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योगी आदित्यनाथ का जनसंख्या नियंत्रण पर बयान एक संकेत, क्या अब बिल होगा लागू?

लखनऊ: उत्तर प्रदेश जनसंख्या नियंत्रण बिल 2022 (Uttar Pradesh Population Control Act 2022) को लॉन्च किए एक साल बीत गया। पिछले साल 11 जुलाई को जब इस बिल को सीएम योगी आदित्यनाथ सरकार (Yogi Adityanath Government) की ओर से लॉन्च किया गया था तो साफ किया गया था कि एक साल बाद इसे प्रदेश में लागू कर दिया जाएगा। सोमवार को सीएम योगी आदित्यनाथ जब जनसंख्या नियंत्रण के लिए जागरूकता रथों को रवाना कर रहे थे तो उन्होंने सीधे तो नहीं, संकेतों में जनसंख्या विस्फोट को प्रदेश के विकास में बाधक बता दिया। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि क्या बिल लॉन्च किए जाने के एक साल के बाद उसे लागू कर दिया गया है? इस संबंध में भले ही राज्य सरकार की ओर से आधिकारिक तौर पर कोई बयान सामने नहीं आया है, लेकिन नियमों के आधार पर इसे प्रदेश में लागू किया जा सकता है। ड्राफ्ट बिल पर 19 जुलाई 2021 तक आम लोगों से सुझाव और शिकायतें मांगी गई थी। उन सुझाव और शिकायतों के आधार पर बिल में कुछ बदलाव हो सकते हैं। अब सवाल यह है कि क्या मॉनसून सत्र में इस बिल को कानून का रूप देने की तैयारी कर रही है।

योगी सरकार की ओर से 11 जुलाई 2021 को विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर प्रदेश के लिए नई जनसंख्या नीति की घोषणा की गई। इस बिल में साफ किया गया है कि दो से अधिक बच्चे वाले अभिभावकों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलेगा। ऐसे लोग सरकारी नौकरी के लिए आवेदन भी नहीं कर पाएंगे। पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने पर भी ऐसे लोगों को रोकने का प्रावधान है। एक बच्चे वाले अभिभावकों को कई प्रकार की सुविधा देने की योजना है। इस बिल का मुख्य उद्देश्य प्रदेश की जनसंख्या को नियंत्रण में लाने की है। इसको देखते हुए योगी सरकार की ओर से वन चाइल्ड पॉलिसी को प्रमोट करने की तैयारी चल रही है।

प्रजनन दर है सबसे अधिक चिंता का कारण
उत्तर प्रदेश में प्रजनन दर ही सबसे अधिक चिंता का विषय बना हुआ है। देश के सबसे राज्य में सबसे बड़ी आबादी निवास करती है। साथ ही, यहां की प्रजनन दर भी इस आबादी को तेजी से बढ़ाती दिख रही है। यूपी के प्रजनन दर की औसत को देखें तो एक महिला औसतन 3.15 बच्चों को जन्म देती है। यानी, एक महिला को तीन से अधिक बच्चे होते हैं। इसे धर्म के आधार पर देखें तो हिंदू महिलाओं में प्रजनन दर औसतन 3.06 है। वहीं, एक मुस्लिम महिलाओं में यह दर 3.6 है। मतलब, एक मुस्लिम महिला औसतन 3.6 बच्चों को जन्म देती है। दो या उससे कम बच्चे वाली माताओं की संख्या को देखा जाए तो 44.2 फीसदी का आंकड़ा ही दिखता है। मतलब, 55.8 फीसदी महिलाएं ऐसी हैं, जो दो से अधिक बच्चों को जन्म दे रही हैं।

दो या दो से कम बच्चों की संख्या को धार्मिक आधार पर देखा जाए तो 44.85 फीसदी महिलाओं को 2 या उससे कम बच्चे हैं। 55.15 फीसदी महिलाओं को दो से अधिक बच्चे हैं। वहीं, मुस्लिम समाज में 40.38 फीसदी महिलाओं को ही 2 या इससे कम बच्चे हैं। 59.62 फीसदी मुस्लिम महिलाओं को दो से अधिक बच्चे हैं। ऐसे में योगी सरकार की ओर से सभी वर्गों में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर जागरूकता पैदा करने की जरूरत बताई गई है। यूपी सरकार में पूर्व मंत्री रहे सिद्धार्थनाथ सिंह कहते हैं कि जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम को धार्मिक नजरिए से देखने की जरूरत नहीं है।

