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33 बरस पहले जैसे बाबरी मसले पर फंसे थे राजीव गांधी, वैसे आज ज्ञानवापी पर फंस गए हैं राहुल और प्रियंका?

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वाराणसी: वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद-श्रृंगार गौरी विवाद (Gyanvapi Masjid Survey) के बीच सारा मामला अदालत में पहुंच गया है। अदालत की चौखट पर कानून की तमाम दलीलों के बीच देश में सियासी माहौल भी गर्म हो गया है। एक ओर बीजेपी के तमाम नेता काशी विश्वनाथ मंदिर और हिंदू पक्ष की ओर खड़े नजर आ रहें हैं। वहीं दूसरी ओर विपक्ष के नेताओं ने इस पूरे मामले को मूल मुद्दों से ध्यान भटकाने का प्रोपोगैंडा और देश में सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने की साजिश बताया है। ज्ञानवापी मसले पर हाल ही में तमाम राजनीतिक बयान आ चुके हैं। इन सभी के बीच सबसे मुश्किल स्थिति कांग्रेस पार्टी के सामने है, जिसने अब तक इस मामले पर खुलकर कुछ भी नहीं कहा है।

यूपी के विधानसभा चुनाव के वक्त काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन के लिए आ चुकीं प्रियंका गांधी पूरे मसले पर मौन हैं। प्रियंका की चुप्पी इसलिए भी सवालों के घेरे में है, क्योंकि वह अपनी पार्टी की ओर से उत्तर प्रदेश की प्रभारी महासचिव भी हैं। जानकारों का कहना है कि चुनाव से पहले मंदिरों के चक्कर काटने वाली कांग्रेस इस बार ज्ञानवापी के मसले पर कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहती। कांग्रेस की पृष्ठभूमि में बाबरी पर उसका स्टैंड भी शामिल है, जिसमें राजीव गांधी हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों को साधने की कथित कोशिश में यूपी की सत्ता गंवा बैठे थे। अब प्रियंका और राहुल दोनों ही ज्ञानवापी के मसले पर ऐसा कोई संदेश नहीं देना चाहते, जिससे कि उनकी छवि हिंदू विरोध की हो और उन्हें आगामी चुनावों में इसका नुकसान हो।

90 के दशक में अयोध्या के मंदिर आंदोलन के साक्षी रहे वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्रा कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी फिलहाल भीषण आंतरिक कलह से जूझ रही है। पार्टी में जी-23 गुट की बगावत, नेतृत्व के प्रति असंतोष और तमाम चुनावों की हार को लेकर काफी कलह पहले से है। ऐसे में आंतरिक विरोधों में ही घिरी कांग्रेस पार्टी के लिए ज्ञानवापी और काशी विश्वनाथ के मसले पर किसी एक पक्ष का होकर बयान देना बड़ी चुनौती है। दूसरी बात यह भी है कि कांग्रेस हमेशा खुद को बीजेपी के विकल्प के रूप में प्रोजेक्ट करती रही है। इस ऑप्शन गेम में उसने हमेशा खुद को अल्पसंख्यकों का रहनुमा बताने की कोशिश की है और बैकडोर से मुस्लिम वोटर कांग्रेस का साथ बीजेपी के खिलाफ ही देते रहे हैं। ऐसे में अगर कांग्रेस किसी भी एक पक्ष के लिए बयान देती है तो उसे नुकसान होना तय है। मुस्लिमों के साथ आने पर वह नरेंद्र मोदी के 80 बनाम 20 वाले एजेंडे की पिच पर नहीं सेट हो पाएगी। वहीं अगर उसने हिंदू पक्ष के लोगों का समर्थन किया तो उसे अपने पारंपरिक अल्पसंख्यक वोट बैंक का नुकसान होगा।

