वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्र में पीएम मोदी जो कर रहे हैं वो आने वाली पीढिय़ों के लिए वरदान होगाआज विश्वभर में ऊर्जा संकट बढ़ता जा रहा है। जीवाश्म ईंधन पर भारी निर्भरता के कारण दुनिया जल्द से जल्द इसका विकल्प ढूंढऩे में जुटी है। वैकल्पिक ईंधन की खोज में भारत भी पीछे नहीं है। बात चाहे 2015 में पेरिस में हुए अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन का नेतृत्व करने की हो या पिछले साल ग्लासगो में 500 गीगावाट का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित करने की। भारत ने अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अक्षय ऊर्जा की ओर कदम बढ़ा दिए हैं।
गत वर्ष ग्लासगो में ष्टह्रक्क26 वैश्विक जलवायु शिखर सम्मेलन का हिस्सा बने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब भारत के लिए 2070 तक ‘शुद्ध शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य निर्धारित किया तो यह चौंकाने वाला नहीं था क्योंकि भारत इस दिशा में निरंतर काम कर रहा है। इस दौरान पीएम मोदी ने कहा, “औद्योगिक क्रांति जीवाश्म ईंधन द्वारा संचालित थी। इन जीवाश्म ईंधन के उपयोग ने कई देशों को खुद को विकसित करने में मदद की लेकिन हमारी पृथ्वी को गरीब बना दिया। जीवाश्म ईंधन की दौड़ ने भू-राजनीतिक तनाव भी पैदा किया है, लेकिन प्रौद्योगिकी ने हमें एक अद्भुत विकल्प दिया है।”
उन्होंने कहा कि भारतीय धर्मग्रंथों ने सैकड़ों साल पहले कहा था कि सूर्य ने पृथ्वी ग्रह पर हर चीज को जीवन दिया है और यह ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत है। प्रधानमंत्री ने कहा, “एक पूरे वर्ष में मानव जाति जितनी ऊर्जा की खपत करती है, उतनी ही ऊर्जा सूर्य एक घंटे में पृथ्वी को देता है। यह ऊर्जा स्वच्छ और टिकाऊ है।एकमात्र चुनौती यह है कि सौर ऊर्जा केवल दिन के समय उपलब्ध है और जलवायु परिस्थितियों पर भी निर्भर करती है। एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड इस समस्या का समाधान है। एक विश्वव्यापी सौर ऊर्जा ग्रिड हर जगह, हर समय स्वच्छ ऊर्जा सुनिश्चित कर सकता है। सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने से भंडारण की आवश्यकता कम हो सकती है।
सौर ऊर्जा परियोजनाओं से कार्बन फुटप्रिंट में सेंध लग सकती है।”इसी समय पीएम मोदी ने यह निर्धारित किया था कि 2030 तक देश अपनी आवश्यकता की आधी बिजली अक्षय स्रोतों से प्राप्त करेगा। इसका अर्थ था कि ऊर्जा के उस स्रोत में इतनी ताकत होनी चाहिए कि वह बिजली के लिए इस्तेमाल होने वाले कोयले, परिवहन में इस्तेमाल होने वाले ईंधन और खाना बनाने में इस्तेमाल होने वाले प्राकृतिक गैस की जगह ले सके।इस समय कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस देश की 75 प्रतिशत ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। भारत अगर 2030 तक अपने इस लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है तो यह एक गौरवान्वित करने वाला पल होगा।नई दिल्ली में एनर्जी एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर शिरीष गरुड़ ने अपने एक बयान में कहा, “20 त्रङ्ख से अब तक 55 त्रङ्ख सौर क्षमता भारत ने हासिल की है। लेकिन वर्ष के अंत तक इसे 100 त्रङ्ख और 2030 तक 300 त्रङ्ख तक ले जाना चुनौतीपूर्ण है। इसके लिए अधिक योजना की आवश्यकता होगी क्योंकि भूमि संसाधन, भंडारण और ग्रिड कनेक्टिविटी के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा है। हालाँकि ये लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय बाजार से अच्छे निवेश को आमंत्रित करते हैं। इससे बाजार में रोजगार और विश्वास बढ़ता है।”
अपने बयान में आगे उन्होंने कहा, “आज भारत अन्य कई देशों की तुलना में बेहतर है। हालाँकि कोयले को इतनी जल्दी नहीं बदला जा सकता लेकिन कोयला आधारित बिजली उत्पादन का प्रतिशत कम हो रहा है जोकि एक सकारात्मक संकेत है।”
इस दिशा में कार्य करते हुए भारत ने दिसंबर 2022 तक 175 त्रङ्ख के लक्ष्य के मुकाबले 110 त्रङ्ख अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित की है। यानी अपने लक्ष्य को 62 प्रतिशत पूरा कर लिया है। हालाँकि इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए देश के सभी राज्यों को इस दिशा में कार्य करना होगा।
भले ही तेलंगाना, कर्नाटक, राजस्थान और अंडमान और निकोबार ने पहले ही अपने इस लक्ष्य को पूरा कर लिया हो लेकिन अभी भी अन्य 27 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश इस लक्ष्य के आधे तक नहीं पहुँच सके हैं।
हालांकि इस नवीकरणीय ऊर्जा का केवल 20- 22 प्रतिशत ही पावर ग्रिड में जाता है और कोयला अभी भी भारत के ऊर्जा बाजार में सबसे आवश्यक सामग्री है। लेकिन पिछले वर्षों में कोयला की बाजार में हिस्सेदारी में 3 प्रतिशत की गिरावट आई है जोकि वैश्विक औसत से कहीं बेहतर है। सरकार अक्षय ऊर्जा पर और जोर दे रही है, और परिणाम देखकर लगता है कि भारत बिलकुल सही मार्ग पर अग्रसर है।
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