Lok Shakti

Nationalism Always Empower People

Shikshamitra News: यूपी के जिलों से आज लखनऊ पहुंच रहे हैं शिक्षामित्र, प्रयागराज से 2 हजार रवाना

Default Featured Image

UP News: पांच साल से एक रुपया शिक्षामित्रों का नहीं बढ़ा है। आर्थिक तंगी से जूझ रहे लाखों शिक्षामित्र सरकार को पीड़ा बताने के लिए लखनऊ पहुंच रहे हैं।

 

प्रयागराज: उत्तर प्रदेश के करीब सवा लाख प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षण कार्य कर रहे शिक्षामित्र फिर आंदोलन की राह पर हैं। प्रयागराज समेत प्रदेश के सभी जिलों से हजारों की संख्या में शिक्षामित्र लखनऊ के इको गार्डन में धरना देने निकल पड़े हैं। गुरुवार को इको गार्डन में करीब 50 हजार शिक्षामित्रों के पहुंचने का अनुमान है। प्रयागराज से विपरीत मौसम को दरकिनार करते हुए भी करीब 2000 शिक्षामित्र बस ट्रेन और अन्य साधनों से लखनऊ के लिए निकल गए। जिला अध्यक्ष वसीम अहमद के नेतृत्व में अमर शहीद चंद्रशेखर पार्क से पुरुष और महिला शिक्षामित्रों को लेकर बसों का एक बड़ा बेड़ा भी रवाना हुआ।पिछले 5 साल से मानदेय न बढ़ने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षामित्र सूबे के बेसिक स्कूलों में पिछले 22 वर्षों से तकरीबन पौने दो लाख शिक्षामित्र वर्तमान में संविदा कर्मी के रूप में तैनात हैं। जिन्हें मात्र 10 हजार रुपये प्रति माह के हिसाब से केवल 11 माह का मानदेय मिलता है। सितम्बर 2017 से उत्तर प्रदेश के करीब 1.65 लाख शिक्षामित्रों का मानदेय में एक रुपये की भी बढ़ोतरी नहीं की गई। जिसकी वजह से शिक्षामित्र आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। 2 जनवरी को उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्रों ने आर्थिक तंगी और अनिश्चित भविष्य को लेकर प्रदेश के सभी जनपदों में रैली व विरोध सभा कर चुके हैं।

