सीएम कमलनाथ ने बीएलएफ के उद्घाटन में कहा- मुझे भारत भवन की खामोशी पसंद नहीं, ये वाइब्रेंट रहना चाहिए – Lok Shakti

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सीएम कमलनाथ ने बीएलएफ के उद्घाटन में कहा- मुझे भारत भवन की खामोशी पसंद नहीं, ये वाइब्रेंट रहना चाहिए

भारत भवन एक ऐसी जगह है, जिसे मैंने ऊबड़-खाबड़ जंगल के रूप में भी देखा है। इसकी संकल्पना, उद्घाटन होते, बनते और विकसित होने से लेकर कला-संस्कृति का उत्कृष्ट केंद्र बनते हुए भी देखा है। लेकिन सीएम हाउस में रहने आया तो देखा कि यहां तो खामोशी छाई है। कोई एक्टिविटी नहीं है।

मैंने मुख्य सचिव से कहा कि भारत भवन की यह खामोशी मुझे पसंद नहीं। इसे वाइब्रेंट होना चाहिए। खुशी है कि राघव चंद्रा और उनकी टीम ने यहां की खामोशी तोड़ने का बीड़ा उठाया है। कमलनाथ ने शुक्रवार को भारत भवन में दूसरे भोपाल लिटरेचर फेस्टिवल का उद्घाटन करते हुए यह बात कही।

कल्चर एंड एनवॉर्नमेंट सोसाइटी की ओर से आयोजित इस फेस्टिवल में सीएम ने रेरा चेयरमैन एंटोनी डिसा की पुस्तक ‘वन फॉर सॉरो, टू फॉर जॉय’, प्रमोद कपूर की ‘गांधी एक सचित्र जीवनी’ व देशदीप सक्सेना की पुस्तक ‘ब्रीदलेस- हंटेड एंड हाउंडेड द टाइगर रन फॉर इट्स लाइफ’ का विमोचन भी किया।

वन्यजीवन के चार कानून इंदिरा की देन
इ स सेशन में अभिलाष खांडेकर और भारती चतुर्वेदी से बातचीत में जयराम रमेश ने कहा- भारत के पर्यावरण, वन और वन्यजीवन की रक्षा करने वाले 4 कानून हैं, जो इंदिरा गांधी की देन हैं। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट 1972, वाटर एक्ट 1974, एयर एक्ट 1981 और फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट 1980। ये चारों कानून ब्यूरोक्रेटिक क्रिएशन नहीं इंदिरा गांधी के पॉलिटिकल क्रिएशन थे। पहली दफा पर्यावरण मंत्रालय उन्होंने बनाया। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड का गठन किया। मौजूदा प्रधानमंत्री सारी दुनिया में ऋग्वेद के मंत्र गाते हैं, लेकिन उनकी सरकार के कामकाज में पर्यावरण प्राथमिकता में नहीं हैं। सिर्फ स्लोगन से काम नहीं चलने वाला।

देवदत्त पटनायक ने अपनी किताब बिजनेस सूत्र पर बात करते हुए 3बी मॉडल के बारे में बताया की बिलीव – बिहेवियर – बिजनेस का मतलब है, जैसा विश्वास, वैसा ही व्यवहार और फिर वैसा ही व्यवसाय। अगर हमारे विश्वास में दूसरों की भूख मिटाना है तो फिर हमारा व्यवहार और व्यवसाय भी वैसा होगा।


लक्ष्मी और सरस्वती: जब हम अपनी भूख के बारे में सोचते हैं तब हम लक्ष्मी के बारे में सोचते हैं। जब दूसरों की भूख समझने की क्षमता आ जाए तो सरस्वती का वास होता है। हम स्कूल और कॉलेज को सरस्वती का दर्जा देते हैं पर वो जगह लक्ष्मी की होती है। सरस्वती की सही जगह पार्लियामेंट में है, जहां दूसरों के हित के बारे में सोचा जाए, खुद के बारे में नहीं।

समयक दर्शन: इसका मतलब है, हर चीज देखना जितना आप देख सको। इसमें तीन प्रकार के महापुरुषों की बात है-
 

वासुदेव: करियर की शुरुआत में जब वह टारगेट ओरिएंटेड काम करता है।
चक्रवर्ती: जब वो सिर्फ टारगेट के बजाय सिस्टम को भी देखता है।
तीर्थांकर : इसमें वह बिजनेस, सोसाइटी और ईको सिस्टम तीनों को ध्यान में रखता है।