मध्य प्रदेश की राजनीति में कई दिन से उबाल आ रहा है, और सियासी पारा दिल्ली तक को खौलाए हुए है. देश के सबसे अहम सूबों में से एक मध्य प्रदेश में सिर्फ सवा साल पहले बमुश्किल बन पाई सरकार पर अभूतपूर्व संकट छाया हुआ है, और उसके गिरने को महज़ औपचारिकता माना जा रहा है. सत्तासीन कांग्रेस के कांग्रेस के 114 में से 22 विधायकों ने इस्तीफे दे दिए हैं, और अगर इन्हें स्वीकार कर लिया गया, तो कमलनाथ सरकार का गिर जाना तय है, क्योंकि उस स्थिति में 230-सदस्यीय मध्य प्रदेश विधानसभा की प्रभावी सदस्य संख्या 206 रह जाएगी (दो सदस्यों के देहावसान के चलते इस वक्त यह संख्या 228 है), और बहुमत के लिए आवश्यक संख्या 104 रह जाएगी.
इस्तीफों के मंज़ूर हो जाने पर कांग्रेस की सदस्य संख्या 92 रह जाएगी, और BJP के पास 107 सदस्य हैं. इनके अलावा विधानसभा में चार निर्दलीय सदस्य हैं, बहुजन समाज पार्टी (BSP) के दो विधायक हैं तथा समाजवादी पार्टी (SP) का एक विधायक है, और इन सातों ने फिलहाल कांग्रेस की कमलनाथ सरकार को समर्थन दिया हुआ है. सो, इस्तीफों के मंज़ूर हो जाने की स्थिति में भी कांग्रेस गठबंधन की ताकत 99 सीटों पर सिमटकर रह जाएगी, जो बहुमत के लिए आवश्यक संख्या से कम होगा.
एक अहम तथ्य यह है कि 22 विधायकों के इस्तीफे मंज़ूर हो जाने के बाद भी कमलनाथ सरकार खुद-ब-खुद नहीं गिर सकती. सरकार के गिरने के लिए ज़रूरी है कि कमलनाथ खुद इस्तीफा दें, या फ्लोर टेस्ट में वह बहुमत साबित करने में नाकाम रहें. सो, अब विधानसभा स्पीकर एन.पी. प्रजापति की भूमिका बेहद अहम हो गई है, क्योंकि अनुच्छेद 190 में इस्तीफों को मंज़ूरी देने या नहीं देने का अधिकार स्पीकर को ही है.
बताया गया है कि विधानसभा सचिवालय को सभी 22 विधायकों के इस्तीफे मिल चुके हैं, लेकिन स्पीकर एन.पी. प्रजापति ने बुधवार को NDTV से कहा, “सभी विधायकों से व्यक्तिगत रूप से मिलने के बाद और तय प्रक्रिया के हिसाब से ही इस्तीफों पर फैसला लेंगे… इसका उन्हें संवैधानिक अधिकार है… जब तक इस्तीफा स्वीकार न हो, उनकी विधायकी बरकरार रहेगी…”
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