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Editorial:क्या चीन के कर्ज के जाल में फं से पाकिस्तान के पास कोई रास्ता है?

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29-7-2022

कुनबा बचाने के लिए जब घर को नीलाम करना पड़ जाए तो समझ लो सब कुछ ख़त्म हो गया। पाकिस्तान का हाल भी इन दिनों कुछ ऐसा ही है जहाँ उसे अपने देश को चलाने के लिए अब दान-दक्षिणा भी नहीं मिल रही है तो वहीं इसका उपाय निकाला भी तो ऐसा जो पाकिस्तान की लंका अवश्य लगा देगा। दिवालिया होने की कगार पर खड़े पाकिस्तान ने अब अपने जीवन को बचाने के लिए अपने देश की सरकारी संपत्ति को दूसरे देशों को बेचने के प्रावधान वाले अध्यादेश को पास कर दिया है। इसके बाद अब पाकिस्तान धीरे-धीरे कर जड़-जमीन-जोरू की तजऱ् पर जड़ और जमीन को नीलाम कर अपनी साख बचाने की कोशिश तो कर रहा है पर वो हो नहीं पा रहा है। अब संपत्ति बेचेंगे भी तो सबसे पहले जिस देश का नाम आता है वो है चीन, ऐसे में अब पाकिस्तान अपने अस्तित्व को बचाने के लिए चीन को अपनी संपत्ति बेचने जा रहा है।

दरअसल, देश को ऋणों में चूक के कुल संकट से बचाने के लिए, पाकिस्तान कैबिनेट ने गुरुवार को अंतर-सरकारी वाणिज्यिक लेनदेन अध्यादेश 2022 नामक एक अध्यादेश जारी किया, जो प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की सरकार को राज्य की संपत्ति विदेशी संस्थाओं और सरकारों को बेचने की अनुमति देगा। इसका मूल कारण ही यह है कि पाकिस्तान कज़ऱ् में डूबने के साथ ही अब उन निकायों से वंचित हो चला है जो अबतक उसे ऋण दे दिया करते थे, लेकिन जबसे नए नियम और प्रावधानों के साथ पुराने कज़ऱ् को लौटाने की बात आई तो पाकिस्तान की हमेशा की तरह गिघ्घी बंध गई। ऐसे में देश तो चलाना ही है तो पैसा तो चाहिए ही था, तो पाकिस्तान के अंतर्मन की खुराफात ने सरकारी संपत्ति को बेचने वाली नीति को जन्म दिया।

जैसे-जैसे पाकिस्तान पर विदेश कज़ऱ् बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे उसका विदेशी मुद्रा भण्डार कम होता जा रहा है। ऐसे में इस अध्यादेश को लाकर पकिस्तान ने स्वयं को दिवालिया होने से बचाने के लिए पुख्ता इंतज़ाम करने के प्रयास किए है। द एक्सप्रेस ट्रिब्यून अखबार के मुताबिक, अंतर-सरकारी वाणिज्यिक लेनदेन अध्यादेश 2022 को कैबिनेट ने गुरुवार को मंजूरी दी थी। खबर के मुताबिक अध्यादेश में प्रावधान किया गया है कि सरकार द्वारा संपत्ति या हिस्सेदारी दूसरे देशों को बेचने के खिलाफ दायर याचिका पर अदालत सुनवाई नहीं करेगी। अखबार ने कहा कि राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने अब तक इस अध्यादेश पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।

यह अध्यादेश मुख्य रूप से यूएई को तेल और गैस कंपनियों की हिस्सेदारी बेचने के लिए लाया गया है। पाकिस्तान पेट्रोलियम लिमिटेड, ऑयल गैस डेवलपमेंट कंपनी लिमिटेड और गैस कंपनी कुछ ऐसी कंपनियां हैं जो सरकार के रडार पर हैं जिन्हें विदेशी कंपनियों को बेचा जाना है। कथित तौर पर, मई में, इस्लामाबाद द्वारा ऋण चुकाने में विफल रहने के बाद, संयुक्त अरब अमीरात ने पाकिस्तान को नकद जमा देने से इनकार कर दिया था। उस वक्त यूएई ने पाकिस्तान को पश्चिम एशियाई देश से निवेश के लिए अपनी कंपनियां खोलने का निर्देश दिया था। संयुक्त अरब अमीरात को हिस्सेदारी बेचकर, पाकिस्तान को $2 बिलियन से $2.5 बिलियन के करीब कहीं भी जुटाने की उम्मीद है, जो उसे डिफ़ॉल्टर बनने से बचाने में मदद कर सकता है।

जो आईएमएफ पाकिस्तान को ऋण दे दिया करता था और पाकिस्तान स्वयं उस पर आश्रित रहता आया है, अब उस ढ्ढरूस्न ने भी सख्ती अपना ली है। आईएमएफ ने देश को उबारने के लिए खजाना खोलने से पहले कुछ शर्तें रखी हैं। कथित तौर पर, भुगतान की अगली किश्त प्राप्त करने के लिए पाकिस्तान को मित्र देशों से 4 बिलियन डॉलर जुटाने होंगे।

अब जब कज़ऱ् की बात निकली ही है तो बताते चलें कि, वित्त वर्ष 2021-2022 की पहली तीन तिमाही में पाकिस्तान का विदेशी कर्ज बढ़कर 10.886 अरब डॉलर हो गया है जबकि पूरे वित्त वर्ष 2021 में विदेशी कर्ज 13.38 अरब डॉलर था। 2022 की पहली तिमाही में कर्ज 1.653 अरब डॉलर रहा जबकि 2020-2021 की पहली तिमाही में यह 3.51 अरब डॉलर था। लेकिन 2022 की दूसरी तिमाही में कर्ज बढ़कर 4.357 अरब डॉलर और तीसरी तिमाही में बढ़कर 4.875 अरब डॉलर हो गया।

सत्य तो यह है कि ऋण के रडार में आ चुका पाकिस्तान अब अगला श्रीलंका बनने की राह पर है और यह एक फैक्ट है। चूंकि पाकिस्तान के हाथ न माया मिली न राम वाली स्थिति है, जिस चीन को वो मित्र समझता था, पाकिस्तान के कंगाल होने में उसी चीन की सबसे बड़ा हाथ था। अब अध्यादेश लाकर देश को बेचने की राह में पाकिस्तान चीन को ही अपनी संपत्तियां बेचने में लगा है।