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स्वरूपानंद सरस्वती : संगम की रेती से पहली बार राम मंदिर आंदोलन का शंकराचार्य ने फूंका था बिगुल

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द्वारिका-शारदा, ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती सनातन धर्म के विकास से जुड़े बड़े आंदोलनों की शुरुआत प्रयागराज की यज्ञभूमि से ही की। राम मंदिर आंदोलन का पहली बार बिगुल उन्होंने यहीं से फूंका और दुनिया के सबसे बड़े राम मंदिर के मॉडल का अनावरण भी उन्होंने यहीं किया। मंदिर निर्माण और सनातन धर्म के प्रचार के मसले पर सबसे बड़ी धर्म संसद भी उन्होंने संगम की रेती पर लगाकर कई बार देश-दुनिया भर के संतों-भक्तों को संदेश दिया था।

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती आखिरी बार फरवरी 2021 के पहले हफ्ते में माघ मेले में मौनी अमावस्या पर संगम में डुबकी लगाई। संगमनगरी से शंकराचार्य का अटूट लगाव रहा है। वह हर कुंभ और माघ मेले में संगम में डुबकी लगाने यहां आते रहे। यमुना तट स्थित मनकामेश्वर मंदिर में वह कुंभ और माघ मेले के दौरान प्रत्येक वर्ष कम से कम 10 दिनों का प्रवास जरूर करते थे।

2019 के कुंभ में जहां उन्होंने संगम की रेती पर धर्म संसद लगाकर राम मंदिर निर्माण को लेकर बिगुल फूंका, वहीं 2021 के माघ मेले में राम मंदिर का मॉडल प्रदर्शित कर अयोध्या में भूमि पूजन के लिए चार ईंट लेकर जाने का एलान कर कर प्रशासन की नींद उड़ा दी थी। तब प्रशासन ने उनको अयोध्या जाने से रोक दिया था।

वर्ष 2020 के कोरोना संक्रमण के अलावा 2022 के माघ मेले में अस्वस्था के कारण माघ मेले में मौनी अमावस्या पर डुबकी नहीं लगा सके थे। मनकामेश्वर मंदिर के व्यवस्थापक और उनके शिष्य श्रीधरानंद ब्रह्मचारी बताते हैं कि पहली बार 70 के दशक में प्रयागराज से ही उन्होंने राम मंदिर आंदोलन का बिगुल फूंका था।

यमुना तट पर प्रियंका गांधी को हिंदू हित को ध्यान में रखकर काम करने का दिया था मंत्र
माघ मेले में सितंबर 2021 के प्रवास के दौरान कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी को शंकराचार्य स्वरूपानंद ने यमुना तट से हिंदू हित की सियासत से जुड़कर काम करने का संदेश दिया। तब प्रियंका अपनी बेटी मिराया के साथ शंकराचार्य का आशीर्वाद लेने मनकामेश्वर पहुंचीं थीं। तब प्रियंका की ओर से सियासी मार्गदर्शन का आग्रह किए जाने पर शंकराचार्य ने कहा था कि तुम्हारी दादी इंदिरा गांधी मुझसे आशीर्वाद लेने के लिए आती रही हैं। तुम्हारा परिवार मुझे गुरु मानता रहा है। तुमको बस, यही कहना चाहूंगा कि राजनीति में आगे बढ़ना है तो हिंदुओं के हितों को ध्यान में रखकर ही काम करो। इस देश में वही राज करेगा जो हिंदू हितों की बात करेगा। राज करना है तो हिंदुओं को साथ लेकर ही चलना होगा।

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द्वारिका-शारदा, ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती सनातन धर्म के विकास से जुड़े बड़े आंदोलनों की शुरुआत प्रयागराज की यज्ञभूमि से ही की। राम मंदिर आंदोलन का पहली बार बिगुल उन्होंने यहीं से फूंका और दुनिया के सबसे बड़े राम मंदिर के मॉडल का अनावरण भी उन्होंने यहीं किया। मंदिर निर्माण और सनातन धर्म के प्रचार के मसले पर सबसे बड़ी धर्म संसद भी उन्होंने संगम की रेती पर लगाकर कई बार देश-दुनिया भर के संतों-भक्तों को संदेश दिया था।

शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती आखिरी बार फरवरी 2021 के पहले हफ्ते में माघ मेले में मौनी अमावस्या पर संगम में डुबकी लगाई। संगमनगरी से शंकराचार्य का अटूट लगाव रहा है। वह हर कुंभ और माघ मेले में संगम में डुबकी लगाने यहां आते रहे। यमुना तट स्थित मनकामेश्वर मंदिर में वह कुंभ और माघ मेले के दौरान प्रत्येक वर्ष कम से कम 10 दिनों का प्रवास जरूर करते थे।