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Editorial:वैकल्पिक ऊर्जा में भारत बने आत्मनिर्भर

20-7-2022

जीवाश्म ईंधन की खोज ने मानव इतिहास के विकास को नई दिशा दी। कई दशकों से जीवाश्म ईंधन विश्व की ऊर्जा मांगों को पूरा करता आ रहा है। परंतु इसके साथ ही जीवाश्म ईधन से जुड़ी कई चुनौतियां भी आती है, जिसका सामना आज विश्व कर रहा है। दुनिया में ऊर्जा की खपत बढ़ती ही चली जा रही है। इसके अलावा जीवाश्म ईंधन हमारे पर्यायवरण के लिए भी बेहद ही खतरनाक है। इन कारणों से विश्व ऊर्जा के बेहतर विकल्प की तलाश में जुटा हुआ है।

देखा जाए तो आज के समय में ऊर्जा के कई वैकल्पिक स्त्रोत हमारे सामने है, जो दुनिया की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के साथ पर्यायवरण अनुकूल भी माने जाते है। अगले कुछ वर्षों में तमाम देशों ने कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए नवीकरण ऊर्जा को बढ़ावा देने का संकल्प लिया है। आज के समय में विश्व नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने पर काफी जोर दिया जा रहा है। परंतु अगर सभी नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोतों का पूरा इस्तेमाल कर लें, तो भी बिजली की आवश्यकता पूरी नहीं किया जा सकता। इसके अलावा भी इसके साथ कई तरह की समस्याएं है, जिस कारण परमाणु ऊर्जा हमारे भविष्य की सबसे बड़ी जरूरत बनता जा रहा है।

कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए परमाणु ऊर्जा को उपयोग में लाने बेहद ही आवश्यक होता चला जा रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद विश्व एक बार फिर परमाणु ऊर्जा के उपयोग पर सोचने के लिए मजबूर हो रहा है। युद्ध के दौरान फरवरी में फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रो ने अपने एक बयान में कहा था कि परमाणु पुनर्जानगरण का समय आ गया है। यहां जान लें कि फ्रांस के राष्ट्रपति ने पांच साल पहले परमाणु पर अपना बिजली उत्पादन एक तिहाई घटाने की घोषणा की थी। परंतु अब बढ़ती ऊर्जा मांगों को देखते हुए फ्रांस एक बार फिर परमाणु ऊर्जा का रूख करने की तैयारी में है। फ्रांस में बिजली उत्पादन में 70 फीसदी हिस्सेदारी न्यूक्लियर पावर प्लांट की है, जिस लिहाज से वो इस मामले में दुनिया में पहले नंबर पर आता है। फुकुशिमा में हुए हादसे के बाद फ्रांस समेत कई देशों ने परमाणु ऊर्जा के उपयोग को कम करने का निर्णय लिया था। परंतु अब बढ़ते संकट को देखते हुए दुनिया का नजरिया परमाणु ऊर्जा को लेकर बदलने लगा।

दरअसल रिन्युबल ऊर्जा स्त्रोतों को अपनाना तो संभव है। यह एक सस्ता और पर्यायवरण के लिए बेहतर विकल्प भी है। परंतु इसके माध्यम से बिजली पैदा करने की क्षमता सीमित है। इसके अलावा इसके लिए काफी जगह और मैटेरियल की भी जरूरत है। यही कारण है कि वैकल्पिक ऊर्जा स्त्रोतों में बेहतर विकल्प परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा देना नजर आता है, जिसके माध्यम से ऊर्जा के लिए कोयला, गैस और तेल पर निर्भरता एकदम खत्म हो जाए। परमाणु ऊर्जा को भविष्य की ऊर्जा की तरह देखा जाता है। यह असीमित ऊर्जा हासिल करने में मदद करता है। इससे प्रदूषण कम होता है और साथ ही संसाधन भी कम खर्च होते है।

देखा जाए तो आज के समय में कई देश ऐसे है, जो परमाणु ऊर्जा को आने वाले समय की जरूरत मानते हुए इसके उपयोग को बढ़ावा देने के प्रयासों में जुटे है। चीन इसमें सबसे आगे है। चीन इस समय परमाणु ऊर्जा पर सबसे अधिक दांव लगा रहा है। वर्ष 2016 से 2020 के दौरान चीन ने अपना परमाणु बिजली उत्पादन बढ़ाकर दोगुना कर लिया। चीन ने इस बीच 47 गीगावाट बिजली का उत्पादन इसके माध्यम से किया। वर्ष 2035 तक चीन का लक्ष्य इसे 180 गीगावाट तक पहुंचाने का है।

अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के अनुसार इस वक्त दुनिया के 35 देशों में कुल 443 न्यूकिलयर रिएक्टर है, जिनका उपयोग बिजली उत्पादन के लिए किया जा रहा है। इसके माध्यम से विश्व की आवश्यकता की 10 फीसदी बिजली का उत्पादन किया जाता है। आंकड़ों के अनुसार अभी के वक्त में अमेरिका के पास सबसे अधिक 93 परमाणु ऊर्जा रिएक्टर हैं। इसके बाद फ्रांस के पास 56, चीन के पास 51 और रूस के पास 38 रिएक्टर हैं। बात भारत की करें तो इस सूची में वे सांतवें नंबर पर आता है। वर्तमान समय में भारत के पास 23 रिएक्टर के साथ है।

आईएईए की रिपोर्ट बताती है कि भारत, चीन, रूस, समेत कुल 20 देशों में फिलहाल 54 परमाणु ऊर्जा रिएक्टर ऐसे है, जिनका निर्माण चल रहा हैं। यूरोपीय संघ के 27 देशों में से 13 देशों के पास परमाणु ऊर्जा संयंत्र हैं, जिसमें कुल 107 रिएक्टर संचालित हैं। यह यूरोपीय संघ में बिजली का 26 फीसदी भाग का उत्पादन करता है। बात चीन की करें तो यहां अभी 50 रिएक्टर संचालित हो रहे हैं। वहीं, 13 का निर्माण कार्य जारी है। इसी तरह भारत में कई परमाणु संयंत्रों का निर्माण कार्य चल रहा है। आने वाले वक्त की जरूरत को समझते हुए भारत में भी परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा देने के प्रयास हो रहे है। भारत आने वाले वर्षों में एक साथ 10 परमाणु रिएक्टरों का निर्माण शुरू करने की तैयारी में है। कर्नाटक के कैगा में अगले वर्ष 700 मेगावाट के परमाणु ऊर्जा संयंत्र की नींव डाली जाएगी। इसके बाद अगले तीन वर्षों में भारत में ‘फ्लीट मोड’ से एक साथ 10 परमाणु संयंत्रों के निर्माण होगा।