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Editorial:चीन की विस्तारवादी नीति से ताइवान को बचाना होगा

18-12-2022

ताइवान जैसी ही चिंता यूरोपियन यूनियन में भी है। दोनों जगहों पर यह सवाल पूछा जा रहा है कि उनकी इंडस्ट्री को अपने यहां ले जाकर अमेरिका आखिर ये कैसी दोस्ती निभा रहा है?अमेरिका ने ताइवान की सबसे कीमती कंपनी को अपने यहां ले जाने की जो प्रक्रिया शुरू की है, उसको लेकर ताइवान में चिंता गहराना लाजिमी है। दरअसल, ऐसी ही चिंता यूरोपियन यूनियन में भी है, जहां की कंपनियों को अमेरिका अपने यहां ले जाने में लगा है। अमेरिका ने इसके लिए जो सब्सिडी घोषित की है, उसका मुकाबला करना यूरोपीय देशों के लिए मुश्किल हो रहा है। तो वहां यह सवाल पूछा जा रहा है कि अमेरिका आखिर ये कैसी दोस्ती निभा रहा है? यही सवाल ताइवान में भी उठा है। सेमीकंडक्टर क्षेत्र की दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी टीएसएमसी का प्लांट अमेरिका में लगवाने की जो बाइडेन प्रशासन की नीति से वहां नाराजगी फैली है। इसको लेकर वहां की संसद में बहस हो चुकी है। टीएसएमसी ने बीते हफ्ते अमेरिका के एरिजोना में 40 बिलियन डॉलर की लागत से बनने वाले अपने संयंत्र का शिलान्यास किया। इस मौके पर खुद अमेरिका राष्ट्रपति बाइडेन उपस्थित हुए। इस घटनाक्रम से ताइवान के राजनीतिक और कारोबारी हलकों में ये संदेह गहराया है कि अमेरिका ताइवान की सबसे मूल्यवान कंपनी को अपने यहां शिफ्ट कराने की कोशिश में है। इसके अलावा वह टीएसएमसी को जापान और यूरोप में भी संयंत्र लगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है।ताइवान में सवाल उठा है कि क्या अमेरिका ने मान लिया है कि देर-सबेर चीन ताइवान पर कब्जा कर लेगा? क्या इसलिए वह उससे पहले ही आज के दौर में सबसे महत्त्वपूर्ण मानी जा रही इंडस्ट्री को ताइवान से निकाल लेना चाहता है? टीएसएमसी सबसे उन्नत किस्म के चिप का उत्पादन करती है। उसके चिप का इस्तेमाल एपलसे लेकर क्वैलकॉम जैसी बड़ी कंपनियां करती हैँ। इसलिए ताइवान में टीएसएमसी को राष्ट्रीय धरोहर माना जाता है। ताइवान में यह धारणा रही है कि टीएसएमसी का आज दुनिया की अर्थव्यवस्था में इतना महत्त्व है कि उसके रहते दुनिया ताइवान पर चीन का कब्जा नहीं होने देगी। अमेरिका सहित तमाम देश इस कंपनी को बचाने के मकसद से भी ताइवान की रक्षा में खड़े होंगे। इसीलिए इसे ताइवान में सिलिकॉन शील्डÓ कहा जाता है। लेकिन ताइवान के लोगों को उचित ही यह लग रहा है कि वह कवच उनसे छीना जा रहा है।