मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग (Madhya Pradesh Public Service Commission-MPPSC) की परीक्षा में भील समाज (Bhil People) को लेकर पूछे गए सवाल से विवाद पैदा हो गया है. विपक्षी दल के अलावा कांग्रेस (Congress) के विधायक ने भी इस पर सवाल उठाया है. मुख्यमंत्री कमलनाथ (Cm Kamalnath) ने इस मामले की जांच के आदेश दिए हैं. एमपीपीएससी द्वारा रविवार को प्रतियोगी परीक्षा आयोजित की गई थी. इस परीक्षा में भील समाज की निर्धनता को लेकर एक गद्यांश दिया गया और सवाल पूछे गए. सवाल में कहा गया है, “आय से अधिक खर्च होने के कारण वे आर्थिक तौर पर विपन्न होते हैं.” आपराधिक प्रवृत्ति को भी निर्धनता का कारण बताया गया है, साथ ही कहा गया है कि इसके चलते वे अपनी सामान्य आय से देनदारियों पूरी नहीं कर पाते.
मुख्यमंत्री कमल नाथ ने कहा कि मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा 12 जनवरी, 2020 को आयोजित मध्यप्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग परीक्षा, 2019 की प्रारंभिक परीक्षा में भील जनजाति के संबंध में पूछे गए प्रश्नों को लेकर मुझे काफी शिकायतें प्राप्त हुई हैं. इसकी जांच के आदेश दे दिए गए हैं.
उन्होंने आगे कहा कि इस निंदनीय कार्य के लिए निश्चित तौर पर दोषियों को दंड मिलना चाहिए, उन पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि इस तरह की गलती की पुनरावृत्ति भविष्य में दोबारा ना हो.
मुख्यमंत्री ने आगे कहा कि मैंने जीवनभर आदिवासी समुदाय, भील जनजाति व इस समुदाय की सभी जनजातियों का बेहद सम्मान किया है. मैंने इस वर्ग के उत्थान व हित के लिए कई कार्य किए हैं. मेरा इस वर्ग से शुरू से जुड़ाव रहा है. मेरी सरकार भी इस वर्ग के उत्थान व भलाई के लिए वचनबद्ध होकर निरंतर कार्य कर रही है.
नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने इस सवाल पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने इसे शर्मनाक करार दिया है. उन्होंने कहा, “आदिवासियों का देश की आजादी के इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. ये हमारी संस्कृति के रक्षक हैं. पीएससी परीक्षा के प्रश्नपत्र में भोले भाले भीलों को आपराधिक प्रवृत्ति का बताया जाना शर्मनाक और संपूर्ण आदिवासी समाज का अपमान है. कमल नाथ तत्काल दोषियों पर कार्रवाई करें.”
कांग्रेस विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह ने भी पीएससी के सवाल पर नाराजगी जताते हुए कार्रवाई की मांग की है. उन्होंने ट्वीट किया, ‘भील समाज पर प्रदेश शासन के प्रकाशन पर अशोभनीय टिप्पणी से आहत हूं. अधिकारी को तो सजा मिलनी ही चाहिए, लेकिन मुख्यमंत्री को भी सदन में खेद व्यक्त करना चाहिए. आखिर वह प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. इससे अच्छा संदेश जाएगा.’
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