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बढ़ती फीस से अभिभावक परेशान, इस पर नहीं सरकार का ध

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हर साल नये पब्लिकेशन की पुस्तकें खरीदनी पड़ती हैं, जो काफी महंगी पड़ती हैं
एडमिशन चार्ज काफी अधिक होता है, यह हर साल बढ़ता जाता है

Ranchi :  जिन स्कूलों में बच्चे का एडमिशन कराने पर अभिभावक पहले खुशी महसूस करते थे, वहां अब वे परेशानी महसूस करते हैं. उनकी परेशानी हर साल फीस में बढ़ोतरी को लेकर है. एडमिशन का मौसम आते है अभिभावक एक स्कूल से दूसरे स्कूल पहुंचना शुरू कर दिये हैं. स्कूल का इंफ्रास्ट्रक्चर देखकर वे वहां एडमिशन लेना चाहते हैं. इसके लिए वहां मोटी रकम देनी होती है. इसके लिए भी तैयार रहते हैं. लेकिन एडमिशन लेने के बाद उनकी समस्या खत्म नहीं होती है. दरअसल उनकी समस्या हर साल एनुअल चार्ज और प्रोसेसिंग चार्ज के नाम पर ली जाने वाली फीस होती है. अब उसका समय आने वाला है. इस बात से अभिभावकों की टेंशन बढ़ी हुई है. सारी फीस उन्हें हर हाल में देनी है. जबकि महंगाई के कारण उनके घर का बजट पहले से ही गड़बड़ाया है. अब उनके सामने बढ़ी हुई फीस है. शुभम संदेश की टीम ने इसकी पड़ताल की. स्कूल प्रबंधन और अभिभावकों से बात कर टीम उनकी परेशानी सामने लायी.

स्कूलों में उनके कहे अनुसार फीस दे देते हैं : आरती सिंह

रांची की रातु में रहने वाली आरती सिंह के बच्चे डीएवी हेहल में पढ़ते हैं. फीस बढ़ोतरी पर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि हम स्कूलों में उनके कहे अनुसार फ़ीस दे देते हैं. जबकि यह बहुत अधिक होता है. लेकिन कोई उपाय भी नहीं है. स्कूल में पूछने पर कहा जाता है कि किसी को शिकायन नहीं तो आप को क्या परेशानी है. जबकि सभी इससे परेशान हैं. इसलिए इस पर सभी को सवाल उठाना चाहिए. यह सीधा हमारे बजट से जुड़ा है. इसके अलावा भी कई तरह के खर्चे होते हैं. उसे भी तो पूरा करना होता है. लेकिन हमें नहीं लगता स्कुलों द्वारा स्कूल या टीचर्स के लिए कुछ किया जाता है. सब कॉरपोरेट कंपनी बन गयी है.

सरकारी स्कूलों पर ध्यान दिया जाता तो अच्छा होताः विवेकानंद तिवारी

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रांची के रातु में रहने वाले विवेकानंद तिवारी के बच्चे डीएवी हेहल में पढ़ते हैं. फीस बढ़ोतरी के बारे मैं पूछने पर कहा कि आजादी से अभी तक अगर सरकार सरकारी स्कूलों पर ध्यान दी जाती तो आज जो सवाल सब जगह उठाया जा रहा है, वह नहीं उठता. सभी को समान रूप से शिक्षा मिलती. सभी अपनी आय के तहत ही बच्चों को पढ़ा पाते. लेकिन हालात बदल गये हैं. अच्छी शिक्षा के नाम पर स्कूल फीस बढ़ाते रहता है. मंथली और एनुअल चार्ज के नाम पर मनमाने पैसे लिये जाते हैं, लेकिन इस पर सरकार का कोई ध्यान नहीं जाता है. अधिकारी भी इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करते हैं. जबकि यह गंभीर मामला है.

