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ठुमरी साम्राज्ञी की पुण्यतिथि आज: नई पीढ़ी के लिए अमूल्य है पद्मविभूषण गिरिजा देवी की विरासत

शास्त्रीय गायिका गिरिजा देवी
– फोटो : twitter

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सबकी अप्पा जी थीं गिरिजा देवी। गिरिजा देवी से अप्पा जी बनने का जो सफर था वह चुनौतियों और संघर्षों से भरा था। समाज के साथ ही परिवार में मां और दादी का विरोध। विवाह के बाद पति और बच्चों की जिम्मेदारी, लेकिन किस्मत में तो पहले से ही तय होता है कि क्या बनना है। चाहे कोई कितना भी जोर लगा ले, किसी की किस्मत नहीं बदल सकता है। कुछ ऐसा ही था पद्मविभूषण गिरिजा देवी के साथ।
बनारस घराने के तबला वादक पं. प्रभाष महाराज ने बताया कि गिरिजा देवी संगीत की दुनिया का जाना-माना चेहरा थीं।

कार्यक्रमों के दौरान कई बार उनसे मुलाकात हुई। उन्होंने ठुमरी गायन को संवारकर उसे एक नई ऊंचाई दी। उनका जितना बड़ा कद था उतनी ही विनम्रता उनके अंदर थी। मुलाकात जब भी होती थी तो अहसास ही नहीं होती थी कि वह इतनी बड़ी कलाकार हैं। मंच पर जो अप्पा जी होती थीं वहीं अप्पा जी घर में भी होती थीं। जीवन में उन्होंने कभी सम्मान से कोई समझौता नहीं किया।

1952 में ही दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और बाकी मंत्रियों के लिए एक कार्यक्रम था। यहां वे काफी देर तक गाती रहीं और यहीं से ‘ठुमरी गायन की मल्लिका’ बनने का उनका सफर शुरू हुआ। वह तो संगीत के साथ जीतीं थीं और अंतिम समय में भी संगीत उनके साथ था।

उन्होंने अपने जीवन में जो भी काम किया लय के साथ ही किया। लोगों द्वारा उन्हें ‘अप्पा जी’ बुलाये जाने की कहानी भी मजेदार है। दरअसल, उन्हें अपनी बहन के बेटे से बहुत लगाव था और उनकी बहन के बेटे ने जब बोलना शुरू किया तो सबसे पहले उन्हें ही अप्पा कहकर बुलाया। इसके बाद उनके घर-परिवार में भी सबने उन्हें अप्पा कहना शुरू कर दिया और इस तरह से वह अप्पा जी बन गईं। 24 अक्तूबर 2017 को कोलकाता में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।

साल 1972 में पद्मश्री, साल 1989 में पद्मभूषण और साल 2016 में उन्हें पद्मविभूषण की उपाधि मिली। इसके अलावा उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार भी मिला।

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सबकी अप्पा जी थीं गिरिजा देवी। गिरिजा देवी से अप्पा जी बनने का जो सफर था वह चुनौतियों और संघर्षों से भरा था। समाज के साथ ही परिवार में मां और दादी का विरोध। विवाह के बाद पति और बच्चों की जिम्मेदारी, लेकिन किस्मत में तो पहले से ही तय होता है कि क्या बनना है। चाहे कोई कितना भी जोर लगा ले, किसी की किस्मत नहीं बदल सकता है। कुछ ऐसा ही था पद्मविभूषण गिरिजा देवी के साथ।

बनारस घराने के तबला वादक पं. प्रभाष महाराज ने बताया कि गिरिजा देवी संगीत की दुनिया का जाना-माना चेहरा थीं।

कार्यक्रमों के दौरान कई बार उनसे मुलाकात हुई। उन्होंने ठुमरी गायन को संवारकर उसे एक नई ऊंचाई दी। उनका जितना बड़ा कद था उतनी ही विनम्रता उनके अंदर थी। मुलाकात जब भी होती थी तो अहसास ही नहीं होती थी कि वह इतनी बड़ी कलाकार हैं। मंच पर जो अप्पा जी होती थीं वहीं अप्पा जी घर में भी होती थीं। जीवन में उन्होंने कभी सम्मान से कोई समझौता नहीं किया।

1952 में ही दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और बाकी मंत्रियों के लिए एक कार्यक्रम था। यहां वे काफी देर तक गाती रहीं और यहीं से ‘ठुमरी गायन की मल्लिका’ बनने का उनका सफर शुरू हुआ। वह तो संगीत के साथ जीतीं थीं और अंतिम समय में भी संगीत उनके साथ था।