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Editorial:निरंतर परिश्रम कभी भी व्यर्थ नहीं जाता

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19-9-2022

कहते हैं कि एक दिन वर्षों का संघर्ष बहुत सुंदर ढंग से आपसे टकराता है यानी निरंतर परिश्रम कभी भी व्यर्थ नहीं जाता है। इस कहावत को यदि भारत के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो यह एकदम सत्य प्रतीत होता है क्योंकि भारत ने स्वयं को सशक्त बनाने के क्रम में जो संघर्ष किया उसका परिणाम आज पूरा विश्व देख रहा है। संघर्ष के आग में तपकर भारत आज जितना चमक रहा है शायद ही कोई अन्य देश आज इतना चमक रहा है। कभी जो भारत की ओर आंख उठाकर नहीं देखते थे आज मस्तक झुकाकर उसके कूटनीति का लोहा मानने को विवश हैं।

इस लेख में जानेंगे कि कैसे भारत की वर्तमान कूटनीति के समक्ष संपूर्ण पाश्चात्य जगत, विशेषकर अमेरिका भी झुक गया है।

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भारत की विकास यात्रा एक उत्कृष्ट उदाहरण है

भारत की विकास यात्रा आज जिस बुलंदी पर पहुंच चुकी है वो अन्य देशों के समक्ष एक उत्कृष्ट उदाहरण है। आज भारत जितने मुखर स्वर के साथ विश्व पटल पर अपनी बात को रखता है वह भारत की मजबूत स्थिति को दर्शाता है। मजबूत भारत की मज़बूत होती अर्थव्यवस्था देख विश्वभर के देश भारत से अच्छे संबंध बनाने के इच्छुक हैं।

एक समय था जब खाद्य पदार्थ देने के नाम पर भारत का उपहास उड़ाने वाला अमेरिका भी आज उससे अच्छे संबंध बनाने का हर मुमकिन प्रयास कर रहा है। यह भारत के सशक्त नेतृत्व का ही कमाल है कि कल तक पश्चिमी देशों के धमकाने पर चुप हो जाने वाला भारत आज उनको उन्हीं की भाषा में जवाब देता है। अब न ही भारत किसी के कहने से अपने आर्थिक हितों से समझौता करता है और न ही वह किसी की चिकनी चुपड़ी बातों में आता है।

इसका प्रचंड प्रमाण रूस-यूक्रेन युद्ध के पश्चात देखने को मिल रहा है, वस्तुतः इस युद्ध के दौरान पश्चिमी देशों ने भारत के ऊपर रूस के विरुद्ध बोलने एवं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसके विरुद्ध मतदान करने को लेकर बहुत दबाव बनाया किंतु भारत ने इनकी एक न सुनी। रूस भारत का सदाबहार मित्र है अतः भारत ने अपनी मित्रता को निभाते हुए रूस के विरुद्ध सार्वजनिक रूप से कभी कोई वक्तव्य नहीं दिया। ऊपर से रूस से सस्ते मूल्यों पर कच्चे तेल का क्रय भी किया जिससे अमेरिका समेत पश्चिमी देशों को भरसक मिर्ची लगी, यह देश शुरुआत में तो भारत के विरुद्ध बोले किंतु जब इन्हें भारत की शक्ति का स्मरण हुआ वैसे ही अनुनय विनय पर उतर आए।

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भारत और रूस का संबंध सबसे हटकर

अमेरिका समेत सभी पश्चिमी देशों ने यह एक स्वर में माना कि भारत और रूस का संबंध सबसे हटकर है। किंतु भारत भी अपने हितों के क्रम में अब कोई भी समझौता नहीं करता है, भारत द्वारा किए गए कृत्यों से इन देशों के मन में भारत के प्रति शंका जगने लगी थी।

अमेरिका समेत अन्य पश्चिमी देश भारत के उत्तम विकास के लिए अति महत्वपूर्ण हैं ऐसे में उनके मन में किसी भी प्रकार की शंका भारत के उत्तम विकास के पथ पर बाधा बनती,किंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रणनीति ही ऐसी है कि वो कब कौन सा दांव चल दें कह नहीं सकते हैं। उन्होंने अवसर को भांपते हुए SCO के सम्मेलन में पुतिन से ऐसी बात बोल दी कि पश्चिमी देश गदगद ही हो गए।

पीएम मोदी ने शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनिज़ेशन के सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के समक्ष कहा कि मेरी पुतिन से पहले ही युद्ध को लेकर बात हुई थी, मैंने पहले ही कहा था कि यह युग युद्ध का युग नहीं है (पुतिन दिस इज़ नॉट द एरा ऑफ़ वॉर)। बस फिर क्या था अमेरिका समेत अन्य पश्चिमी देशों की मीडिया ने इस कार्य के लिए पीएम मोदी की जमकर प्रशंसा की है। पश्चिमी देशों के मन में उपजी शंका को यह कृत्य बहुत हद तक समाप्त करने में सहायता करेगा।

एक परिपक्व देश के परिपक्व नेता की यह पहचान होती है कि कौन सी बात किस समय और कहां करनी है। वस्तुतः भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री इस कला में निपुण हैं तभी तो उनके द्वारा किए गए इस कृत्य से सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी।