Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

Mulayam Singh Yadav: सैफई, एक गांव जहां सितारे तोड़ लाए थे मुलायम सिंह यादव और किस्मत पर रश्क करते थे यूपीवाले

सैफई: यूपी विधानसभा चुनाव का समय था। हम चुनाव कवरेज के लिए शहर-शहर घूम रहे थे। समाजवादी पार्टी (SP) के मुखिया अखिलेश यादव करहल से पहली बार विधायक का चुनाव लड़ रहे थे। हम भी उनका चुनाव कवर करने करहल की तरफ निकले। रात में इटावा में रुके। सुबह में करहल के लिए निकले। तभी रास्ते में हमें जानकारी मिली कि अखिलेश कुछ देर के लिए सैफई आने वाले हैं। हमने अपना रास्ता बदला और सैफई के लिए निकल पड़े। मुलायम सिंह यादव के गांव के नाम इसकी पहचान थी। मेरे दिमाग में गांव की छवि टूटी-फूटी सड़कें, गड्ढे, गंदगी और रात के वक्त में चारों तरफ अंधेरे में डूबे इलाके की थी। कुछ ऐसा ही मैं सैफई के बारे में भी सोच रहा था।

तभी एक चौराहे पर सैफई का रास्ता पूछने के लिए हम रुके। वहां 21-22 साल के लड़के से हमने पूछा कि भाई सैफई जाना है। उसने मुस्कुराते हुई कहा, सैफई में आपका स्वागत है। मैं अपनी गाड़ी से नीचे उतर रहा था। उसकी बात सुनने के बाद मेरे मुंह से निकला भाई ये तो शहर जैसा लग रहा है। तब उस लड़के ने बड़े गर्व से कहा, यूं ही ये नेताजी का गांव नहीं है भइया। मैं जो रास्ते में सोच रहा था उस छवि के बिल्कुल उलट था सैफई। मैं गाड़ी से उतरकर उचक-उचककर चारों तरफ कौतुहल के साथ निहार रहा था।

सैफई ने गांव के बारे में सारी छवि को ध्वस्त कर दिया था। न टूटी सड़क, न गड्ढे, न अंधेरा। हर तरफ चकाचक सड़कें। मॉल जैसी दुकानें। मैं कुछ अन्य बड़े नेताओं के गांव गया था। उन गांवों की छवि लेकर मैं यहां भी पहुंचा था। लेकिन यहां तो सबकुछ उल्टा-पुल्टा था। चौड़ी सड़कें। कोई टूट-फूट नहीं। मुझे ऐसे इधर-उधर देखते देख उस लड़के ने कहा, कहां से आए हैं। मैंने कहा, नोएडा से। फिर उसने कहा, चौंकिए मत हमारा सैफई गांव नहीं शहर है। आइए कुछ और दिखाते हैं आपको। मैं अपने सहयोगी के साथ उसके पीछे-पीछे हो लिया। पास ही एक जूस के दुकान पर रुका। मीडियाकर्मी को देखते ही जूस के दुकान वाले ने कहा कि सैफई को ठीक से कवर करिएगा। ऐसे गांव आपको कहीं नहीं मिलेगा। फिर मुक्तकंठ से वह शख्स मुलायम सिंह यादव की प्रशंसा में जुट गया। उसकी बातें सुनने के बाद मेरा सैफई देखने का मन और व्याकुल हो उठा।

तभी मैंने उस लड़के से कहा, भाई! यहां सैफई महोत्सव भी होता है। वो कहां होता है? उसने कहा आपको दिखाते हैं। आगे बढ़ते ही ब्लॉक और हॉस्टल एक छोटा सा होटल भी देखने को मिला। मैंने पूछा यहां होटल में लोग रुकते हैं? लड़के ने कहा जाकर पूछ लीजिए आपको एक भी कमरा खाली नहीं मिलेगा। गांव की सारी परिभाषा यहां अपवाद में बदलने लगी थी। तभी उस लड़के ने बताया जब यहां सैफई महोत्सव हुआ करता था तो फिल्म स्टारों का तांता लग जाता था। ये सब नेताजी मुलायम सिंह यादव की ही देन थी। यहां आपको बढ़िया सड़कें, मेडिकल कॉलेज सब मिलेंगे। इससे गांव के लोगों को रोजगार भी मिला है और सैफई का नाम हुआ सो अलग।

तभी, चलते-चलते उस लड़के हमें रोका और बताने लगा कि यहीं पर सैफई महोत्सव होता था। वहां बड़ा सा स्टेडियम था। जैसे ही हम वहां रुके। आसपास मौजूद लोग हमारे पास आ गए। उन्होंने हमें अपने गांव की खूबियां बताईं। सब एकसाथ बोल रहे थे ये सब मुलायम सिंह यादव के कारण हुआ था। फिर पूरा दिन उस गांव को देखने और लोगों से बातचीत के बाद स्टोरी फाइल करने में बीत गया। शाम होते ही गांव बिजली की रोशनी से चकाचौंध हो गई। हर तरफ लाइट की अच्छी व्यवस्था थी। आसपास की दुकानों पर भारी भीड़ देखने को मिल रही थी। तभी दूर जाती एक महिला से हमने पूछा कि क्या आप यहीं रहती हैं? उन्होंने तपाक से कहा, हां यहीं रहती हूं और साफ कर दूं मुलायम सिंह यादव ने सभी के लिए यहां काम किया है। उनकी मदद की है। मैं तो उनकी जाति की भी नहीं हूं तब भी। रात हो रही थी, हमें निकलना था। गाड़ी मैं बैठते-बैठते दिमाग के अंदर एक ही बात चल रही थी। क्या गांव ऐसा भी होता है? मेरी गांव की परिभाषा, छवि सब ध्वस्त हो चुकी थी। गाड़ी में गाना बज रहा था ऐसा देश है मेरा.. वैसे अपनी छवि टूटने से मैं मन ही मन खुश भी हो रहा था..