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Agra: कोरोना ने छीना परिवार का मुखिया…, बेटियों ने संभाला घर, ट्यूशन पढ़ाकर कर रहीं परवरिश

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परिवार हंसी-खुशी आगे बढ़ रहा था कि अचानक कोरोना ने घर के मुखिया यानी पिता को छीन लिया। एक झटके में परिवार की दशा ही बदल गई। ऐसे में हिम्मत कर बेटियां आगे बढ़ीं और उन्होंने सब कुछ संभाल लिया। आगरा में कई बेटियां ट्यूशन पढ़ाकर भाई-बहनों को आगे बढ़ा रही हैं। कहीं रुपये कम न पड़ जाएं, इसके लिए ऑटो नहीं बल्कि ज्यादातर पैदल हर सफर पूरा करती हैं। 

18 की उम्र में जिम्मेदारी बड़ी

दयालबाग के रोशनबाग की प्रतिभा सिंह परमार 18 साल की हैं। सेंट जोंस कॉलेज से बीए कर रही हैं। कोरोना ने अप्रैल 2022 में पिता ओमशंकर को छीन लिया। मां ऐलेस दिल की मरीज हैं। घर में एक छोटा भाई और बहन हैं। बकौल प्रतिभा, बड़ी होने के नाते उसने जिम्मेदारी उठाई। दोनों बहनें ट्यूशन पढ़ाकर घर खर्च चला रही हैं। रुपये बचाने के लिए वह हर दिन ज्यादा से ज्यादा दूरी पैदल ही तय करती है। 

योजना से पढ़ाई भी पूरी नहीं हो पाती

दयालबाग की 21 वर्षीय शालिनी यादव के पिता महेश यादव व मां मनोरमा की अप्रैल 2022 में कोरोना से जान चली गई। शालिनी ने बताया कि हमारी तो जैसे दुनिया ही उजड़ गई। छोटा भाई आयुष्मान और छोटी बहन साक्षी हैं। बाल सेवा योजना से मिले 12 हजार रुपये से पढ़ाई का खर्चा भी पूरा नहीं होता। तीनों बहन-भाई ट्यूशन पढ़ाते और खुद भी पढ़ते हैं। मेरी जिम्मेदारी ज्यादा है। सभी की जरूरतों का ख्याल रखती हूं। 

घर खर्चे के लिए ट्यूशन
फतेहाबाद की रक्षिता जैन की उम्र 15 साल है। बताया कि पिता राजन कुमार सिन्हा का 2020 में निधन हो गया। जीने की इच्छा नहीं थी, फिर मां रजनी का ख्याल आया। खुद को संभाला और बुआ के घर रहने के लिए जीवनी मंडी आ गईं। छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती हैं। मां को किसी भी चीज की कमी नहीं होने देती। 

बच्चों की काउंसलर अर्शी नाज ने कहा कि इन बच्चों को काउंसिलिंग के दौरान पता चलता है कि यह कितने दर्द और परेशानी से गुजर रहे हैं। धीरे-धीरे चीजों को स्वीकार करने लगे हैं, यह देख अच्छा लगता है। बेटियों ने पिता की मौत के बाद घर को संभाला है। 

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परिवार हंसी-खुशी आगे बढ़ रहा था कि अचानक कोरोना ने घर के मुखिया यानी पिता को छीन लिया। एक झटके में परिवार की दशा ही बदल गई। ऐसे में हिम्मत कर बेटियां आगे बढ़ीं और उन्होंने सब कुछ संभाल लिया। आगरा में कई बेटियां ट्यूशन पढ़ाकर भाई-बहनों को आगे बढ़ा रही हैं। कहीं रुपये कम न पड़ जाएं, इसके लिए ऑटो नहीं बल्कि ज्यादातर पैदल हर सफर पूरा करती हैं। 

18 की उम्र में जिम्मेदारी बड़ी

दयालबाग के रोशनबाग की प्रतिभा सिंह परमार 18 साल की हैं। सेंट जोंस कॉलेज से बीए कर रही हैं। कोरोना ने अप्रैल 2022 में पिता ओमशंकर को छीन लिया। मां ऐलेस दिल की मरीज हैं। घर में एक छोटा भाई और बहन हैं। बकौल प्रतिभा, बड़ी होने के नाते उसने जिम्मेदारी उठाई। दोनों बहनें ट्यूशन पढ़ाकर घर खर्च चला रही हैं। रुपये बचाने के लिए वह हर दिन ज्यादा से ज्यादा दूरी पैदल ही तय करती है। 

योजना से पढ़ाई भी पूरी नहीं हो पाती

दयालबाग की 21 वर्षीय शालिनी यादव के पिता महेश यादव व मां मनोरमा की अप्रैल 2022 में कोरोना से जान चली गई। शालिनी ने बताया कि हमारी तो जैसे दुनिया ही उजड़ गई। छोटा भाई आयुष्मान और छोटी बहन साक्षी हैं। बाल सेवा योजना से मिले 12 हजार रुपये से पढ़ाई का खर्चा भी पूरा नहीं होता। तीनों बहन-भाई ट्यूशन पढ़ाते और खुद भी पढ़ते हैं। मेरी जिम्मेदारी ज्यादा है। सभी की जरूरतों का ख्याल रखती हूं।