एनुअल चार्ज के नाम पर काफी रकम ली जाती हैः पूजा तिवारी

रांची के कांके में रहने वाली पूजा तिवारी के बच्चे डीएवी सीसीएल में पढ़ते हैं. जब उन्होंने बच्चे का एडमिशन कराया था तो काफी प्रसन्न थे. शुरुआत में सबकुछ ठीक रहा. फीस पर नियंत्रण था. बाद में फीस महंगाई की तरह बढ़ती गयी. बढ़ोतरी पर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि हर साल स्कूल तो फीस बढ़ा देता है. साथ ही एनुअल चार्ज के नाम पर बड़ा रकम वसूला जाता है. जो कि बहुत गलत है. स्कूल को पेरेंट्स के बारे में सोचना चाहिए. उनका कई तरह का खर्चा होता है. वे पहले से ही महंगाई की चपेट में हैं. अब वे किधर-किधर खर्चे पूरे करेंगे. इसलिए सरकार को इस पर विचार करना चाहिए. ]

हर साल अभिभावकों से मोटी रकम ली जाती हैः अर्चना दुबे

रांची दलदली चौक पर रहने वाली अर्चना दुबे के बच्चे बिशप वेस्टकॉट में पढ़ते हैं. फीस बढ़ोतरी पर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए हमें करना पड़ता है. स्कूल से नोटिस आ जाता है. उसके बाद फीस देनी पड़ती है. स्कूल के मनमाने फीस हम परेशान हैं. मुझे नहीं लगता है कि इतनी मोटी रकम हर साल अभिभावकों से ली जानी चाहिए. अब स्कूल कॉरपोरेट घरानों की तरह चलाए जाते हैं. उसका उद्देश्य अधिक से अधिक पैसा कमाना होता है. जो नहीं देते हैं उन्हें नोटिस देकर परेशान किया जाता है. या तो वह बच्चे को हटा लेता है या फिर फीस भर देता है. यही तो स्थिति है.

अगर सरकारी स्कूल अच्छे होते तो यह हालत नहीं होतीः अर्पणा एक्का

रांची के रातू रोड में रहने वाली अर्पणा एक्का से जब हमने पूछा तो उन्होंने अपनी पीड़ा बतायी. उनके बच्चे संत जेवियर स्कूल में पढ़ते हैं. उन्होंने कहा कि अगर सरकारी स्कूल सरकार द्वारा अच्छे से चलाए जाते तो कोई भी अभिभावक इतनी मोटी रकम देकर प्राइवेट स्कूल में अपने बच्चों को नहीं पढ़ता. लेकिन पेरेंट्स की मजबूरी है. इसका समाधान उन्हें प्राइवेट स्कूल में मिलता है. इसलिए वे प्राइवेट स्कूल पहुंचते हैं. यहां उनसे काफी पैसे लिये जाते हैं. वे चाहकर भी पीछे नहीं हट पाते हैं. जो बोला जाता है, उसे पूरा करते हैं. कहा कि कभी एनुअल चार्ज के नाम पर तो कभी मंथली ट्यूशन के नाम पर पैसे लिये जाते हैं.

प्रतिमाह स्कूल एक्टिविटीज के नाम पर पैसे लिये जाते हैं

प्राइवेट स्कूल की मनमानी से सभी लोग त्रस्त हैंः भोला

भोला महतो कहते हैं कि प्राइवेट स्कूल की मनमानी से सभी लोग त्रस्त हैं. आए दिन तरह-तरह की फीस की वसूली कर अभिभावकों को परेशान किया जाता है. अभिभावकों के पास कोई विकल्प नहीं होता है. उन्हें फीस भरना पड़ता है. कोई अधिक विरोध करने की स्थिति में भी नहीं होता है. आखिर सभी को बच्चे पढ़ाना होता है. तो वे फीस भर देते हैं. जबकि शिक्षा सस्ती होनी चाहिए ताकि आम लोग भी अपने बच्चे को बेहतर शिक्षा के लिए प्राइवेट स्कूल में दाखिला करा सके. इन दिनों प्राइवेट स्कूल में दाखिले की फीस सहित एनुअल चार्ज स्कूल प्रबंधक के द्वारा मनमाने ढंग से लिया जाता है, जो सरासर गलत है. बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल फीस के अलावा अन्य कई चीजों को भी देखना होता है. उसमें भी खर्च होता है. स्कूल प्रबंधक को इस पर गंभीरतापूर्वक सोचने की आवश्यकता है.