शिक्षामित्र सरकार का विरोध नहीं, बल्कि अपनी पीड़ा बताने को कर रहे प्रदर्शनशिक्षामित्रों का कहना है कि शिक्षामित्र सरकार के विरोध में नहीं, बल्कि अपनी पीड़ा को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ तक पहुंचाने के लिए सड़कों पर उतरें हैं। लखनऊ के इको गार्डन में शिक्षामित्र अपनी पीड़ा व्यक्त करेंगे। सरकार से अपनी मांग रखेगें। अगर उनकी पीड़ा को नहीं सुना गया तो वह गांधी वादी तरीका अपनाएंगे।बीजेपी सरकार ने किया था शिक्षामित्र योजना की शुरुआतउत्तर प्रदेश में 90 के दशक में करीब 60 फ़ीसदी प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की कमी से ताले बन्द थे। ऐसे में केंद्र सरकार के निर्देश पर शिक्षामित्र योजना की शुरुआत बीजेपी सरकार ने मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के कार्यकाल में 1999 में की। 1999 से 2007 के मध्य करीब 1.72 लाख शिक्षामित्रों की नियुक्ति की गई। बेपटरी प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था धीरे-धीरे पटरी पर आई तो शिक्षामित्रों ने भी अपने हक की मांग शुरू कर दिया। शिक्षामित्रों को पहले 2250 रुपये मानदेय मिलता था। शिक्षामित्रों के संघर्ष को देखते हुए धीरे-धीरे इनके मानदेय में बढ़ोतरी होती रही। अनिवार्य शिक्षा अधिनियम आने के बाद स्नातक शिक्षामित्रों को सेवारत बीटीसी का प्रशिक्षण कराया गया। 2014 में समाजवादी पार्टी ने इन्हें सहायक शिक्षक के पद पर समायोजित करना शुरू किया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने किया था शिक्षामित्रों का समायोजन रद्दशिक्षामित्रों के प्रथम बैच का समायोजन सहायक शिक्षक के पद पर हो चुका था, तभी इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शिक्षामित्रों की समायोजन को निरस्त कर दिया। उत्तर प्रदेश सरकार उक्त मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गई। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर स्टे कर दिया और समाजवादी पार्टी की सरकार ने 2015 में डीबीटी कोर्स पूरा कर चुके दूसरे बैच के शिक्षामित्रों का भी सहायक अध्यापक पद पर समजोजन कर दिया। इसी बीच उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी। सुप्रीम कोर्ट से भी शिक्षामित्रों का समायोजन हुआ रद्द26 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट से भी सरकार शिक्षामित्रों के समायोजन सम्बन्धी मुकदमा हार गई। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने सभी शिक्षामित्रों को अगस्त 2017 से संविदा कर्मी के रूप में तैनात कर दिया। सितम्बर 2017 तक तकरीबन 40 हजार रुपये वेतन पाने वाला समायोजित शिक्षामित्र अगस्त 2017 से 10 हजार रुपये मानदेय पर संविदा कर्मी के रूप में प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ा रहा है। पिछले 5 वर्षों में इनके मानदेय में कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गई है। पिछले 22 वर्षों से शिक्षण कार्य कर रहे शिक्षामित्रों कि धीरे-धीरे आर्थिक स्थिति कमजोर होती गयी। उम्र बढ़ने के साथ ही जिम्मेदारियां बढ़ती गयी।पिछले करीब बाइस साल से प्राथमिक विद्यालयों शिक्षक के समान बच्चों को पढ़ा रहे शिक्षामित्र एक बार फिर आखिर सड़क पर आंदोलन को मजबूर हो गया।आर्थिक तंगी, अवसाद, बीमारी से हजारों शिक्षामित्रों की हुई असमय मौतशिक्षामित्रों के संघों का आरोप है कि सूबे में आर्थिक तंगी, बीमारी, अवसाद से करीब 8000 शिक्षामित्रों का असमय मौत हो चुकी है। औसतन 1 से 2 शिक्षामित्र की प्रतिदिन मौत हो रही है, लेकिन सरकार उनकी पीड़ा नहीं सुन रही है। शिक्षामित्रों के भविष्य को सुरक्षित करने में सरकार उपेक्षा बरत रही है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आश्वासन देने के बाद वादा पूरा नहीं किया। विधानसभा में मुख्यमंत्री द्वारा मानदेय बढ़ाने की घोषणा के बाद भी मानदेय नहीं बढ़ा। मंहगाई को देखते हुए 10 हजार मानदेय में जीवन यापन करना बहुत मुश्किल हो रहा है।सेवारत प्रशिक्षण, पूर्ण योग्यता के बाद वेतन नहीं मिलताशिक्षामित्र स्नातक, परास्नातक, बीटीसी प्रशिक्षण प्राप्त पूर्ण योग्यताधारी हैं, लेकिन कानूनी प्रक्रिया में उलझने से उन्हें संविदाकर्मी के रूप में पिछले 20-22 वर्षों से प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षण कार्य करना पड़ रहा है। जहां उनके समान ही योग्यताधारी शिक्षकों को 70 से 90 हजार तक वेतन मिल रहा है। शिक्षामित्रों का कहना है कि देश के सभी प्रदेशों से कम मानदेय उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्रों को मानदेय मिल रहा है।
रिपोर्ट- शिवपूजन सिंह
अगला लेखपंचतत्व में विलीन हुए पूर्व राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी, सीएम योगी ने प्रयागराज जाकर किए अंतिम दर्शन

आसपास के शहरों की खबरें

Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म… पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐपलेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें