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साझीदारों को साधने में छूट रहे पसीने, अखिलेश की लखनऊ से दिल्ली तक दौड़…विधान परिषद का भी उलझा गणित

लखनऊ: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की राजनीति में इस समय दो तरह के भाव देखने को मिल रहे हैं। एक तरफ भाजपा का चेहरा सीएम योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ग्राउंड ब्रेकिंग समारोह की तैयारियों में जुटे हैं। वहीं, दूसरी तरफ सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) पार्टी के नाराज नेताओं को मनाने की कोशिश करते दिख रहे हैं। इन दोनों ही मामलों को ऐसे समझिए, योगी काम करके दिखाने की कोशिश करते दिख रहे हैं और सपा अध्यक्ष पार्टी के अंतरविरोधों से जूझते दिख रहे हैं। सर गंगाराम अस्पताल में आजम खान (Azam Khan) के साथ अखिलेश यादव की तीन घंटे की मुलाकात को इसी नजरिए से देख सकते हैं। इस मुलाकात के दौरान अखिलेश ने तमाम सियासी बातचीत आजम खान के साथ की। इस मुलाकात में सपा मुखिया ने विधान परिषद चुनावों को लेकर पार्टी नेताओं की आतुरता के बारे में आजम खान को बताया। कैसे सहयोगी दल विधान परिषद में जाने के लिए उन पर दबाव बना रहे हैं? इस पर भी चर्चा हुई और रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा उप चुनाव भी चर्चा का विषय बना।

आजम खान से मुलाकात के बाद जिस प्रकार के संकेत मिल रहे हैं, उससे साफ है कि इसी सप्ताह अखिलेश यादव आजमगढ़ और रामपुर संसदीय सीट से पार्टी चुनाव लड़ने वाले पार्टी प्रत्याशी के नाम का ऐलान कर देंगे। माना जा रहा है कि अखिलेश यादव आजमगढ़ संसदीय सीट से अपनी पत्नी डिंपल यादव और रामपुर संसदीय सीट से सिदरा खान को चुनाव लड़ा सकते हैं। सिदरा खान आजम खान के बड़े बेटे अदीब खान की पत्नी हैं। इसके साथ ही अखिलेश यादव विधान परिषद में सपा कोटे किन चार लोगों को भेजा जाएगा, इसका भी फैसला करेंगे। विधान परिषद के चुनाव भी अखिलेश यादव के लिए बेहद अहम हैं।

यूपी में विधान परिषद की कुल 100 सीटें है, जिनमें से 13 विधान परिषद सदस्यों का कार्यकाल छह जुलाई को समाप्त होने वाला है। विधान परिषद की इन 13 सीटों पर 20 जून को चुनाव होना है। इसकी नामांकन प्रक्रिया 2 से 9 जून तक चलेगी। 10 जून को नामांकन पत्रों की जांच होगी और 13 जून तक उम्मीदवार अपने नाम वापस ले सकेंगे। इस तय चुनावी कार्यक्रम के तहत सपा कोटे से विधान परिषद सदस्य बनने के लिए पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य से लेकर इमरान मसूद और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओमप्रकाश राजभर के बेटे तक दावेदारी के लिए लाइन में हैं।

अखिलेश यादव के करीबी सुनील साजन से लेकर संजय लाठर और उदयवीर जैसे और भी कई नेता भी विधान परिषद सदस्य बनने को आतुर हैं। राम गोविंद चौधरी, राम आसरे विश्वकर्मा और नदीम फारुकी भी विधान परिषद जाने की मंशा रखते हैं। इस तरह विधान परिषद चुनाव में सपा की हालत एक अनार सौ बीमार वाली बनी हुई है। ऐसे में देखना है कि अखिलेश यादव विधान परिषद चुनाव में क्या राज्यसभा की तरह ही फॉर्मूला आजमाएंगे या फिर कोई नया सियासी दांव चलने वाले हैं? वैसे सपा मुखिया अखिलेश यादव के पास नया सियासी दांव चलने की अवसर नहीं है।

अखिलेश यादव को ओम प्रकाश राजभर और स्वामी प्रसाद मौर्य की जरूरत जयंत चौधरी की तरह ही है। गठबंधन राजनीति की मजबूती के लिए स्वामी प्रसाद मौर्य और ओम प्रकाश राजभर की बात माननी ही चाहिए, आजम खान ने भी शायद यही सलाह उन्हें दी है। अब अखिलेश यादव को तय करना है कि विधान परिषद जाने को लेकर पार्टी नेता जो दबाव उन पर बना रहे हैं, उससे वह कैसे निपटते हैं।