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Editorial : रूस को भारतीय बाजारों की जरूरत, चीन होगा अलग

26-2-2022

रूस अब दुनिया भर में चीन के राजनयिक कौशल की निरर्थकता को महसूस कर चुका है। इसलिए रूस ने एक बार फिर भारत की ओर रुख किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले वैश्विक नेता बनें, जिन्हें व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन में रूस के चल रहे अभियानों की व्याख्या करने के लिए कॉल किया। पीएम मोदी ने हिंसा को तत्काल बंद करने का आह्वान किया, लेकिन साथ ही पुतिन के कदम और भारत को संकट के संदर्भ को समझाने के उनके प्रयासों की भी सराहना की।

ऐसे में अब रूस एक बार फिर भारत के साथ है। भले ही नई दिल्ली सार्वजनिक रूप से इसे स्वीकार करने को तैयार न हो, लेकिन सच्चाई यहीं है। व्लादिमीर पुतिन के पास अब भारत के रास्ते पश्चिम के साथ राजनयिक चैनल खोलने का विकल्प है। सभी प्रमुख विश्व शक्तियों, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और जर्मनी के साथ नई दिल्ली के विशेष संबंध हैं। इसलिए, मास्को के यूक्रेन में अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के बाद, भारत-रूस और पश्चिम के बीच सामान्य स्थिति बहाल करने में एक बड़ी भूमिका निभा सकता है। इसी बीच, यूक्रेन में भारतीय छात्रों की सुरक्षा को लेकर भारत को व्लादिमीर पुतिन से भी आश्वासन मिला है।

आपको बताते चलें कि भारत एक बड़ा बाजार है। चीन भी है, लेकिन चीन के साथ रूस के संबंध उस तरह की कूटनीतिक ऊंचाई के साथ नहीं हैं, जैसे भारत के साथ हैं। ऐसा लगता है कि रूस ने इसे कठिन तरीके से समझा है, पर समझ लिया है। यूक्रेन मामले के बाद दुनिया के कई देश रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा चुके हैं, ऐसे में अब भारत ही है, जो रूस का सबसे बड़ा मददगार साबित हो सकता है। रूस की आर्थिक परिस्थिति हथियार और गैस पर टिकी रहती है। ऐसे में अगर भारत रूस के साथ साझेदारी कर मेड इन इंडिया के टैग से उसके हथियार दूसरे देशों को बेचता है, तो इससे रूस को भी आर्थिक फायदा होगा और उसपर प्रतिबन्ध का असर भी बहुत कम होगा। साथ ही भारत यूनाइटेड नेशंस में भी रूस के लिए बाकी देशों पर दबाव बना सकता है, जिससे रूस को सहायता भी मिल सकती है। ध्यान देने वाली बात है कि भारत वह देश है, जिसका यूरोपीय देशों के साथ-साथ अमेरिका समेत दुनिया के तमाम देशों के साथ अच्छे संबंध है। इसलिए रूस चाहता है कि भारत उसकी इस हालत में सहायता करे।

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