Ranchi : आधुनिक कृषि (Modern agriculture) में रासायनिक खाद (chemical fertilizer) और कीटनाशक के प्रयोग से खाद्य पदार्थ अपनी गुणवत्ता खो रहे हैं. क्योंकि इससे तैयार खाद्य पदार्थ से मनुष्य और जानवरों की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है. वहीं इसके प्रयोग से खेती योग्य भूमि जमीन अपनी उर्वरा क्षमता खोती जा रही है. जिससे मिट्टी में पोषक तत्वों का संतुलन एवं स्वास्थ्य बिगड़ गया है. भूमि की इस स्थिति से भावी पीढ़ी स्वास्थ्य एवं खाद्यान्न आवश्यकता को पूरा करने में प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है.
इस हानिकारक प्रभाव को देखते हुए भारतीय कृषि में प्राकृतिक खेती के प्रचलन को बढ़ावा देने की आवश्यकता महसूस की जा रही है. इस दिशा में आरके मिशन द्वारा प्रदेश में कई कार्यक्रमों को चलाया जा रहा है. उक्त बातें आरके मिशन के सचिव स्वामी भावेशानंद ने बतौर मुख्य अतिथि कही. वे बीएयू प्रसार शिक्षा निदेशालय एवं आईसीएआर अटारी पटना के संयुक्त तत्वावधान में झारखंड में प्राकृतिक खेती की संभावनाएं और अवसर विषय पर आयोजित तीन दिवसीय प्रशिक्षण सह कार्यशाला के उद्घाटन समारोह में रखा.
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भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है प्राकृतिक खेतीः
स्वामी भवेशानंद ने कहा कि प्राकृतिक खेती एक प्राचीन पद्धति है. जो भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है. इसमें कीटनाशकों के रूप में गोबर की खाद, कम्पोस्ट, जीवाणु खाद, फसल अवशेष और प्राकृतिक रूप से उपलब्ध खनिज द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिये जाते हैं. प्राकृतिक खेती में प्रकृति में उपलब्ध जीवाणुओं, मित्र कीट और जैविक कीटनाशक द्वारा फसल को हानिकारक जीवाणुओं से बचाया जा सकता है.
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प्राकृतिक खेती तकनीक को बढ़ावा देने पर जोरः
वहीं, विशिष्ट अतिथि के तौर पर मौजूद भारतीय वन सेवा के पूर्व पदाधिकारी एके सिंह ने कम लागत, कम समय एवं कम क्षेत्र में अधिक लाभ के लिए प्राकृतिक खेती को उपयोगी बताया. उन्होंने गांवों में उपलब्ध संसाधनों के अनुरूप परिवर्तित प्राकृतिक खेती तकनीक को बढ़ावा देने पर जोर दिया.
मौके पर निदेशक अनुसंधान डॉ अब्दुल वदूद ने कहा कि स्वास्थ्य एवं पर्यावरण के प्रति जागरूकता में बढ़ोतरी से लोगों में जैविक उत्पादों के प्रति रूझान में काफी बढ़ोतरी हुई है. जैविक खेती एवं प्राकृतिक खेती लगभग एक सामान है. कार्यक्रम में काफी संख्या में लोग मौजूद थे.
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