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Shivpal Yadav: हाय-हाय ये मजबूरी.. जरा ये शायरी पढ़ ले शिवपाल, दिल का दर्द कम हो जाएगा

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नई दिल्ली: मैनपुरी उपचुनाव में चाचा-भतीजे के बीच बंधी गांठ खुल गई है। नाराज चाचा ने अब बाग को सींचने की बात की है। दरअसल, हम जिस चाचा और भतीजे की बात कर रहे हैं वो कोई और नहीं बल्कि शिवपाल यादव और अखिलेश यादव हैं। अब भला चाचा करते भी क्या? जयचंद होने का डर सता रहा था। लोगों के तोहमत का डर था। भतीजा खुद बहू के साथ चलकर घर आया था, तो समाज की रीत भी निभानी थी। हर जगह तो घिरे हुए थे। अब नाराजगी तो है ही लेकिन करें क्या। मजबूरी थी।

अब शेर-ओ-शायरी की भाषा में समझिए कि चाचा शिवपाल के मन में उस समय चल क्या रहा होगा। जिस सीट पर कल तक वो खुद ताल ठोंक रहे थे वहां अब बहू के लिए हामी भरनी थी। तो जानिए चाचा के दिल की बात.. शेरो-ओ-शायरी के जरिए।

कभी गम तो कभी खुशी देखी
हमने अक्सर मजबूरी और बेकसी देखी
उनकी नाराजगी को हम क्या समझें
हमने तो खुद अपनी तकदीर की बेबसी देखी

चाचा के दिल में गम तो है लेकिन बगिया की सींचने की बात राजनीति करा रही है। हर अरमान पर पानी फिर रहा है। लेकिन सबका साथ जरूरी है, दिखाना भी है। सियासत में रिश्ते बनते-बिगड़ते हैं। कल चाचा की जुबान भतीजे के लिए तलवार की तरह चल रहा थी लेकिन जब भतीजा खुद दर पर आया हो तो करते भी क्या। बहू खुद भी दर पर थी। मन मसोसना पड़ा। दिल को समझाना पड़ा। इसे शायरी की भाषा में समझिए।
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मिलना एक इत्तेफाक है,
और बिछड़ना मजबूरी है,
चार दिन की इस जिंदगी में
सबका साथ होना जरूरी है
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अब करते भी क्या। बड़े भाई का बेटा, राज्य का पूर्व सीएम खुद आया था। समाज का डर सताने लगा। मैनपुरी समाजवादी पार्टी का गढ़ रहा है। अगर बीजेपी वाले कैंडिडेट के साथ चुपके से जाते तो बदनामी का डर था। उधर, भतीजे ने भी तो कुछ आश्वासन दिया ही होगा। तो उस आश्वासन के भरोसे, समाज का डर, राजनीति का तकाजा ये सब सोच चाचा हो गए चुप और भतीजे और बहू को साथ देने का कर दिया ऐलान। इसे भी शायरी से समझिए कि चाचा के दिल पर क्या बीत रही होगी।

किसी की मजबूरी कोई समझता नहीं,
दिल टूटे तो दर्द होता है मगर कोई कहता नहीं