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ज्ञानवापी मामला: अंजुमन इंतेजामिया की मुश्किलें बढ़ीं, मुख्य वकील केस से हटे!

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वाराणसी: श्रृंगार गौरी नियमित दर्शन मामला सुनवाई के लायक है या नहीं इस पर वाराणसी के जिला जज अजय कृष्ण सुरेश की कोर्ट में सुनवाई चल रही है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस मामले का फैसला होना है। इसी बीच अंजुमन इंतेजामिया कमेटी को एक बड़ा झटका उस वक्त लगा, जब उनके मुख्य वकील अभय नाथ यादव की हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई, जिसके बाद इंतेजामिया कमेटी ने 2 वकीलों को उनकी जगह नियुक्त किया, लेकिन अब पिछले दो सुनवाई से नियुक्त किए गए वकील योगेंद्र सिंह उर्फ मधुबाबू का कोर्ट में पेश न होना चर्चाओं की वजह बन गया है।

एक निजी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में योगेंद्र सिंह के बेटे ने केस से नाम वापस लेने की बात कही। दूसरी ओर इंतेजामिया कमेटी ने इस बात को खारिज कर दिया है। कमेटी के सचिव ने कहा कि कमेटी को उन्होंने अपनी सहमति दी, लेकिन अभी तक कमेटी को उनके नाम वापस लेने की कोई आधिकारिक सूचना नहीं मिली है। ऐसे में इस पर कुछ भी कहना उचित नहीं होगा।

बेटे ने किया है दावा
वाराणसी के सम्मानित और वरिष्ठ वकील योगेंद्र प्रसाद सिंह उर्फ मधुबाबू के बेटे विशाल ने मंगलवार को एक निजी चैनल को इंटरव्यू के दौरान यह कहा कि अत्यधिक उम्र की वजह से योगेंद्र सिंह अपना नाम वापस ले रहे हैं। साथ ही इस मामले को लेकर उनके परिवार पर दबाव भी है। मामला बहुत ही हाई प्रोफाइल है। ऐसे में वह चाहते हैं कि उनके पिताजी इस केस को न लड़ें। हालांकि, खुद वकील योगेंद्र सिंह अब तक सामने नहीं आए हैं और न तो उन्होंने मीडिया में किसी तरह का कोई बयान दिया है। एनबीटी ऑनलाइन ने जब उनके मोबाइल फोन पर संपर्क करने का प्रयास किया और जानना चाहा कि इन दावों में कितनी सच्चाई है तो उनका फोन लगातर आउट ऑफ कवरेज बता रहा था।

दो बार की सुनवाई में गैरहाजिर रहना बना चर्चा का विषय
इंतजाम या कमेटी के वकील अभय नाथ यादव की मृत्यु के बाद दो वकीलों को काउंसलर के तौर पर नियुक्त किया गया था, जिसके बाद दो सुनवाई में मुख्य वकील योगेंद्र सिंह अंजुमन इंतेजामिया कमेटी की ओर से उपस्थित नहीं हुए। जिसकी वजह से कमेटी पर 500 का जुर्माना भी लगाया गया था।

कमेटी के सचिव ने कहा , डॉक्टर क्या धर्म देख के इलाज करेगा
इस पूरे मसले पर अंजुमन इंतेजामिया कमेटी के महासचिव सईद यासीन से जब बात की गई तो उन्होंने कहा कि अभी तक उन्हें मधुबाबू के से नाम वापसी की कोई आधिकारिक सूचना नहीं मिली है। कोर्ट में उनके सहमति से वकालतनामा लगाया गया है। वापसी को लेकर अभी तक कोई उनको जानकारी नहीं दी गई है और न ही कमेटी ने उनको हटाया है, लेकिन अगर वह नाम वापस लेने की खबरों में सच्चाई है तो यह वकालत के प्रोफेशन के साथ गद्दारी होगी। यासीन ने सवाल उठाते हुए कहा कि अगर इसमें जरा सी भी सच्चाई है तो सवाल उठता है कि क्या डॉक्टर अब मरीज का धर्म देखकर इलाज करेंगे। अगर ऐसी कोई दबाव की बात सामने आती है या नाम वापस लेने की बात होती है तो यह एक बड़ी खराब स्थिति होगी।
इनपुट- अभिषेक कुमार झा