीसगढ़ में अन्नदान और आस्था के लोकपर्व छेराछेरा के दिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सुबह दूधाधारी मठ पहुंचे। वहां वे छेरछेरा जोहार’ कार्यक्रम में शामिल हुए और पूर्जा-अर्चना कर दान लिया। इसके बाद उन्हें तराजू में बिठाकर धान से तौला गया। इस धान को प्रदेश सरकार की महत्वकांक्षी योजना सुपोषण अभियान को अर्पित कर दिया गया। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने एक ट्वीट में लिखा छेर छेरा.. माई कोठी के धान ला हेर हेरा..जम्मो प्रदेशवासी मन ला गाड़ा गाड़ा बधाई अउ शुभकामना।
- छेरछेरा पुन्नी जोहार कार्यक्रम का आयोजन छत्तीसगढ़ की लोक कला, संस्कृति, परम्परा, रीति-रिवाज, खान-पान, बोली-भाषा, वेश-भूषा और तीज-त्यौहारों के संरक्षण, संवर्धन और विकास के लिए संस्कृति विभाग और जनसंपर्क विभाग के संयुक्त तत्वाधान में किया गया है। मान्यता ऐसी है कि छेरछेरा के दिन अनाज दान करने से घर में कभी अनाज की कमी नहीं रहती। इस अवसर पर कृषि मंत्री रविंद्र चौबे, डॉ. प्रेमसाय सिंह, अनिला भेंडिया, राज्यसभा सांसद छाया वर्मा, विधायक धनेंद्र साहू, कुलदीप जुनेजा, विकास उपाध्याय, महापौर एजाज ढेबर, सभापति प्रमोद दुबे और पद्मश्री ममता चंद्राकर मौजूद रहे।
- प्रदेश के गांव-गांव और शहर में पर्व की धूमसुबह से ही बच्चे, युवक और युवतियां हाथ में टोकरी, बोरी आदि लेकर घर-घर छेर-छेरा मांगते हैं। धान मिंसाई हो जाने के चलते गांव में घर-घर धान का भंडार भरा होता है, लोग छेर-छेरा मांगने वालों को दान करते हैं। इन्हें हर घर से धान, चावल और नगद राशि मिलती है। इसके अलावा इस दिन सभी घरों में नया चावल का चीला, चौसेला, फरा, दुधफरा, भजिया आदि छत्तीसगढ़ी व्यंजन बनाया जाता है। इसके अलावा छेर-छेरा के दिन कई लोग खीर और खिचड़ा का भंडारा रखते हैं। आज के दिन द्वार-द्वार पर छेरी के छेरा …, छेरछेरा, माई कोठी के धान ल हेरहेरा… की गूंज सुनाई देती है।
- किवदंतियों और मान्यताओं से जुड़ी है परंपराछत्तीसगढ़ में पौष पूर्णिमा पर मनाया जाने वाला लोकपर्व है छेरछेरा। इस दिन दान करने का रिवाज है। छेरछेरा पर्व को शाकंभरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व खरीफ की नई फसल के खलिहान से घर आज जाने के बाद मनाया जाता है। इस दौरान गांव के युवक घर-घर जाकर डंडा नृत्य करते हुए अन्ना का दान मांगते हैं। कथा के अनुसार पार्वती से विवाह पूर्व भोलेनाथ ने कई किस्म की परीक्षाएं ली थीं। उनमें एक परीक्षा यह भी थी कि वे नट बनकर नाचते-गाते पार्वती के निवास पर भिक्षा मांगने गए थे और स्वयं ही अपनी निंदा करने लगे थे, ताकि पार्वती उनसे विवाह करने के लिए इनकार कर दें।
- एक अन्य कथा के अनुसार, किसान धान की फसल को खलिहान से घर के कोठी में भर लेते हैं। जबकि सालभर तक कड़ी धूप और बरसात के पानी में भींगते, खेतों में काम करने वाले मजदूरों को इसके बदले में एक सीमित मजदूरी के अलावा और कुछ भी नहीं मिलता था। वहीं इतना कुछ होने के बाद भी किसान परेशान रहते। तब जमीन मालिक किसानों ने धरती माता की पूजा आराधना शुरू की। लगातार सात दिन की पूजा आराधना से धरती माता प्रकट हो गई और किसानों से बोली कि आज से सभी किसान-भूमिस्वामी अपने उपज का कुछ हिस्सा गरीब बनिहार मजदूरों को दान करोगे तभी अकाल मिटेगा।
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