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अधिवक्ता के ऑफिस का सम्मान कोर्ट के सम्मान से कम नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट

प्रयागराज :इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने एक अधिवक्ता की जमानत अर्जी खारिज करते हुए गुरुवार को कहा कि इस मामले में पीड़िता, याचिकाकर्ता के कार्यालय में बतौर जूनियर कार्यरत थी। वकालत कर रहे और एक नेक पेशे में शामिल व्यक्ति के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए गए हैं। एक अधिवक्ता के कार्यालय का सम्मान, कोर्ट के सम्मान से कहीं कम नहीं होता। जस्टिस समित गोपाल ने कहा, ‘दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और तथ्यों पर गौर करने के बाद यह साबित होता है कि याचिकाकर्ता प्राथमिकी में नामजद है और सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत पीड़िता के बयानों में भी उसका नाम शामिल है।’

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अदालत ने कहा, ‘ये आरोप यौन शोषण और मारपीट के हैं जो काफी लंबे समय तक जारी रहे। पीड़िता ने याचिकाकर्ता के खिलाफ अपने बयान में आपबीती बताई है। ऐसा कोई कारण नजर नहीं आता जिससे लगे कि याचिकाकर्ता को झूठा फंसाया जा रहा है।’ इस प्रकार से, कोर्ट ने उच्च न्यायालय के अधिवक्ता राजकरण पटेल की जमानत की अर्जी खारिज कर दी।

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7 अप्रैल, 2021 को प्रयागराज जिले के सिविल लाइंस पुलिस थाने में शिकायतकर्ता ने राजकरण पटेल और सिपाही लाल शुक्ला के खिलाफ आईपीसी की धारा 366 (अपहरण) के तहत एक प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। राजकरण और सिपाही लाल दोनों ही इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता हैं। शिकायत करने वाले का आरोप है कि उनकी 22 वर्षीय बेटी एलएलबी की छात्रा है और राजकरण पटेल के साथ वकालत की प्रैक्टिस कर रही थी। उन्होंने आरोप लगाया कि दोनों आरोपी उनकी बेटी को बहला फुसला कर भगा ले गए।

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पुलिस ने मामले की प्राथमिक जांच और पीड़िता का बयान लेने के बाद एफआईआर में आईपीसी की धारा 376 (दुष्कर्म) जोड़ी। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि उनके मुवक्किल को इस मामले में झूठा फंसाया गया है। पीड़िता एक वयस्क है और उसके बयान के मुताबिक वह एक अधिवक्ता के साथ हाईकोर्ट आया करती थी और उसके साथ काम कर रही थी। वह अपना बयान बदलती रही। हालांकि, राज्य सरकार के वकील ने जमानत की अर्जी का यह कहते हुए विरोध किया कि मौजूदा केस ऐसा मामला है जिसमें एक अधिवक्ता ने अपने कार्यालय और अदालत में कानूनी प्रशिक्षण देने के बहाने कानून की छात्रा का शोषण किया है।