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ऐसा मंदिर जहां हुक्का और पानी का लगता है भोग, हजारों साल से चल रही है परंपरा, जानिए क्या है पौराणिक कहानी

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मथुरा: मथुरा और वृंदावन के कण-कण में भगवान बसते हैं। यही वजह है कि यहां भगवान की भक्ति में लीन होकर लोग उनका गुणगान करते हैं। वृंदावन के तारास मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण का एक मंदिर ऐसा भी है जहां जमाई राजा के नाम से मंदिर में ठाकुर जी बिराजमान हैं। भगवान को हुक्का और पानी का भोग अर्पित किया जाता है। कहते हैं कि अगर भगवान को हुक्का और पानी का भोग नहीं लगता तो भगवान उस भोग को मान्य नहीं करते।

हुक्का और पानी के बिना माना जाता है भोग अधूरा
वृंदावन के कण-कण में श्रीकृष्ण और राधा की लीलाओं के रहस्य छुपे हुए हैं। यहां कदम कदम पर श्रीकृष्ण और राधा ने अपनी लीलाओं को किया। वहीं वृंदावन में एक मंदिर ऐसा भी है जिसकी मान्यता भगवान बांके बिहारी मंदिर से कई गुना ज्यादा हुआ करती थी। यह मंदिर जमाई ठाकुर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर को जमाई ठाकुर मंदिर के नाम से क्यों जाना जाता है और इसकी मान्यता क्या है, वह हम आपको बता रहे हैं। जमाई राजा का मंदिर वृंदावन में स्थित है।

तारास मंदिर के प्रबंधक उदयन शर्मा ने बताया कि जमाई राजा मंदिर पूर्व बंगाल में तरस एक तहसील है। ढाका बंगाल की राजधानी है। पावना नाम का जिला यहां स्थित है। बनवारी लाल तराश तहसील के जमींदार थे। उनके यहां ठाकुर जी विराजमान थे। ठाकुर जी की पूजा यहां हुआ करती थी। उन्होंने बताया कि बंगाल की परंपरा चली आ रही है। मंदिर में हुक्का और पानी रखा जाता था। भगवान नदी से प्रकट हुए हैं। एक ब्राह्मण के द्वारा इन्हें प्रकट किया गया है।

52 बीघा में बना हुआ है बंगाल में मंदिर
उदयन शर्मा बताते हैं कि श्रीकृष्ण ब्राह्मण ने सपना देखा और उसमें ठाकुर जी ब्राह्मण से कह रहे हैं कि मुझे राजा के पास जाना है। राजा बहुत प्रसन्न हुए उनकी एक लड़की थी ठाकुर जी के लिए अपने हाथों से माला बनाया करती थी। बड़ी ही शिद्दत के साथ भगवान की सेवा करती थी। उदयन शर्मा ने कहा कि बंगाल में इनका मंदिर 52 बीघा में बना हुआ था। आज भी ठाकुर जी की काफी जगह है। वहां 110 कमरे इसमें बने हुए थे, तरह-तरह के छप्पन भोग और श्रीकृष्ण के रथ में लगे हुए घोड़े 2 किलो प्रति दिन खाते थे।

1875 में हुआ मंदिर का निर्माण
ठाकुर जी गंगाजल से अपनी बग्गी को धोकर बंगाल के भ्रमण करने के लिए निकलते थे। बंगाल से हजारों यात्री प्रतिवर्ष जमाई ठाकुर के दर्शन करने के लिए आता है। मंदिर का निर्माण 1875 में हुआ। जगतबंधु पैगंबर भी आए थे जो कि उनकी ख्याति भी बहुत है। बंगाल में उनकी पूजा सबसे ज्यादा हिंदू भगवानों में होती है। ठाकुर जी से उनका बहुत संबंध रहा है। उनका ह्रदय ठाकुर जी के साथ लगा हुआ है।

8 पीढ़ियों तक चली आ रही परम्परा
8 पीढ़ियों तक यह परंपरा लगातार चलती रही है। पहले ठाकुर जी से विवाह होता था कन्या का उसके बाद वर से विवाह होता है। कोई सम्मानित अतिथि आए तो गांव में उन्हें हुक्का पानी दिया जाता था। जमाई ससुराल की संपत्ति नहीं चाहता केवल मान सम्मान चाहता है, इसलिए ठाकुर जी के सामने रखने की परंपरा चली आ रही है।
इनपुट-निर्मल राजपूत