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14 वैक्सीन पर काम चल रहा, 4 एडवांस स्टेज में; डॉ. हर्षवर्धन ने दिए महामारी से जुड़े अहम सवालों के जवाब

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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन का कहना है कि देश में कोरोना का वैक्सीन तैयार करने के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत काम चल रहा है। एक असरदार वैक्सीन बनाने की कोशिश है। इस वक्त 14 कंपनियां इस काम में जुटी हैं। इनमें से 4 के वैक्सीन प्री-क्लीनिकल ट्रायल के एडवांस स्टेज में हैं। 10 वैक्सीन को बायोटेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट से फंडिंग देने की सिफारिश की गई है। स्वास्थ्य मंत्री ने न्यूज एजेंसी आईएएनएस को दिए इंटरव्यू में कोरोना से जुड़े अहम सवालों के जवाब दिए।

सवाल: अमेरिका, ब्रिटेन और चीन के मुकाबले भारत में कोरोना के मामलों की क्या स्थिति है? कुछ रिसर्च में पता चला है कि गर्म इलाकों में कोरोना से मौतों की दर सिर्फ 6% है, क्या तापमान बढ़ने से वायरस मर जाएगा?
जवाब: सही समय पर फैसले लेने से हम बेहतर स्थिति में हैं। 26 मई तक के आंकड़ों के मुताबिक भारत में एक लाख में से 10.7 लोग संक्रमित हैं, जबकि दुनिया में प्रति एक लाख की आबादी में औसत 69.9 केस हैं। हमारे यहां प्रति लाख आबादी में कोरोना से मरने वालों की संख्या 0.3 है, जबकि दुनिया में 4.4 है।

तापमान और कोरोना संक्रमण के बीच कोई संबंध नजर नहीं आता। गर्म देशों में कोरोना से कम मौतों की कई वजह हो सकती हैं, जैसे- कम आबादी होना, युवाओं की संख्या ज्यादा होना और इंटरनेशनल ट्रैवल करने वालों की संख्या कम होना।

सवाल: आप कह रहे हैं कि लोगों को वायरस के साथ जीना सीखना पड़ेगा। सरकार के लिए डिस्टेंसिंग लागू करवाना कैसे संभव होगा, जबकि अब लॉकडाउन खुलने लगा है।
जवाब: मेरा अनुभव है कि कोरोना तेजी से फैल रहा है, लेकिन इसकी वजह से मौतों की दर (फेटैलिटी रेट) कम है। भारत में कंप्लीट लॉकडाउन और पब्लिक हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर पर फोकस करने से कोरोना से मरने वालों की संख्या कम करने में मदद मिली। 

ये कहना जल्दबाजी होगी कि वायरस पूरी तरह कब खत्म होगा। समय-समय पर ये अपना असर दिखा सकता है। इसलिए, हमें पर्सनल हाइजीन और फिजिकल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखना है।

सवाल: क्या आपको लगता है कि एसिम्प्टोमेटिक मरीजों की वजह से चिंता ज्यादा है, उनकी वजह से गांवों तक संक्रमण फैल सकता है?
जवाब: मैं डब्ल्यूएचओ के उदाहरण के बारे में अवेयर हूं कि टेस्टिंग में पॉजिटिव आ रहे कुछ मरीज एसिम्प्टोमेटिक हैं, लेकिन ये भी सच है कि एसिम्प्टोमेटिक ट्रांसमिशन का पुख्ता प्रूफ नहीं है।

अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने सिरदर्द, मांस-पेशियों में दर्द, आंखों में गुलाबीपन, गंध या स्वाद का पता नहीं चलना, तेज सर्दी और गले में दर्द को कोरोना के लक्षणों में शामिल किया है। भारत की लिस्ट में इन लक्षणों को शामिल करने से पहले और ज्यादा स्टडी की जरूरत है।

सवाल: दिल्ली, मुंबई, आगरा, पश्चिम बंगाल, इंदौर और अहमदाबाद में स्थिति ज्यादा बिगड़ने की वजह क्या मानते हैं?
जवाब: मैं राज्यों के मुख्यमंत्रियों से लगातार संपर्क में हूं। वे संक्रमण रोकने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। ये इस बात पर भी निर्भर होता है कि कम्युनिटी सोशल डिस्टेंसिंग के प्रति कितनी जिम्मेदारी निभा रही है? इन कोशिशों में जरा सी लापरवाही से स्थिति बिगड़ सकती है।

सवाल: टेस्टिंग की क्या स्थिति है, क्या इसे बढ़ाने से बीमारी को रोक सकते हैं?
जवाब: अभी जरूरत के हिसाब से टेस्टिंग की जा रही है। जोखिम वाले या फिर बीमारी के लक्षण वाले लोगों को प्रायरिटी दे रहे हैं। स्थिति को देखते हुए समय-समय पर स्ट्रैटजी बदली जाती है। हर रोज 1.60 लाख टेस्ट करने की कैपेसिटी है। अब तक 32 लाख 44 हजार 884 टेस्ट किए गए हैं।

मैं पहले भी कह चुका हूं कि 1.3 अरब की आबादी का बार-बार टेस्ट करेंगे तो ये न सिर्फ महंगा पड़ेगा, बल्कि संभव भी नहीं हो पाएगा।

सवाल: एम्स के डायरेक्टर ने पिछले दिनों कहा था कि अगले दो महीने में स्थिति और बिगड़ सकती है। ऐसे में कोरोना के मामलों में ठहराव आने की उम्मीद कब तक है?
जवाब: अभी स्थिरता दिख रही है, अचानक बहुत ज्यादा तेजी कभी नहीं देखी गई। हम संक्रमण के मामलों में कमी लाने की कोशिश कर रहे हैं। हमारे वैज्ञानिक रिसर्च में जुटे हैं।

सवाल: कोरोना के मामले बहुत ज्यादा बढ़ने की स्थिति में बेड, वेंटीलेटर और पीपीई किट के लिए क्या तैयारियां हैं?
जवाब: हम चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार हैं। हमारे पास 2 लाख 49 हजार 636 डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल और 1 लाख 75 हजार 982 सेंटर हैं। 60 हजार 848 वेंटीलेटर के ऑर्डर दिए हैं जो अलग-अलग फेज में जून तक मिल जाएंगे। राज्यों के पास अभी तक 32.54 लाख पीपीई किट उपलब्ध हैं। 2.23 करोड़ का ऑर्डर और दे रखा है, इनमें से 89.84 लाख किट आ गई हैं। देश में रोजाना 3 लाख किट बन रही हैं।

सवाल: एक डॉक्टर होने के नाते लोगों को बीमारी से बचने के लिए क्या सुझाव देंगे? सबसे ज्यादा असुरक्षित तबका कौन सा है? क्या लॉकडाउन से फायदा हुआ?
जवाब: मैंने कई बार कहा है कि इस वक्त सोशल और फिजिकल डिस्टेंसिंग ही सबसे असरदार वैक्सीन है। इंडस्ट्रियल और कंस्ट्रक्शन से जुड़े मजदूर, कच्ची बस्तियों और भीड़भाड़ वाले इलाकों में रहने वाले लोगों को ज्यादा रिस्क है। मैं पहले भी कह चुका हूं कि कोरोना का संक्रमण रोकने में कंप्लीट लॉकडाउन सफल रहा, लेकिन इसके सामाजिक-आर्थिक असर को समझना भी जरूरी है।