रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन के बाद अब योगी सरकार किस विचार के साथ छेड़छाड़ कर रही है?
पोषण सुरक्षा। इसमें सबसे अहम भूमिका दालों की होगी। कारण है
तथ्य यह है कि आम आदमी के लिए दालें प्रोटीन का एकमात्र स्रोत हैं, खासकर उन लोगों के लिए जिनके पास प्रोटीन है
शाकाहारी भोजन की आदतें।
दालों की कीमतें अक्सर कम पैदावार के कारण हर कुछ वर्षों में खबरों में रहती हैं
उपभोग। ऐसा होने पर आम आदमी की थाली की नब्ज सिकुड़ जाती है और गायब हो जाती है
गरीबों की थाली से ऐसा होने से रोकने के लिए योगी सरकार ने तैयार किया है
विस्तृत कार्य योजना। दरअसल, योगी सरकार के पहले कार्यकाल में ही इस योजना पर काम शुरू हो गया था
अपने आप।
परिणामस्वरूप, दालों का उत्पादन 23.94 मीट्रिक टन से बढ़कर 25.34 लाख मीट्रिक टन हो गया
2016-17 से 2020-21 तक। प्रति हेक्टेयर उत्पादकता भी 9.5 क्विंटल से बढ़कर 10.65 . हो गई है
इस दौरान क्विंटल यह राज्य की खपत का केवल 45 फीसदी है। के मुताबिक
योगी 2.0 का पांच साल का लक्ष्य, दलहन रकबा बढ़ाकर 28.84 लाख हेक्टेयर करना है
प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 12.41 क्विंटल और उत्पादन लक्ष्य 35.79 मीट्रिक टन है।
यह लक्ष्य कैसे हासिल होगा?
उत्पादन में गुणवत्तापूर्ण बीजों के महत्व को ध्यान में रखते हुए प्रमाणित एवं
दलहन की विभिन्न फसलों की नई किस्मों के आधार बीज 28751 से बढ़ाए जाएंगे
क्विंटल से 82000 क्विंटल। ये बीज किसानों को रियायती दरों पर दिए जाएंगे। क्रम में
दलहन फसलों का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए दलहन (उर्द, मूंग) फसलों को प्रोत्साहित किया जाएगा
इंटरक्रॉपिंग और जायद फसलें। स्प्रिंकलर के प्रयोग से भी उत्पादन में वृद्धि होगी
असमान भूमि पर सिंचाई प्रणाली, फरो और रिज से खेती करके उत्पादन में वृद्धि
प्रौद्योगिकी और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद की गारंटी।
आत्मनिर्भरता से भी बचेगी विदेशी मुद्रा
भारत दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और आयातक है। सबसे बड़ा होने के नाते
जनसंख्या, इस खपत का अधिकतम हिस्सा यूपी से ही है। ऐसी स्थिति में,
पूरी दुनिया के दलहन उत्पादक देश (कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, तुर्की, और .)
म्यांमार) न केवल भारत और उत्तर प्रदेश के उत्पादन पर बल्कि पर भी नजर रखता है
छह महीने का भंडारण। ऐसे में उपज कम है तो भारी मांग को देखते हुए
यहां अंतरराष्ट्रीय बाजार में दालें महंगी हो गई हैं।
रुपये के मुकाबले डॉलर की स्थिति पर भी इसका काफी असर पड़ा है। यदि डॉलर अधिक है
रुपये से महंगा तो आयात भी महंगा ऐसे में देश को
आम आदमी की ‘दाल’ जल्द होगी ज्यादा पौष्टिक
दालों के आयात पर बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च करें। उत्तर प्रदेश बन गया तो
दालों के उत्पादन में आत्मनिर्भर होंगे तो विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी।
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