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Editorial:देश की अखंडता के लिये चुनौती हैं रोहिंग्या

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6-9-2022

रोहिंग्या मुसलमान देश की अखंडता के लिए कैंसर जैसे हैं। वो देश की अखंडता व एकता के लिए खतरा हैं। भारत के कुछ गिने चुने अवसर वादी नेताओं को छोड़ पूरी दुनिया से अभी तक रोहिंंग्या मुसलमानों के प्रति कोई सहानुभूति पूर्वक बयान नहीं आया है। यहां तक की दुनिया के 45 मुस्लिम देशों ने भी इनके प्रति कोई हमदर्दी नहीं दिखाई है। इन रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार से तो निकाल दिया गया पर यह रोहिंग्या बोझ बनकर अन्य देशों पर लाद दिए गए। भारत काफ ी पहले से ही उनसे पीडि़त है और बांग्लादेश की हालत भी कुछ वैसी ही है। भारत में बहुत समय से इन रोहिंग्यों के निकास की बात पर ज़ोर दिया जा रहा है और अब स्वयं बांग्लादेश भी इसकी पैरवी करता दिखाई दे रहा है। रोहिंग्याओं को लेकर बांग्लादेश के इस कदम से वैश्विक स्तर पर भारत का पक्ष मजबूत हो सकता है और इस कैंसर से मुक्ति मिल सकती है।

दरअसल, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने रविवार को कहा कि रोहिंग्या प्रवासी उनके देश के लिए एक बड़ा बोझ हैं। उन्होंने यह भी कहा, रोहिंग्या नशीली दवाओं, महिलाओं की तस्करी में लिप्त हैं और जैसे ही वे अपने मूल स्थल की ओर लौटेंगे, यह सबके लिए अच्छा होगा। यह बयान शेख हसीना के 4 दिवसीय भारत दौरे से 1 दिन पूर्व आया। ज्ञात हो कि शेख हसीना सोमवार से 4 दिवसीय भारत दौरे पर आ रही हैं। वह इस दौरान कई जगहों पर अलग-अलग कार्यक्रमों मे हिस्सा लेंगी। हसीना के इस दौरे से ठीक पहले उन्होंने एक इंटरव्यू में अपने भारत दौरे के महत्वपूर्ण उद्देश्यों को साझा किया है।

शेख हसीना की मानें तो उन्हें भी अब यह रोहिंग्या खल रहे हैं। शेख हसीना ने प्रमुखता से यह बात कही कि हमारे लिए, यह एक बड़ा बोझ है। भारत एक विशाल देश है और आप इसे समायोजित कर सकते हैं लेकिन हमारे देश में लगभग 11 लाख रोहिंग्या हैं। हम रोहिंग्याओं की स्वदेश वापसी के लिए कुछ कदम उठाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय और अपने पड़ोसी देशों के साथ विचार-विमर्श कर रहे हैं।

ध्यान देने वाली बात है कि रोहिंग्या मुस्लमान एक स्टेटलेस इंडो-आर्यन जातीय समूह है जो मुख्य रूप से इस्लाम का पालन करते हैं और म्यांमार के रखाइन राज्य से ताल्लुक रखते हैं। वर्ष 2017 में रोहिंग्या नरसंहार होने के पश्चात लगभग 7,40,000 से अधिक रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश भाग गए थे। आज यह संख्या अनुमान के हिसाब से 11 लाख से ऊपर की बताई जा रही है। यह सारा किया धरा म्यांमार का था और आज भारत जैसे देशों को इन्हें ढोना पड़ रहा है। भारत की बात करें तो आज भारत में 5 लाख के करीब अवैध रोहिंग्या शरणार्थी रह रहे हैं। यह रोहिंग्या मुसलमान सीमावर्ती क्षेत्रों में जुर्म करते पाए जाते हैं और पकड़े जाने के डर से बांग्लादेश की ओर निकल जाते हैं ताकि भारतीय कानून और कार्रवाई से बच सकें। यह आज से नहीं बल्कि वर्ष 2017 से ही निरंतर चलता आ रहा है। वो भारत जो पाकिस्तान से आए असहाय और प्रताडि़त हिन्दू शरणार्थियों को स्थान नहीं दे पा रहा है, वो भारत जो हिन्दू शरणार्थियों को अबतक उनका हक़ नहीं दे पा रहा है, वो भारत आज भी जबरन अंतरराष्ट्रीय छवि और मानवीय मूल्य की गठरी में उस गांठ की तरह उलझ गया है कि रोहिंग्याओं को भी शरण देनी पड़ रही है।

