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बुंदेलखंड में पैदा होने वाले कठिया गेहूं की दक्षिण भारत में डिमांड, ओडीओपी में शामिल कराने को लेकर तेज हुई कवायद

बांदा : बुंदेलखंड में कठिंया गेहूं की खेती वर्षों पुरानी है। इस गेहूं से उपमा, उत्तपम सूजी एवं दलिया बनाया जाता है। जिसकी दक्षिण भारत के कर्नाटक व आंध्र प्रदेश में बहुत मांग है। इस गेहूं को ओडीओपी में शामिल कराने के लिए प्रशासन की ओर से कवायद शुरू हो गई है। कठिंया प्रजाति के गेहूं में जहां अच्छी सेहत का राज छिपा है, वहीं बिना सिंचाई व खाद के बेहतर उपज देने वाली यह गेहूं की सबसे अच्छी देसी प्रजाति है।

कब्ज के 20 रोगों का दुशमन
बुंदेलखंड की धरती पर कभी कठिंया की फसल लहलहाती थी। कहा जाता है कि ‘कठिंया’ गेहूं जब चलता था, तब किसी को पेट की बीमारी नहीं होती थी। यह सुपाच्य व पौष्टिकता से भरपूर है। प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह का कहना है कि कठिंया गेहूं की पैदावार करीब छह से आठ कुंतल प्रति बीघा है। इसमें बुवाई के समय खेतों में नमी हो। अगर पकने के पूर्व बीच में हल्की बारिश का सहयोग मिला तो यह विदेशी गेहूं की प्रजातियों को मात दे देता है। इसमें रासायनिक खाद डालने की बिल्कुल जरूरत नहीं है। कठिंया के सेवन से कभी कब्ज (गैस) की शिकायत नहीं होती। कब्ज से ही 20 रोगों पैदा होते हैं। इतने गुणों से भरपूर होने के बावजूद कठिंया प्रजाति का गेहूं उगाने में किसान ज्यादा रूचि नही लेतें हैं।

डीएम ने ब्रांड का नामकरण किया
इस संबंध में गुरुवार को जिलाधिकारी की अध्यक्षता में कठिंया गेहूं की उत्पादकता संभावना एवं ओडीओपी में शामिल कराने के उद्देश्य से कार्यशाला का आयोजन किया। जिसमें जिलाधिकारी ने गेहूं के उत्पादन और संभावनाओं पर चर्चा करते हुए कहा कि गेहूं उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए मार्केटिंग का कार्य करें। उन्होंने इसको एक ब्रांड के रूप में प्रचारित एवं प्रसारित करने पर बल दिया। बताया कि दक्षिण भारत में इसकी अधिक मांग है। उन्होंने इसे प्रमोट करने के लिए ‘कठिया पेट की लाल दवा,’ ‘कठिंया- ऋषि प्रसाद’ ब्रांड नामकरण किया। यह भी बताया कि बांदा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति से बात करके कठिंया गेहूं की परम्परागत प्रजातियों के बीज संवर्धन का कार्य किया जाएगा।

एनआरएलएम समूह की महिलाएं दलिया बनाने में जुटी
इधर शासन प्रशासन द्वारा कठिंया गेहूं की खेती करने पर बल दिए जाने से जहां किसानों का उत्साह बढ़ा है। वहीं इस गेहूं से बनने वाले उत्पाद तैयार करने के लिए एनआरएलएम समूह की महिलाएं दलिया बनाने, पैकेजिंग और मार्केटिंग के काम में जुट गई हैं। इसी जिले के जसपुरा में नाबार्ड द्वारा जसपुरा उन्नत किसान प्रोड्यूसर कंपनी भी 300 सदस्यों के साथ कठिंया गेहूं पर काम कर रही है।

इसी तरह जिला उद्योग केंद्र बांदा के माध्यम से तहसील नरैनी में दलिया बनाने के लिए दो प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित की गई हैं। वहीं प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह द्वारा ‘गांव दलिया’ बनाकर अच्छा व्यवसाय किया जा रहा है। प्रेम सिंह के मुताबिक कठिया गेहूं से बनने वाले दलिया, उपमा, सूजी एवं उत्तपम के कारण दक्षिण भारत में इसकी बहुत मांग है और आने वाले दिनों में इसकी डिमांड और बढ़ेगी।
रिपोर्ट-अनिल सिंह