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अखिलेश और ओमप्रकाश का अलग होना तय! चुनाव खत्‍म होते ही क्‍यों टूट जाती है SP की दोस्‍ती?

लखनऊ : चुनाव के बाद सपा के सहयोगियों के साथ रिश्ता टूटने का दौर जारी है। अब सुभासपा की राहें अलग होनी तय हो गई हैं। ओम प्रकाश राजभर (OP Rajbhar) के हमलों से नाराज अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने राष्ट्रपति चुनाव से जुड़ी बैठक में उनको न बुलाकर इसका साफ संकेत दे दिया है। वहीं, राजभर ने भी गठबंधन धर्म न निभाने का आरोप लगाते हुए अलग फैसला करने की बात कही है।

2019 के लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा से अलग होने के बाद ओम प्रकाश राजभर ने अपनी पार्टी सुभासपा का गठबंधन सपा के साथ कर लिया था। 2022 के विधानसभा चुनाव में दोनों दल साथ मिलकर चुनाव भी लड़े। राजभर ने जहां 6 सीटें जीतीं, वहीं, साथ का फायदा सपा को भी पूर्वांचल के आधा दर्जन जिलों में मिला। विधानसभा में वोटों में बढ़ोतरी के बाद भी सपा गठबंधन 125 सीट पर सिमट गया। उसके बाद से ही राजभर अखिलेश यादव की सक्रियता को लेकर लगातार सवाल उठा रहे हैं।

उपचुनाव के बाद और तल्ख हुए रिश्ते
आजमगढ़ उपचुनाव में हार के बाद उनका हमला और तेज हो गया है। इसको देखते हुए अखिलेश ने भी किनारा करना शुरू कर दिया है। गुरुवार को सपा कार्यालय पर बुलाई गई विधायकों व सहयोगी दलों की बैठक में अखिलेश ने रालोद के जयंत चौधरी को तो बुलाया, लेकिन, ओम प्रकाश राजभर को बुलावा नहीं भेजा। इससे पहले सदस्यता अभियान की शुरुआत के दौरान भी अखिलेश ने राजभर के सवाल पर कहा था कि हमें किसी की सलाह की जरूरत नहीं है।

चुनाव के बाद दरक जाती है दोस्ती
अखिलेश यादव की अगुआई में हुई गठबंधन की उम्र चुनाव तक ही सीमित रह जाती है। 2017 में सपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया और चुनाव के बाद ही वह टूट गया। 2019 में सपा-बसपा का गठबंधन हुआ और चुनाव खत्म होने के महीने भर के भीतर यह भी दम तोड़ गया। 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद केशव देव मौर्य अपना महान दल लेकर पहले अलग हो चुके हैं। अब ओमप्रकाश राजभर की भी राह अलग होने की ओर है। इससे अखिलेश की गैर-यादव ओबीसी जोड़ने की मुहिम को झटका लग सकता है। पूर्वांचल के आधा दर्जन से अधिक जिलों में राजभर वोटरों में सुभासपा का अच्छा दखल है। 2019 और 2022 के चुनाव में भाजपा ने राजभर से दोस्ती टूटने के नुकसान को महसूस किया था। इसलिए 2024 के पहले वह भी सुभासपा को अपने पाले में करने के लिए जुटी है।