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Editorial:भारत ने तुनुकमिज़ाज अमेरिका को शांत कर दिया

23-8-2022

पिछले कुछ समय में भारत की विदेश नीति में जमीन आसमान का अंतर आ चुका है। आज पूरी दुनिया भारत को एक मजबूत छवि वाले देश के तौर पर देखती है। भारत ने कूटनीति के माध्यम से अपनी विदेश नीति ऐसी बदली कि अमेरिका जैसा देश जो स्वयं को विश्व का ठेकेदार मानता है, उसकी भी भारत के आगे एक नहीं चल पा रही है। तभी तो जो अमेरिका एक समय में भारत को डराने धमकाने और दबाने के प्रयास करता था वही अब भारत के साथ अपने अच्छे संबंध बनाए रखने को मजबूर है।

इस लेख में जानेंगे कि कैसे अपनी कूटनीतिक कला का उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए भारत ने तुनुकमिज़ाज अमेरिका को शांत कर दिया। जानेंगे कि कैसे भारत के साथ दोस्ती बनाए रखना अमेरिका की आज मजबूरी और जरूरत दोनों ही बन गयी है।

दरअसल, अमेरिका अब भारत को वो ड्रोन देने की तैयारी में है, जिसके जरिए उसने पिछले ही महीने अलकायदा के सरगना अल जवाहिरी का खात्मा किया था। इस ड्रोन का नाम है एमक्यू-9बी प्रीडेटर (MQ-9B Predator)। जानकारी के मुताबिक भारत, अमेरिका से 30 ड्रोन खरीदने जा रहा है और इसके लिए दोनों देशों के बीच बातचीत अंतिम चरण में आ पहुंची है। यानी अमेरिका का यह ब्रह्मास्त्र जल्द ही भारत का होने वाला है। भारत और अमेरिका के बीच ड्रोन को लेकर यह सौदा 3 अरब डॉलर यानी लगभग 22 हजार करोड़ रुपये में होगा। इससे भारत एलएसी और हिंद महासागर में अपनी क्षमता को और बढ़ा सकता है।

MQ-9B ड्रोन MQ-9 रीपर का ही एक प्रकार है, जिसका प्रयोग करके अमेरिका ने अल-जवाहिरी पर हेलफायर मिसाइल दागी और उसे ढेर कर दिया। इस ड्रोन का उपयोग तीनों सेनाएं कर सकती हैं। यह ड्रोन ऊंचाई के इलाकों में भी 35 घंटे तक हवा में रह सकता है और हेलफायर मिसाइल दाग सकता है। इसके अलावा 450 किलो के बम भी गिरा सकता है।

यह वही अमेरिका है, जो कुछ समय पहले तक भारत को डराने-धमकाने के प्रयास करता रहता था। रूस  और यूक्रेन के बीच छिड़े युद्ध के दौरान अमेरिका ने पूरी कोशिश की कि किसी तरह भारत जंग में रूस के विरुद्ध खड़ा हो जाए। परंतु भारत ने उसकी एक ना सुनी। भारत ने भले ही औपचारिक तौर पर घोषणा नहीं कि परंतु कहीं न कहीं वो अमेरिका का साथ देने के बजाए रूस के पक्ष में खड़ा रहा।

राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए और अपने फायदे को देखने हुए भारत ने युद्ध के दौरान पैदा हुई स्थितियों का लाभ उठाया और रूस के साथ अपने व्यापार में जबरदस्त वृद्धि कर दी। सस्ते दाम पर भारत ने रूस से जमकर तेल खरीदा, जो अमेरिका को कतई रास नहीं आया और उसने भारत को रूस का साथ देने के लिए अंजाम भुगतने तक की धमकी दे डाली थी। केवल इतना ही नहीं अमेरिका ने तो रूस से एस-400  मिसाइल सिस्टम खरीदने को लेकर भारत को प्रतिबंधों तक का डर दिखाया। परंतु अमेरिका की धमकियों और चेतावनियों का तनिक भी असर भारत पर नहीं पड़ा, जिसके बाद अमेरिका को मजबूरन घुटनों पर आना पड़ा। इसे अमेरिका की मजबूरी ही कहा जाए कि जो कभी हमें प्रतिबंधों का डर दिखाता था, वही अमेरिका अपने CAATSA नियमों के तहत भारत को विशेष छूट देने पर मजबूर हो गया।

देखा जाए तो आज अमेरिका के लिए भारत के साथ दोस्ताना संबंध बनाए रखना बेहद ही जरूरी हो गया है। अमेरिका यह भली भांति जानता है कि भारत जिस तरह से विश्व पटल पर अपनी छवि मजबूत करता चला रहा है, ऐसे में भारत के साथ बिगाड़कर उसका काम नहीं चलने वाला। वहीं अमेरिका को यह भी अच्छे से मालूम है कि एशिया में भारत ही वो एकमात्र देश है जो चीन को चुनौती दे सकता है। हिंद महासागर में चीन के बढ़ते दखल से अमेरिका पहले ही परेशान है। ऐसे में भारत के साथ खड़ा होना उसकी मजबूरी है।

अमेरिका ने रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान देख लिया कि वो चाहे भारत पर कितना भी दबाव क्यों न बना ले, कितनी भी धमकियां क्यों न दे, यह नया भारत है जो किसी भी कीमत पर उसके आगे झुकेगा नहीं। भारत के इसी रूख की वजह से अमेरिका भारत से दुश्मनी मोल नहीं ले सकता और इसलिए एक समय पर जो अमेरिका झुकाता था वो आज स्वयं भारत के आगे झुका हुआ है। रूस और यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत की सफल कूटनीति का लोहा पूरी दुनिया ने माना और भारत ने अपनी कूटनीति के जरिए अमेरिका जैसे देश को चारों खाने चित्त कर दिया।