Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

Editorial:कैसे अपनी धाक जमाएगा भारतीय रुपया दुनिया देखेगी

17-11-2022

किसी देश की क्या ही औकात है? घमंड एक ऐसी दीमक है जो किसी को भी धीरे-धीरे बर्बाद कर सकती है। अब घमंड की बात हो और अमेरिका का नाम न आए, ऐसा तो हो नहीं सकता। अमेरिका कथित महाशक्ति बनकर पूरी दुनिया को अपने हिसाब से चलाना चाहता हैं। परंतु आज उसी महाशक्ति का प्रभाव धीरे-धीरे कर कम होता चला जा रहा है। जिस डॉलर के दम पर अमेरिका इतना इतराता है, उसकी काट भी अब भारत निकालता नजर आ रहा है। भारतीय रुपया ने डॉलर  की लंका लगाने की तैयारी पूरी कर ली है।

दरअसल, देखा जाये तो रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध ने दुनिया को कई सबक सिखाए हैं। जिसमें एक सबक यह भी है कि हमें किसी भी चीज के लिए एक देश पर पूरी तरह से निर्भर नहीं होना चाहिए। अभी तक किसी का काम भले ही डॉलर के बिना न चलता है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में हर चीज खरीदने के लिए डॉलर की आवश्यकता पड़ती है। परंतु अब कई देश मिलकर डॉलर का विकल्प तलाशने की तैयारी में जुटे हुए है। इनमें भारत और रूस भी शामिल हैं। भारत और रूस स्वयं को डॉलर मुक्त बनाने के लिए आपस में रुपये और रुबल में निरंतर व्यापार करने के प्रयास कर रहे हैं।इस दिशा में कदम आगे बढ़ाते हुए कुछ समय पूर्व ही यूको बैंक और येस बैंक ने रूस के कुछ बैंको के साथ साझेदारी की है। इसके तहत दोनों देशों के बीच व्यापार के लिए रुपये में ही भुगतान किया जाने लगा। परंतु भारत की योजना केवल यही तक सीमित रहने की नहीं है। रूस को केवल शुरुआत है, इसके बाद अब भारत रुपये को वैश्विक स्तर पर मजबूत करने के लिए कदम आगे बढ़ाने जा रहे हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक  तो पहले ही वैश्विक कारोबार रुपए में करने का ऐलान कर चुका है। ताजा जानकारी के अनुसार भारत कई छोटे देशों के साथ रुपयों के साथ द्विपक्षीय व्यापार करने के लिए बातचीत कर रहा है। देखा जाये तो भारत की प्रमुख भुगतान प्रणाली हृक्कष्टढ्ढ द्वारा निर्मित क्कढ्ढ को दुनियाभर से मान्यता मिल रही है, जिसके बाद भारत अपनी स्वदेशी भुगतान विधियों का भी अंतर्राष्ट्रीयकरण करने के प्रयासों को सफल बनाना चाहता है।द इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट की मानें तो छोटे देशों के साथ भारत सरकार की इस चर्चा का मुख्य उद्देश्य एक अलग तरह के पारिस्थितिकी तंत्र बनाकर स्विफ्ट को प्रतिस्थापित करना और डॉलर के प्रभुत्व वाले ट्रेडों को कोसों दूर करना है। रिपोर्ट के अनुसार इन देशों में जिम्बाब्वे, जिबूती, मलावी, सूडान और इथियोपिया जैसे अफ्रीकी देश सम्मिलित हैं। इससे साफ है कि भारत की नरेंद्र मोदी सरकार डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने और रुपये को मजबूत करने की कोशिशों में जुटी है।

मूलत: रुपए को वैश्विक मुद्रा बनाने की शुरुआत वर्ष 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद से हुई है। मोदी सरकार की सरल व्यापारिक नीति और सुलभ ऑनलाइन भुगतान व्यवस्था ने रुपए को एक नयी पहचान दिलायी है। वैसे तो हम नेपाल, भूटान एवं बांग्लादेश के साथ द्विपक्षीय समझौते के तहत रुपये एवं संबंधित देशों की मुद्रा में व्यापार करते थे किंतु रुपए को वैश्विक मुद्रा  बनाने के क्रम में रूस-यूक्रेन युद्ध मील का पत्थर साबित हुआ।

देखा जाये तो डॉलर के वर्चस्व को खत्म करने और रुपये को मजबूर करने के लिए भारत द्वारा उठाया जा रहा यह कदम छोटा तो अवश्य नहीं है। क्योंकि कहते हैं न कि छोटे-छोटे प्रयासों से ही बड़ी सफलता मिलती हैं। ऐसे ही एक न एक दिन भारत अपने प्रयासों में सफल जरूर होगा। वो दिन दूर नहीं जब भारतीय रुपया, डॉलर का काल बन जायेगा।