राजीव गांधी के कंफ्यूजन से कांग्रेस को हुआ नुकसान
पत्रकार अपराजिता सिंह कहती हैं कि राजीव गांधी ने राम जन्मभूमि का ताला खुलवाया। इसके लिए कोर्ट का आदेश उनकी सरकार ने 40 मिनट में लागू भी कराया और इसका लाइव टेलिकास्ट टीवी पर हुआ। इसके बाद राम मंदिर के शिलान्यास के वक्त राजीव गांधी ने देवरहा बाबा के कहने पर इसके लिए हामी भरी। उस वक्त कमलापति त्रिपाठी, हेमवंती नंदन बहुगुणा और सीएम एनडी तिवारी ने इसका विरोध भी किया। हालत ये हुई कि कमलापति त्रिपाठी ने यह तक कह दिया कि अगर शिलान्यास हुआ तो पहला फावड़ा मेरी पीठ पर चलेगा। लेकिन राजीव गांधी ने गृहमंत्री बूटा सिंह को भेजकर शिलान्यास कराने की सहमति बनाई। लेकिन पूरा श्रेय वीएचपी इसलिए ले गई, क्योंकि राजीव गांधी आखिरी वक्त तक ये नहीं बता पाए कि वो हिंदू पक्ष के साथ हैं या नहीं। वहीं मुस्लिम उन्हें हिंदुओं के साथ मानकर कांग्रेस से अलग जरूर हो गए। इसके बाद ही मुलायम सिंह और कांशीराम का यूपी में उदय हुआ।

अखिलेश की राह मुलायम से जुदा
समाजवादी पार्टी के चीफ अखिलेश यादव के बयानों पर योगेश मिश्रा कहते हैं कि एसपी प्रमुख का बयान एक ‘गार्डेड बयान’ है। मुलायम सिंह यादव के वक्त की बात कहते हुए योगेश मिश्रा कहते हैं कि जब कारसेवा का दौर शुरू हुआ तो तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव ने कहा कि विवादित ढांचे पर परिंदा भी पर नहीं मार सकता है। मुलायम उस वक्त मुस्लिम पक्ष के साथ दिखे थे और इसका सबसे बड़ा उदाहरण तब दिखा, जब कारसेवकों पर गोली चलवा दी गई। लेकिन अखिलेश यादव की लाइन मुलायम सिंह से बिल्कुल अलग है। अखिलेश ने ज्ञानवापी के मसले पर जो बयान दिए हैं, वो संतुलित बयान हैं। उन्होंने ना मुस्लिम पक्ष का साथ लेकर यह कहा कि मस्जिद मस्जिद ही रहेगी और ना हिंदू पक्ष का पक्ष लेकर कहा कि ज्ञानवापी का हिस्सा मंदिर का ही हिस्सा है। अखिलेश यादव ने अपने बयानों में सिर्फ यही कहा कि ये मसला इसलिए उठाया गया, क्योंकि मूल मुद्दों पर ध्यान ना जाए। अखिलेश के जैसा स्टैंड मायावती का भी है और उन्होंने भी संतुलित शब्दों में अपनी राय रखी है।

बीजेपी का स्टैंड तो हमेशा से साफ
पत्रकार अरुणवीर सिंह कहते हैं कि बीजेपी का स्टैंड हमेशा से साफ रहा है। उसके किसी बड़े नेता ने भले ही हिंदू पक्ष की साइड ना ली हो, लेकिन वह प्रशासनिक तौर पर पीछे से हिंदू पक्ष की मदद कर रही है। इसी का कारण है कि सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता जैसे बड़ी वकील को खड़ा किया। इसके अलावा प्रशासन की ओर से कोर्ट के आदेश को लागू कराने के लिए तमाम बैकडोर मदद भी दी गई, जिससे कि सर्वे की कार्रवाई शांतिपूर्ण तरीके से हो। अरुणवीर सिंह कहते हैं कि भले ही बीजेपी इस मसले पर खुलकर ना दिखे, लेकिन उसके सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन विश्व हिंदू परिषद और आरएसएस काशी विश्वनाथ मंदिर के हिस्से में ही साथ हैं। वीएचपी ने अगले महीने होने वाली अपनी केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक में यही एजेंडा भी रखा है। बीजेपी तो पूर्व में अयोध्या झांकी है और मथुरा काशी बाकी है का नारा भी दे चुकी है। ऐसे में उसके लिए स्टैंड साफ है। चूंकि बीजेपी केंद्र और राज्य की सरकार में है, ऐसे में वह खुलकर इसपर नहीं बोल सकती है।