न जाने मानवीय मूल्यों का ठेका और ठीकरा भारत पर ही क्यों फ ोड़ दिया जाता है अन्यथा उन हिन्दू शरणार्थियों का क्या जो पाकिस्तान से जैसे तैसे कर अपने वतन हिन्दुस्तान आए हैं। उनको प्राथमिकता मिलनी चाहिए थी पर उनपर आजतक अंतरराष्ट्रीय निकायों की नजऱ नहीं गई। जाएगी भी क्यों? वो न उस विशेष समुदाय से आते हैं जिससे रोहिंग्या ताल्लुक रखते हैं और न ही वो हिन्दू शरणार्थी कभी उनके एजेंडे में फिट बैठते हैं। मौजूदा समय में देश की राजधानी दिल्ली में दो तरह के विदेशी हैं, एक शरणार्थी हिन्दू, जिन्हें विदेशी क्यों माना जाए इसका कोई उत्तर नहीं, दूसरे बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिम, जो इस देश की भूमि पर क्यों हैं, इसका कोई उत्तर नहीं है। यह विडंबना है कि भारत में हिंदू शरणार्थी हासिये पर हैं और घुसपैठियों को सुविधाएं मिल रही हैं। वहीं, मजनू का टीला क्षेत्र में रह रहे 700 हिंदू परिवार, जो पाकिस्तान से भागकर भारत आए हैं वो आज भी टकटकी लगाए सुविधाओं की आस में बैठे हैं ।

बेशर्मी की पराकाष्ठा और तुष्टीकरण में आकंठ डूबी दिल्ली की केजरीवाल सरकार रोहिंग्या शरणार्थी और अवैध घुसपैठियों को तमाम सुविधाओं से लैश करने के लिए कटिबद्ध दिखाई पड़ती है। वहीं, दूसरी ओर हिन्दू शरणार्थियों के पास पानी और बिजली का कनेक्शन पहुंचाने में मानों अरविंद केजरीवाल के घर का पैसा जा रहा हो, ऐसा व्यवहार दिल्ली की केजरीवाल सरकार करती है।

ऐसे में अब समय आ गया है कि भारत इसे समय की मांग और देश के संसाधनों पर पहला हक किसका, इस परिप्रेक्ष्य में कदम उठाते हुए शीघ्र-अतिशीघ्र चुन-चुनकर उन सभी अवैध रोहिंग्या घुसपैठियों को बाइज़्ज़त बाहर कर उन्हें उनके गंतव्य की ओर रवाना करे। स्वयं बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस बाबत स्वयं को भारत पर ही आश्रित बताया। उन्होंने कहा, “रोहिंग्या मुस्लिम जब मुसीबत में थे तो उस वक्त उन्होंने उनकी मदद की लेकिन अब उन्हें अपने देश वापस चले जाना चाहिए। मुझे लगता है कि भारत एक पड़ोसी देश होने के नाते इस मामले में एक अहम रोल निभा सकता है।”

अब जब बात निकली है तो दूर तलक जाएगी। अवैध रोहिंग्या घुसपैठिए अगर भारत और बांग्लादेश दोनों के लिए चुनौती और उनके संसाधनों पर बोझ हैं तो भारत के लिए रोहिंग्याओं की तरह अवैध बांग्लादेशी भी बोझ हैं जो सीमा पार आकर जघन्य अपराधों को अंजाम देते हुए भारत को झटका देते रहते हैं। ऐसे में अगर आज बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने भारत दौरे से पूर्व अवैध रोहिंग्या घुसपैठियों पर एकमत होने का मन बना लिया है तो उन्हें इस बात का भी जि़म्मा लेना होगा कि आगामी भविष्य में अवैध रूप से बांग्लादेशी भी दाखिल न होने पायें क्योंकि अगर आज बांग्लादेश के लिए अवैध रोहिंग्या घुसपैठिए बोझ और चुनौती हैं तो भारत के लिए भी अवैध रोहिंग्या घुसपैठिए और अवैध बांग्लादेशी भी चुनौती हैं। शेष अब बांग्लादेश और भारत के बीच आखिरकार रोहिंग्या कैंसर के बारे में औपचारिक बातचीत होने जा रही है और यह बातचीत कितनी सार्थक निर्णय लाती है, उसका भी सभी को बेसब्री से इंतज़ार रहेगा।