हमारे धार्मिक ग्रन्थों में जल की महत्ता के बारे में जैसी विस्तृत व्याख्या की गयी है, वैसा अन्यत्र कहीं भी देखने को नहीं मिलता है। आज के जमाने में जल की प्रासंगिकता और भी बढ़ गयी है। जल को ही जीवन का आधार माना गया है और इसीलिए नदियों को देवितुल्य मानते हुए उन्हे जीवनदायिनी और माँ की संज्ञा दी गयी है। गंगा, यमुना और सरस्वती हमारे जीवन ही नहीं बल्कि हमारे सनातन धर्म का आधार भी हैं। नदियों और जलाशयों के किनारे ही हमारे गौरवशाली सभ्यता का उदय हुआ और इन्ही के कारण हम प्रथम वैभवशाली और नगरीय सभ्यता बनें।
ऋग्वेद में कहा गया है: अप्स्वन्तरमृतमप्सु भेषजम्।। ऋ ग्वेद.1-23-19 अर्थात जल अमृत है और जल ही औषधि भी है। परंतु, प्रकृति प्रद्दत इस संसाधन के बारे में हमारा रवैया बहुत ही उदासीन है। इस उदासीनता का मूल कारण यह है की इस संसाधन से प्रकृति ने हमें बड़ी ही प्रचुरता से उपकृत किया है और इसी प्रचुरता ने पानी के महत्ता के प्रति हमें अदूरदर्शिता और उदासीनता से भर दिया है। पानी भारत को वैश्विक शक्ति में परिवर्तित कर सकता है परंतु, अभी हम इसके महत्ता के बारे में नहीं समझ पा रहें है।
पानी का महत्व अगर समझना हो तो अरबियों से पूछिये जो तेल बेचकर पानी खरीदते हैं। हमें लगता है की पानी सिर्फ जीवन का आधार है क्योंकि हमारा शरीर 70 प्रतिशत जल से बना है और हमें प्यास लगती है। लेकिन क्या आपको नहीं लगता की पानी आपके पेट का आधार है। भारत में भू जल के अत्यधिक दोहन से इसका स्तर दिन प्रतिदिन नीचे लुढ़कता जा रहा है जिससे खेती और सिचाई का संकट उभर कर रहा है। क्या आपको नहीं लगता की पानी के आभाव में कृषि आधारित भारत की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी? भारत अगर अपने जल का उत्कृष्ट प्रबंधन करता है तो यह ना सिर्फ हमारे किसानों को फायदा पहुंचाएगा बल्कि आनेवाले समय में जब दुनिया भूखमरी से जूझने लगेगी तब यह भारत को कृषि आधारित आर्थिक महाशक्ति के रूप में भी स्थापित करेगा।
तेल बीते दिनों की बात हो चुकी है। परमाणु ऊर्जा और हाइड्रोजन के दिन बीतते भी ज्यादा दिन नहीं लगेगा। पर, इन सबके बीच जो अंत तक बचा रह जाएगा वो है पानी। वैसे ऊर्जा उत्पादन के लिए हम आज भी बड़े बड़े बांध बना कर पानी का उपयोग कर रहें है और इतना ही नहीं परमाणु ऊर्जा के उत्पादन में भी पानी की बड़ी भूमिका है लेकिन आनेवाले समय में पानी ऊर्जा का सहायक नहीं बल्कि स्वतंत्र स्रोत बनेगा। हाइड्रोजन के दो ओर ऑक्सिजन के एक अनु से बना यह तरल पदार्थ जीवन का आधार नहीं बल्कि स्वयं में जीवन है। शायद, इसीलिए ब्रह्मांड में अगर मानव कहीं और जीवन के संकेत ढूँढता है तो वह तेल नहीं पानी के स्रोत पता करता है।
जल से ही हम और आप बने है। अगर हम, आप और सरकार मिलकर ठान ले तो यही जल हमारी ताकत और शक्ति का स्तम्भ बनेगा। शायद इसीलिए ईश्वर ने धरती को 70 प्रतिशत जल से ढक दिया है। यह संसाधन नहीं वरदान है जिसका सबसे बड़ा हिस्सा भारत के पास है।
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