दो दिन बाद ही विजयदशमी है। बुराई पर अच्छाई के इस प्रतीक-पर्व के दिन ही 1925 में नागपुर में केशवराव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की नींव रखी थी। विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बदलाव के दौर में है। न सिर्फ अब आरएसएस बदल रहा है, बल्कि इसके प्रति लोगों की सोच में सकारात्मक बदलाव आया है। आरएसएस में हिंदुओं की तो अगाध श्रद्धा है ही, अब मुस्लिमों का झुकाव भी संघ और इसके कार्यों की ओर है। हाल ही में अखिल भारतीय इमाम संगठन के प्रमुख इमाम उमर अहमद इलियासी ने संघ प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात करने के बाद उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ और ‘राष्ट्र ऋषि’ बताया था। इधर आरएसएस भी संगठन में नारीशक्ति की भूमिका को और बढ़ाने पर गंभीरता से मंथन कर रहा है। संघ की स्थापना की 100वीं वर्षगांठ (2025) तक राष्ट्र सेविका समिति में शामिल महिलाओं को संघ में बड़े पदों पर लाया जा सकता है। संघ के 97 साल के इतिहास में कोई महिला सह-कार्यवाह और सह-सरकार्यवाह पद पर नहीं रही है।यह सर्वविदित तथ्य है कि बीजेपी आज जिस मुकाम पर है, उसमें संघ की भूमिका बहुत की अहम रही है। वर्ष 2024 में लोकसभा के चुनाव हैं और इसके अगले साल आरएसएस की सौवीं वर्षगांठ होगी। इस वर्षगांठ से पहले संघ में महिलाओं को और आगे लाने की नीति पर विचार-विमर्श हो रहा है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं को प्रमुख पदों की नियुक्ति देने पर संघ का मंथन सहमति की ओर बढ़ चला है। इसी को देखते हुए पहली बार नागपुर में संघ के दशहरा कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर पर्वातारोही संतोष यादव को आमंत्रित किया गया है। संतोष यादव पहली महिला होंगी, जो संघ के स्थापना दिवस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि होंगी।
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