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Editorial :- कश्मीरी पंडितों के दर्द के 30 साल

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20 January

सुनंदा वशिष्ठ VS सबा नकवी

शशि थरूर  VS सुनंदा पुस्कर

कश्मीरी पंडितों को कश्मीर घाटी छोड़े हुए आज 30 साल हो गए. 

कश्मीरी पंडित बोले- ‘राम का वनवास 14 साल का, हमारा कब खत्म होगाÓ

इस संदर्भ में मुझे भारत की दो महिला पत्रकार स्तंभकार सबा नकवी और सुनंदा वशिष्ठ  के इस मुद्दे पर दी गई अलग-अलग टिप्पणी का स्मरण हो रहा है।

>> सुनंदा वशिष्ठ का नाम जब मेेरे सामने आ रहा है तो मुझे स्मरण हो रहा है कि सुनंदा पुस्कर ने भी अनुच्छेद ३७० को २ जुलाई २०१४ को भेदभावपूर्ण बताया था जबकि उनके पति शशि थरूर के विचार सुनंदा पुस्कर के ठीक उलट हैं।

इसकी चर्चा मैंने अपनी अंग्रेजी की पुस्तक ्रष्ष्ह्वह्म्ह्यद्गस्र & छ्वद्बद्धड्डस्रद्ब हृद्गद्बद्दद्धड्ढशह्वह्म्  में भी की है।

>> सबा नक़वी  ने १७ जनवरी को इंडिया टुडे में एक डिबेट के दौरान कश्मीरी पंडितों की घरवापसी के मुद्दे को सरकार के हिंदुत्वकरण का एजेंडा बताया है। शुक्रवार को प्रसारित हुए इस शो में उन्होंने जम्मू-कश्मीर पर भारत के अधिकार को लेकर भी सवाल उठाए। इस संदर्भ में ओपी इंडिया में प्रकाशित एक लेख के कुछ अंश संपादकीय के इस पृष्ठ में अलग से दिये गये हैं।

टाईम्स ऑफ इंडिया की पत्रकार सबा नकवी के ठीक उलट सुनंदा वशिष्ठ में एक वर्ष पूर्व १५ नवंबर २०१९ को अमेरिकी संसदीय कमेटी में मानवाधिकार हालात पर चर्चा के दौरान भारत का पक्ष रखते हुए व्यक्त किये थे।

>> सुनंदा ने कहा- 1990 में कश्मीरी पंडितों को जब निकाला जा रहा था तो उन्हें तीन विकल्प दिए गए: भाग जाओ, धर्म परिवर्तन करा लो या मर जाओ

 ‘पाकिस्तान की तरह भारत की पहचान 70 साल पुरानी नहीं; कश्मीर के बिना भारत नहीं और भारत के बिना कोई कश्मीर नहींÓ

  कश्मीरी पंडित अपने ही देश में शरणार्थी बनकर दिल्ली की सड़कों पर दयनीय स्थिति में हैं। आज १९ जनवरी को उन्होंने  रविवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर सैकड़ों कश्मीरी पंडित जुटे, जिनमें बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग भी शामिल थे। अपने घर और संपत्ति को छोड़कर निकलने को मजबूर किए गए पंडित समुदाय के लोगों ने मूक प्रदर्शन किया और उस काले दिन के दर्द को याद किया।

इसी प्रकार से पाकिस्तान से प्रताडित होकर के आए हिन्दू, पारसी, जैन इसाई शरणार्थी भारत में अनेक वर्षों से बिना नागरिकता प्राप्त कर रहे हैं। उन्हें सीएए के तहत नागरिकता देने का संसद में जो प्रस्ताव पास हुआ है और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से जो कानून भी बन चुका है उसके  भी विरोध में मुस्लिम समुदाय को उक्साकर जिन्ना वाली आजादी के नारे शाहीन बाग में लगवाये जा रहे हैं। वहॉ कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर पहुंचकर भारत के प्रधानमंत्री को कातिल तक कह डाला। इस पर सोनिया गांधी और कांग्रेस के अन्य नेताओं का एक दृष्टि से मौन समर्थन है।

भारत की जनता को राष्ट्र की एकता बनाये रखने के लिये उक्त तथ्यों के आधार पर अपने विचार व्यक्त करने चाहिये।