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मजिस्ट्रेट के समन को रद्द नहीं कर सकता है सेशन कोर्ट…इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कह दी बड़ी बात

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संजय पांडेय, प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि सेशन कोर्ट के अधिकारों को लेकर बड़ी टिप्‍पणी की है। कोर्ट ने कहा कि सत्र अदालत अपनी पुनरीक्षण शक्ति का प्रयोग करते हुए मजिस्ट्रेट की तरफ से पारित संज्ञान और समन आदेश को रद्द नहीं कर सकता है। सत्र न्यायालय का पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार बहुत सीमित है। यह आदेश न्यायमूर्ति शमीम अहमद की पीठ ने प्रभाकर पांडेय की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।

कोर्ट ने कहा कि यदि सत्र न्यायालय को पुनरीक्षण न्यायालय के रूप में कार्य करते समय कोई अवैधता, अनियमितता या क्षेत्राधिकार में कोई त्रुटि मिलती है तो उसे कार्यवाही को रद्द करने के बजाय केवल मजिस्ट्रेट के आदेश में त्रुटि को इंगित करके निर्देश जारी करने की शक्ति है। मामले में शिकायतकर्ता ने विरोधी पक्ष के खिलाफ आईपीसी की धारा 147, 504, 506, 427, 448, 379 के तहत एक एफआईआर दर्ज कराई थी। मामले में कथित तौर पर जांच अधिकारी ने एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसके बाद मजिस्ट्रेट ने विरोध याचिका पर विचार करने और मामले के रिकॉर्ड को देखने के बाद आरोपी को अप्रैल 2001 में धारा 379 सीआरपीसी के तहत तलब किया। इस आदेश को जिला एवं सत्र न्यायाधीश कन्नौज के समक्ष चुनौती दी गई। सत्र न्यायालय ने जांच अधिकारी द्वारा प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया और मजिस्ट्रेट के समन आदेश को रद्द कर दिया। इसलिए याची ने जिला एवं सत्र न्यायाधीश कन्नौज के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट याचिका दाखिल की।

कोर्ट ने कहा कि अगर जांच के बाद पुलिस इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि आरोपी को मुकदमे के लिए भेजने और कार्यवाही से छोड़ने के लिए अंतिम रिपोर्ट जमा करने को सही ठहराने के लिए कोई पर्याप्त सबूत या संदेह का कोई उचित आधार नहीं है, तो मजिस्ट्रेट के पास उपलब्ध चार तरीकों में से वह किसी एक को अपना सकता है। कोर्ट ने आदेश में उन तरीकों का भी जिक्र किया। कहा कि मामले में सत्र न्यायालय का आदेश पूरी तरह से आरोपी की दलील पर आधारित था। इसलिए कोर्ट ने पाया कि उक्त आदेश मजिस्ट्रेट के समन आदेश को रद्द करना विधिक तौर पर सही नहीं है।