योगी जनसंख्या वृद्धि की चुनौतियों की कर रहे बात
सीएम योगी आदित्यनाथ जनसंख्या वृद्धि की चुनौतियों की बात कर रहे हैं। विश्व जनसंख्या दिवस 2022 के मौके पर आयोजित कार्यक्रम उन्होंने कहा कि बढ़ती जनसंख्या की स्थिति काफी गंभीर है। हमें जनसंख्या को स्थिर करने की रणनीति पर काम करना होगा। इसके लिए सभी मत-मजहब, वर्ग, संप्रदाय, क्षेत्र को समान रूप से मिलकर प्रयास करना होगा। सीएम ने कहा भी कि एक निश्चित पैमाने पर जनसंख्या समाज की उपलब्धि भी है, लेकिन यह तब ही संभव है जब समाज स्वस्थ एवं दक्ष हो। जहां बीमारी हो, संसाधनों का अभाव हो वहां जनसंख्या चुनौती होती है। प्रदेश में मैटरनल एनिमिया, मातृ, शिशु मृत्यु दर को नियंत्रित करने की कोशिशों के बीच हमारे सामने एक और चुनौती है।

योगी ने बच्चों और माताओं की मौत का जिक्र भी किया। उन्होंने कहा कि हमारे यहां एक वर्ग विशेष में माता और बच्चों की मृत्यु दर दोनों ही ज्यादा है। अगर दो बच्चों के जन्म के बीच अंतराल कम है तो इसका खमियाजा माताओं और बच्चों की मृत्यु दर पर भी पड़ना तय है। इसकी कीमत समाज को भी चुकानी पड़ेगी। ऐसे में इस पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। सीएम योगी चुनौतियों की चर्चा करते दिख रहे हैं। दूसरी तरफ राजनीतिक पारा गरमा गया है।

चुनौतियों से निपटने को कानून
चुनौतियों से निपटने के लिए ही योगी सरकार ने वर्ष 2021 में यूपी जनसंख्या नियंत्रण बिल 2022 लॉन्च किया था। अब माना जा रहा है कि एक साल बाद इस बिल को लागू किए जाने की प्रक्रिया शुरू होने वाली है। ऐसे में सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क का बयान अहम हो जाता है। वे कहते हैं कि बच्चे अल्लाह की नेमत होते हैं। मतलब, जागरूकता कार्यक्रम शुरू होने के साथ ही वे इसके विरोध में उतरते दिख रहे हैं। साथ ही, जनसंख्या नियंत्रण कानून पर भी वे हमलावर दिख रहे हैं। उनका कहना है कि तालीम से जनसंख्या विस्फोट जैसे मसलों को हल किया जा सकता है। ऐसे में कानून की कोई जरूरत नहीं है। बिल के कानून का रूप लेने और उसे लागू किए जाने से पहले ही विरोध के स्वर मुखर होने लगे हैं। वहीं, इसके समर्थन में भी बात उठने लगी है।

जनसंख्या नियंत्रण कानून की मुहिम चलाने वाले केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह इस मामले में साफ तौर पर कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ की मंशा को समझने की जरूरत है। योगी ने ऐसा कुछ नहीं कहा है, जिसका विरोध होना चाहिए। जनसंख्या नियंत्रण आज देश के स्तर पर जरूरी है। इस दिशा में कठोर कदम उठाए ही जाने चाहिए। वे प्रदेश और देश के हित की ही बात कर रहे हैं। डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक भी उनके सुर में सुर मिलाते दिख रहे हैं।

