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दर्द की दीवार गिराकर आगरा के रामलाल वृद्ध आश्रम के 300 बुजुर्गों ने प्यार का नया संसार बसा लिया है। इन बुजुर्गों में से कई ऐसे हैं, जो अब घर वापस जाना नहीं चाहते हैं। उनका कहना है कि आश्रम में उनका सच्चा और अच्छा परिवार बन चुका है। अब आश्रम ही मेरा घर है, यहीं जीवन की शाम कटेगी।
उनके पास क्या जाना, जो कीमत नहीं जान सके…, यह कहते हुए पांच साल से आश्रम में रह रहे सुरेश चंद फफक पड़ते हैं। सुरेश को उनके बेटे ने घर से बाहर निकाल दिया था। सुरेश ने बताया कि तब वह काफी देर तक घर की देहरी के बाहर बैठे रहे थे। ये सोचकर कि बेटे का गुस्सा शांत हो जाएगा तो अंदर बुला लेगा। ऐसा हुआ नहीं। बाद में दो बार लेने आया, लेकिन मैं नहीं जाना चाहता।
आश्रम में आठ साल से रह रहे बुजुर्ग महेश कुमार से जब कोई उनके घर की बात करता है, तो वह गुस्सा हो जाते हैं। कहते हैं कि बेटे-बहू की बातों छोड़कर यहां की बात करो। यहां के फूलों की खुशबू की बात करो। मेरा अब यही घर है। यहीं मेरे जीवन की शाम होगी। आश्रम में चार साल से रह रहीं सुनीता देवी कहती हैं कि आश्रम में लोगों के सहयोग ने मेरे दुख को कम कर दिया है।
यहीं मेरी शाम होगी
नौ साल से आश्रम में रह रहीं रानी गोस्वामी आश्रम के बुजुर्गों को ही अपना परिवार मानती हैं। बोलीं कि बहन-भाइयों के साथ सुबह की बैठक में हंसी-मजाक दर्द को कम कर देता है। अब घर नहीं जाना चाहती। आश्रम ही अब मेरे जीवन की मंजिल है, यहीं मेरी शाम होगी।
दिल के पिटारे में बंद कर दी यादें
पांच साल से आश्रम में रह रहे हेमंत चतुर्वेदी बोले कि जो आज है, उसमें जी रहा हूं। हम सभी की संवेदनाएं एक-दूसरे लिए जिंदा हैं। यहां प्यार के दो बोल दिल को छू लेते हैं। खराब यादें परेशान नहीं करती हैं। अब घर लौटने का मन नहीं करता है।
विस्तार
दर्द की दीवार गिराकर आगरा के रामलाल वृद्ध आश्रम के 300 बुजुर्गों ने प्यार का नया संसार बसा लिया है। इन बुजुर्गों में से कई ऐसे हैं, जो अब घर वापस जाना नहीं चाहते हैं। उनका कहना है कि आश्रम में उनका सच्चा और अच्छा परिवार बन चुका है। अब आश्रम ही मेरा घर है, यहीं जीवन की शाम कटेगी।
उनके पास क्या जाना, जो कीमत नहीं जान सके…, यह कहते हुए पांच साल से आश्रम में रह रहे सुरेश चंद फफक पड़ते हैं। सुरेश को उनके बेटे ने घर से बाहर निकाल दिया था। सुरेश ने बताया कि तब वह काफी देर तक घर की देहरी के बाहर बैठे रहे थे। ये सोचकर कि बेटे का गुस्सा शांत हो जाएगा तो अंदर बुला लेगा। ऐसा हुआ नहीं। बाद में दो बार लेने आया, लेकिन मैं नहीं जाना चाहता।
आश्रम में आठ साल से रह रहे बुजुर्ग महेश कुमार से जब कोई उनके घर की बात करता है, तो वह गुस्सा हो जाते हैं। कहते हैं कि बेटे-बहू की बातों छोड़कर यहां की बात करो। यहां के फूलों की खुशबू की बात करो। मेरा अब यही घर है। यहीं मेरे जीवन की शाम होगी। आश्रम में चार साल से रह रहीं सुनीता देवी कहती हैं कि आश्रम में लोगों के सहयोग ने मेरे दुख को कम कर दिया है।
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