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केशरीनाथ ने ठुकरा दिया था न्यायाधीश बनने का प्रस्ताव,

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पूर्व राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी की गिनती देश के नामी अधिवक्ताओं में होती रही है। उनकी इसी काबिलियत की वजह से वर्ष 1980 में उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायाधीश बनने का प्रस्ताव मिला था, लेकिन उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया। तब केशरीनाथ ने कहा था कि वह वकालत ही करना चाहते हैं। भाजपा में होने के बाद भी उन्होंने कई महत्वपूर्ण केस लड़े।

केशरीनाथ के करीबी नेताओं में शामिल बब्बू राम द्विवेदी बताते हैं कि 1956 में ही पंडित जी ने वकालत शुरू कर दी। तब वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के पुस्तकालय सचिव चुने गए। इसके बाद 1987-88 एवं 1988-89 में वह बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी बने। 1989 में उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता बनाया गया। वर्ष 92-93 में लोकसभा अध्यक्ष द्वारा नियुक्ति विधायिका, न्यायपालिका सौहार्दपूर्ण संबंध रखने संबंधी समिति का सदस्य भी उन्हें बनाया गया।

सिविल, सांविधानिक एवं चुनाव कानून में उन्हें महारत हासिल रही। पंडित जी को पराजय स्वीकार नहीं थी, या यह कहना उचित होगा कि उनके द्वारा न्यायिक क्षेत्र में ऐसा कोई प्रकरण नहीं आता, जिसमें उनकी कमी की वजह से हार का सामना करना पड़ा हो। विधि विरुद्ध न कोई उन्होंने काम किया और न ही ऐसी वकालत का किसी को सुझाव दिया।

विधि विधान में बाल की खाल तो निकाली जाती है लेकिन केशरीनाथ अपने बिंदुओं को सूक्ष्म से सूक्ष्म रूप से देखा करते थे। उनकी यह विशेषता उनके खून में है। यही वजह रही कि वह अपने कर्तव्यों के प्रति हमेशा सावधान रहते और प्रत्येक बिंदु पर चिंतन करते रहे।

पूर्व राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी की गिनती देश के नामी अधिवक्ताओं में होती रही है। उनकी इसी काबिलियत की वजह से वर्ष 1980 में उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायाधीश बनने का प्रस्ताव मिला था, लेकिन उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया। तब केशरीनाथ ने कहा था कि वह वकालत ही करना चाहते हैं। भाजपा में होने के बाद भी उन्होंने कई महत्वपूर्ण केस लड़े।

केशरीनाथ के करीबी नेताओं में शामिल बब्बू राम द्विवेदी बताते हैं कि 1956 में ही पंडित जी ने वकालत शुरू कर दी। तब वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के पुस्तकालय सचिव चुने गए। इसके बाद 1987-88 एवं 1988-89 में वह बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी बने। 1989 में उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता बनाया गया। वर्ष 92-93 में लोकसभा अध्यक्ष द्वारा नियुक्ति विधायिका, न्यायपालिका सौहार्दपूर्ण संबंध रखने संबंधी समिति का सदस्य भी उन्हें बनाया गया।