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बुंदेलखंड में बारिश औसत से भी कम, फिर भी बाढ़ में क्यों डूब जाते हैं सैकड़ों गांव? जानें इसकी वजह

जालौन : वर्ष 2021 को बुंदेलखंड के जालौन और हमीरपुर जिले को बाढ़ की विभीषिका का सामना करना पड़ा था। जिसका असर हफ्तों तक देखने को मिला और कई आशियाने जमींदोज हो गए थे। उस दौरान हमीरपुर, बांदा और जालौन में आई बाढ़ से करीब 400 गांव प्रभावित हुए थे। जिसमें हमीरपुर के 84, मौहदा के 49, राठ के 20, सरीला के 34 और लगभग 5 लाख 36 हजार की आबादी को खासी परेशानी उठानी पड़ी थी। वहीं, अगर हम जालौन की बात करें तो करीब 158 गांव बाढ़ की चपेट में आये थे। जिसमें कालपी के 56, कुठौंद के 30, रामपुरा के 20, माधौगढ़ क्षेत्र के 50 गांव शामिल हैं। वहीं, बांदा के 80 गांव शामिल थे। लेकिन ऐसे में सवाल यह है कि जब बुंदेलखंड में बारिश अपने औसतन मानक से कम होती है तो आखिर इन जिलों के लोगों को बाढ़ जैसे हालातों का सामना क्यों करना पड़ता है?

दरअसल, पिछले वर्ष बुंदेलखंड में बारिश औसतन से भी कम हुई थीं। यहां के किसान संगठन बुंदेलखंड के कई जिलों को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग पर अड़े हुए थे। अचानक मानसून ने करवट बदली और बुंदेलखंड के साथ यूपी के 34 जिलों में झमाझम बारिश हुई जिसकी वजह से बांधों और नदियों का जल स्तर उफान पर आ गया और प्रदेश भर के एक हजार गांव और लाखों की आबादी सीधे तौर पर प्रभावित हुई। उत्तर प्रदेश की ज्यादातर नदियों ने अपने खतरे के निशान के ऊपर बहना शुरू कर दिया था। जिसके बाद नदियों और बांधों से कई लाख क्यूसेक पानी बहकर आया और गांवों को टापूओं में तब्दील कर गया।

बाढ़ से प्रभावित जिलों को राहत पहुंचाने के लिए बाढ़ राहत शिविर बनाएं गए जहां लोगों को भोजन की व्यवस्था उपलब्ध कराई गयी। प्रदेश भर में बचाव कार्य के लिए जिलों में एनडीआरएफ, एसडीआरएफ व जालौन में सेना की एक टुकड़ी को लगाया गया। कम वर्षा वाले इलाके बुंदेलखंड में पानी से डूबे कई गांवों की तस्वीरें सामने आने लगीं। लोगों की मदद के लिए तमाम सरकारी व गैरसरकारी संस्थाये सामने आईं।

सूखे जैसे हालात फिर क्यों डूब जाता जालौन?
पिछले साल आई बाढ़ को लेकर इस साल प्रशासन की तैयारियों काफी दुरुस्त नजर आ रही हैं। लेकिन राहत की बात यह है कि यहां की यमुना, चंबल, सिंध, क्वारी और पहुज नदियां अभी अपने खतरे के निशान से नीचे बह रही हैं और बाढ़ के अलर्ट को देखते हुए 30 बाढ़ चौकियों बनाई गई हैं। इस बार भी यहां बारिश औसत से कम हुई है खेती के हालात विषम है। वहीं, किसान यूनियन के नेता राजबीर सिंह जादौन ने डीएम जालौन चांदनी सिंह को ज्ञापन सौपते हुए जिले को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग की है। वहीं, अगर हम जिक्र पिछले वर्ष के आकड़ों का करें तो मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि यहां गत वर्ष तक 413.9 मिलीमीटर ही बारिश हुई है जो सामान्य बारिश 419.2 एमएम से कम थी।

हालांकि, 10 से 16 जून के बीच सर्वाधिक 406 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज की थी। वहीं 2-8 अगस्त के बीच 212 प्रतिशत अधिक बारिश हुई थी। शेष 9 हफ्तों में सामान्य से कम बारिश ही हुई थी। इसके बावजूद जिला बाढ़ की चपेट में आ गया था। प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि उन्होंने 1995 के बाद इतनी भीषण बाढ़ देखी थी। बाढ़ से पूरे गांव की फसलें तबाह हो गई थीं और कई गांवों का संपर्क टूट गया था। इसकी वजह यह रही कि मध्यप्रदेश के राजघाट, माताटीला और राजस्थान के कोटा बैराज से कई लाखों क्यूसेक पानी छोड़ा गया। जिससे यहां की नदियां में उफान आ गया और कई गांवों की आबादी बाढ़ की चपेट में आ गई।

जालौन की तरह हमीरपुर भी डूब जाता है
पिछले वर्ष 2021 में जालौन की तरह ही हमीरपुर भी भीषण बाढ़ की चपेट में था। हमीरपुर में यमुना और बेतवा नदी का संगम होता है। ललितपुर में बने माताटीला बांध से पहले से खतरे के निशान से ऊपर बह रही बेतवा में 3 अगस्त 2021 को 3 लाख क्यूसेक पानी छोड़ दिया गया। उधर यमुना भी खतरे के निशान से ऊपर बह रही थी। दोनों नदियों के पानी ने हमीरपुर जिले तबाही का मंजर ला दिया। इस तबाही में करीब 200 गांव और हजारों लोगों को बेघर कर दिया था। लोगों को आने जाने के लिए नावों का सहारा लेना पड़ा था।

आकड़ों के मुताबिक 9 अगस्त के दिन करीब 80 एमएम बारिश दर्ज की गई। यानी, साल में होने वाली बारिश का 10 प्रतिशत हिस्सा इस एक दिन में ही बरस गया। इसके अतिरिक्त इस मौसम के तीसरे सप्ताह (10-16 जून 2021) 1,241 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज की गई थी। यह इस सीजन की सबसे अधिक साप्ताहिक बारिश थी। हमीरपुर में हर दूसरे साल बाढ़ जाती है लेकिन इस साल जैसी बाढ़ पिछले 10 साल से नहीं आई है। इस बाढ़ ने जिले के करीब 200 गांवों को प्रभावित किया है। वैसे, इसकी वजह भी यही निकलकर सामने आई कि यहां की नदियां तो अपने खतरे के निशान से नीचे बहती हैं। लेकिन, मध्यप्रदेश और राजस्थान के बांधों से छोड़ा गया पानी बाढ़ का रूप धारण कर लेता है और यहां के लोगों को बाढ़ के हालातों का सामना करना पड़ता है।
रिपोर्ट- विशाल वर्मा