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Editorial: टेलीस्कोप से अंतरिक्ष का ‘बादशाह बनेगा भारत 

5-6-2022

अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत ने बड़ी और ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है, जिसकी चर्चा हर तरफ हो रही है। दरअसल, उत्तराखंड में इंटरनेशनल लिक्विड मिरर टेलीस्कोप (ढ्ढरुरूञ्ज) स्थापित किया गया है। यह टेलीस्कोप ब्रह्मांड में होने वाली नई घटनाओं पर नजर रख सकेगा। ध्यान देने वाली बात है कि यह देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया का पहला ऐसा लिक्विड मिरर टेलीस्कोप है, जिसका इस्तेमाल खगोलीय प्रेक्षण के लिए किया जाएगा। पहले भी लिक्विड मिरर टेलीस्कोप बनाए गए हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल उपग्रहों पर नजर रखने या फिर सैन्य उद्देश्यों के लिए किया जाता था। वर्ष 2017 में नैनीताल स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान  ने कनाडा, बेल्जियम, पोलैंड और अन्य 9 देशों के साथ मिलकर ढ्ढरुरूञ्ज यानी इंटरनेशनल लिक्विड मिरर टेलीस्कोप के प्रोजेक्ट को शुरू किया था। टेलीस्कोप में एक पतली फिल्म से बना 4 मीटर व्यास वाला रोटेटिंग मिरर लगा हुआ है, जो प्रकाश को इक_ा करने और फोकस करने का काम करता है।

इस टेलीस्कोप की मदद से अंतरिक्ष से गिरने वाले मलबे और क्षुद्रग्रहों जैसी क्षणिक वस्तुओं पर नजर रखने में मदद मिलेगी। साथ ही यह सुपरनोवा को भी देखने का काम करेगा। ढ्ढरुरूञ्ज से कई आकाशगंगाओं और अन्य खगोलीय सोर्सेज की निगरानी करना आसान होगा। टेलीस्कोप में लगी पतली पारदर्शी फिल्म पारे को हवा से बचाने में मदद करती है। साथ ही इसमें एक बड़ा इलेक्ट्रॉनिक कैमरा भी लगाया गया, जो इमेज को रिकॉर्ड करने का काम करेगा। इसमें खास बात यह है कि इससे बहुत ज्यादा डेटा एकत्र किया जा सकेगा।

टेलीस्कोप से संबंधित जानकारी देते हुए ्रक्रढ्ढश्वस् के निदेशक प्रो. दीपांकर बताते हैं कि इस लिक्विड टेलीस्कोप को नैनीताल के करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर देवस्थल में समुद्र सतह से 2450 मीटर की ऊंचाई पर स्थापित किया गया। दूरबीन की स्थापना से ्रक्रढ्ढश्वस् समेत तमाम देशों एवं अंतरिक्ष से जुड़े कई नए रहस्यों की जानकारी हासिल करने में खगोल वैज्ञानिकों को मदद मिलेगी। प्रो. दीपांकर का दावा है कि दूरबीन से प्रतिदिन घटने वाली घटनाओं पर बारीकी से अध्ययन किया जा सकेगा। टेलीस्कोप की सहायता से अंतरिक्ष में होने वाली हलचल पर नजर रखी जा सकेगी। इससे साथ ही में भविष्य में होने वाले परिवर्तन को जानने में भी यह टेलीस्कोप काफी काम आएगा।

ध्यान देने वाली बात है कि यह टेलीस्कोप अंतरिक्ष के कचरे यानी स्श्चड्डष्द्ग ष्ठद्गड्ढह्म्द्बह्य का पता लगाने में भी सहायता करेगा। गौरतलब है कि अंतरिक्ष में एकत्रित हो रहा कचरा भविष्य के लिए एक बड़ा खतरा बनता जा रहा है। अंतरिक्ष में लगातार बढ़ रहे कचरे ने वैज्ञानिकों की चिंता भी बढ़ा दी है। वैज्ञानिकों के द्वारा लगातार यह चेतावनी दी जाती रही है कि अंतरिक्ष में सैटेलाइट का बढ़ता कचरा धरती के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। यह अंतरिक्ष में मौजूद तमाम उपग्रहों, अंतरिक्ष यात्रियों और अंतरिक्ष स्टेशन के लिए भविष्य में काफी घातक साबित हो सकता है। नासा के मुताबिक अंतरिक्ष कचरे में सैटेलाइट, स्पेसक्राफ्ट, बैटरी, रॉकेट और बाकी टैक्नोलॉजी के खराब और पुराने टुकड़े मौजूद हैं।

पूरी दुनिया के लिए मददगार साबित होगा यह टेलीस्कोप

आपको ज्ञात होगा कि इस वक्त दुनिया के सभी शक्तिशाली देशों के बीच अंतरिक्ष में अपना दबदबा कायम करने की होड़ मची हुई है, जो इस समस्या को और घातक रुप दे रही है। दिन प्रतिदिन अंतरिक्ष में कूड़ा बढ़ता ही चला जा रहा है। अंतरिक्ष में मौजूद मलबा बहुत तेज स्पीड में पृथ्वी की कक्षा में चक्कर काट रहा है। खास तौर पर निचली कक्षा में टुकड़े 25,265 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से चक्कर काट रहे हैं, जो दूसरे उपग्रहों से टकराकर भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। नासा के अनुसार धरती से 600 किलोमीटर तक की ऊंचाई पर जो कचरा मौजूद होगा वो कुछ सालों में धरती पर गिर भी सकता है। वहीं, एक हजार किलोमीटर या फिर उससे अधिक की ऊंचाई पर स्थित कचरा सदियों तक आसमान में ही चक्कर काटते रहते हैं।

कुछ आंकड़ों पर गौर करें तो संयुक्त राष्ट्र के स्पेस सर्विलांस नेटवर्क के मुताबिक अंतरिक्ष में 10 सेंटीमीटर से बड़े लगभग 23 हजार, एक सेंटीमीटर से बड़े 5 लाख और एक मिलीमीटर से बड़े 1 करोड़ से भी अधिक ऐसे टुकड़े मौजूद हैं। नासा के अनुमान के मुताबिक हर रोज करीब एक मलबा या तो पृथ्वी पर गिरता है या फिर वातावरण में आकर जल जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार कचरे से बड़े नुकसान की अब तक कोई बड़ी जानकारी प्राप्त नहीं हुई, क्योंकि कचरा पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करते ही जल जाता है और नष्ट हो जाता है। हालांकि, अगर कोई बड़ा पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर जाए और यह पूरी तरह से नष्ट न हो तो इसके और भी विनाशकारी परिणाम देखने को मिल सकते हैं। ऐसे में अब उत्तराखंड में जो लिक्विड मिरर टेलीस्कोप स्थापित किया गया है, वो अंतरिक्ष में मौजूद कचरे से संबंधित जानकारी देने में मदद करेगा। यह पूरी दुनिया के लिए मददगार साबित हो सकता है।