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Editorial :निर्यात से ही कृषि क्षेत्र में बदलाव होगा संभव

5-4-2022

भारत आने वाले वर्षों में प्रभावशाली निर्यात संख्या हासिल करने के लिए तैयार है। एक समय था जब भारत को पश्चिम के अमीर और शक्तिशाली देशों द्वारा अपनी आबादी का पेट भरना पड़ता था लेकिन आज वही भारत दुनिया के तथाकथित “महाशक्तियों” को उच्च गुणवत्ता वाले अनाज का निर्यात करेगा, ताकि उनकी आबादी भूख के कारण बर्बाद न हो जाए। आज जिस तरह से भारत का निर्यात वैश्विक स्तर पर साकार हो रहा है उसकी बीज केंद्र की मोदी सरकार द्वारा फैसले के बाद आया है जब भारत भी आत्मनिर्भरता के साथ अपना उत्पाद निर्यात करता है जिससे देश की आर्थिक स्थिति में बहुत प्रगति हो रहा है।
वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान देश का गेहूं निर्यात 100 लाख टन (10 मिलियन टन) को पार करने की संभावना है। 2020-21 में 21.55 लाख टन (4,000 करोड़ रुपये से अधिक) के मुकाबले 2021-22 में निर्यात पहले ही 70 लाख टन (15,000 करोड़ रुपये से अधिक) को पार कर चुका है।
पीयूष गोयल ने कहा, “हम बड़े पैमाने पर गेहूं का निर्यात करना जारी रखेंगे और उन देशों की जरूरतों को पूरा करेंगे जो संघर्ष क्षेत्रों से अपनी आपूर्ति नहीं प्राप्त कर रहे हैं, और मेरी अपनी समझ है कि हम शायद अपने गेहूं के निर्यात को 100 लाख टन से अधिक आराम से पार कर लेंगे।”
दुनिया परेशान है और भारत के लिए बढिय़ा अवसर है – यह ध्यान रखना उचित है कि वैश्विक बाजारों में कृषि वस्तुओं की भारी मांग है क्योंकि कई प्रमुख कृषि उत्पादक या तो जलवायु समस्याओं या कुछ भू-राजनीतिक मुद्दों का सामना कर रहे हैं। इस चल रही गड़बड़ी के बीच, भारत दुनिया भर के देशों को भोजन के विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा है।
वहीं जब से रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया है गेंहू उत्पादन और निर्यात महंगा हो गया है। कुल मिलाकर, रूस और यूक्रेन वैश्विक गेहूं निर्यात का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा बनाते हैं। पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, और यूक्रेन ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। इससे दुनिया को, विशेष रूप से यूरोप को एक बहुत ही क्षति का सामना करना पड़ रहा है।
गौरतलब है कि जब दुनिया भर में यूक्रेनी और रूसी गेहूं की आपूर्ति की अनुपस्थिति के कारण शून्य को भरने की बात आती है तो भारत को अन्य देशों पर अधिक लाभ होता है। आपको बतादें की रबी की फसल पिछले कुछ हफ्तों में मंडियों में पहुंचनी शुरू हो गई है और अप्रैल के अंत या मई के मध्य तक पूरी तरह से कट जाएगी।
वैश्विक उत्पादक अभी भी अपनी फसलों की कटाई के लिए जून-जुलाई की अवधि का इंतजार कर रहे हैं जो अगस्त-सितंबर तक बाजारों में पहुंच जाएगी। इससे भारत के पास अपने बेहतर गेहूं के साथ वैश्विक बाजारों में निर्यात करने का अवसर है। भारत पहले से ही मिस्र को गेहूं का निर्यात शुरू करने के लिए अंतिम बातचीत कर रहा है।
वहीं मोदी सरकार गेहूं का निर्यात शुरू करने के लिए तुर्की, चीन, बोस्निया, सूडान, नाइजीरिया और ईरान जैसे देशों के साथ भी चर्चा कर रही है।