यूपी जनसंख्या नियत्रण कानून में क्या है खास?
वन चाइल्ड पॉलिसी : यूपी सरकार की ओर से तैयार कराए गए बिल में गरीबी रेख से नीचे आने वाले परिवारों को एक बच्चा होने की स्थिति में कई प्रकार का प्रोत्साहन देने की रणनीति तैयार की गई है। परिवार में एक लड़का होने पर 77 हजार रुपये और लड़की होने पर 1 लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान है। एक बच्चा होने के बाद बच्चा बंद होने का ऑपरेशन कराने पर यह सुविधा दी जाएगी। ऐसे परिवार की बच्चियों को उच्च शिक्षा तक मुफ्त पढ़ाई की सुविधा मिलेगी। वहीं, पुत्र को 20 वर्ष की आयु तक मुफ्त शिक्षा देने का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा उच्च शिक्षा के लिए स्कॉलरशिप और सरकारी नौकरी में वरीयता देने का निर्णय लिया गया है।

दो से अधिक बच्चों के होने पर होगा नुकसान
बिल में प्रावधान किया गया है कि दो से अधिक बच्चों वाले अभिभावक सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं ले पाएंगे। ऐसे अभिभावक सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं। राशन कार्ड में केवल चार सदस्यों को ही शामिल किया जा सकेगा। ऐसे लोग पंचायत और स्थानीय निकाय का चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। वहीं, दो बच्चों तक वाले सरकारी नौकरी करने वाले सरकारी कर्मियों को दो अतिरिक्त वेतन वृद्धि का लाभ मिलेगा। इसके इलावा पूरा वेतन और भत्ते के साथ 12 महीने का मातृत्व या पितृत्व अवकाश दिया जाएगा। मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा और जीवनसाथी का बीमा भी किया जाएगा। एक बच्चे वाले कर्मियों को चार अतिरिक्त इंक्रीमेंट दिया जाएगा।

कानून नहीं पालन करने वालों पर होगी कार्रवाई
जनसंख्या नियंत्रण कानून नहीं मानने पर सरकारी कर्मचारी को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त करने और भविष्य में किसी भी सरकारी नौकरी के लिए आवेदन नहीं करने जैसे पनिशमेंट देने की भी योजना है। ऐसे अभिभावकों को 77 सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं देने का प्रस्ताव है। साथ ही, सरकारी कर्मियों को भविष्य में किसी प्रकार का प्रमोशन भी नहीं दिया जा सकता है।

जनसंख्या 20.23 प्रतिशत की वृद्धि
राज्य विधि आयोग ने कानून बनाने के समर्थन में कहा है कि वर्ष 2001 से 2011 के बीच यूपी की जनसंख्या में करीब 20.23 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अकेले गाजियाबाद में 42.26 प्रतिशत जनसंख्या की वृद्धि हुई है। वहीं लखनऊ, सीतापुर, बरेली और मुरादाबाद में यह वृद्धि 23 से लेकर 25.82 प्रतिशत तक है। अगर जनसंख्या इसी रफ्तार से बढ़ती रही तो आने वाली पीढ़ी को स्वास्थ्य, शिक्षा, शुद्ध पेयजल, रोजगार मिलने में काफी समस्या आएगी। इसको देखते हुए योगी सरकार की ओर से जनसंख्या नियंत्रण पर जोर दिया जा रहा है।

दो से कम बच्चे तो अधिक सुविधाएं
विधेयक के अनुसार, दो ही बच्चों तक परिवार सीमित करने वाले जो अभिभावक सरकारी नौकरी में हैं और स्वैच्छिक नसबंदी करवाते हैं तो उन्हें दो अतिरिक्त इंक्रिमेंट, प्रमोशन, सरकारी आवासीय योजनाओं में छूट, पीएफ में नियोक्ता योगदान बढ़ाने जैसी कई सुविधाएं दी जाएंगी। साथ ही, कहा गया है कि अगर कोई आशा वर्कर किसी को स्वेच्छा से नसबंदी के लिए प्रेरित करती है तो उसे अतिरिक्त मानदेय मिलेगा। वहीं, दो बच्चे वालों को ग्रीन और एक बच्चे वाले को गोल्ड कार्ड दिए जाने का प्रस्ताव है।