सरकार को अब उचित कदम उठाना चाहिएः कयूम अंसारी

कयूम अंसारी फीस को लेकर कहते हैं कि प्राइवेट स्कूलों द्वारा मनमानी की जाती है. बच्चों को एलकेजी में दाखिले के समय स्कूल प्रबंधक के द्वारा मनमाने ढंग से फीस की वसूली की जाती है. कई तरह के चार्ज जोड़ दिये जाते हैं. इतना ही नहीं स्कूल प्रबंधक एनुअल चार्ज, मंथली ट्यूशन फीस और ना जाने अन्य कई चीजों को लेकर मनमाने ढंग से पैसे की वसूली करते हैं. जबकि सभी की स्थिति एकसमान नहीं होती है. किसी की आमदनी अधिक होती है तो किसी की कम होती है. इन बातों को सोचना चाहिए. मध्यम वर्ग के अभिभावकों को बच्चे को पढ़ाने के लिए बहुत कुछ मैनेज करना पड़ता है. उनके कई तरह के खर्चे होते हैं. इसके बाद भी वे फीस भर ही देते हैं. जब नोटिस आती है तब बच्चों की किताब, कॉपी और ड्रेस समेत हर चीज खरीदनी पड़ती है.

बहुत मुश्किल से अभिभावक पेसे जुटाता हैः विक्की खान

विक्की खान कहते हैं कि प्राइवेट स्कूल प्रबंधक के द्वारा मनमाने ढंग पैसे की वसूली के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए. बहुत मुश्किल से एक अभिभावक पेसे जुटाता है. फिर अपने बच्चे की बेहतर शिक्षा के लिए प्राइवेट स्कूल पहुंचता है. लेकिन जब वह स्कूल अपने बच्चे के दाखिले के लिए पहुंचता है तब उसकी समस्या शुरू होती है. उनसे कई तरह की चीज की को बता कर पैसे की वसूली की जाती है. जो सरासर गलत है. बच्चों का एडमिशन फीस, स्कूल का एनुअल चार्ज और बस फीस सहित पढ़ने लिखने के लिए किताब, कॉपी, ड्रेस, बस और फीस जैसे अन्य कई चीजों की पूर्ति अभिभावकों को करना होता है. जो इन दिनों काफी महंगी हो चुकी है. वहीं इन्हें दूसरे जगह से खरीदने की छूट भी नहीं होती है. इस पर स्कूल का आदेश मानना पड़ता है. सरकार को चाहिए कि इस ओर ध्यान देते हुए स्कूल प्रबंधक पर करवाई करे, ताकि गरीब से गरीब अभिभावक भी अपने बच्चे को प्राइवेट स्कूल में पढ़ा सके.

11 महीने से झारखंड एजुकेशन ट्रिब्यूनल में अध्यक्ष नहीं, कर्मचारियों को नहीं मिल रहा मानदेय

झारखंड एजुकेशन ट्रिब्यूनल खुद बीमार

झारखंड एजुकेशन ट्रिब्यूनल में 13 दिसंबर 2021 के बाद से ही अध्यक्ष का पद खाली है. ट्रिब्यूनल में अध्यक्ष पद खाली होने के कारण राज्य भर से पहुंचनेवाली शिकायतें पेंडिंग पड़ी हैं. जब अध्यक्ष ही नहीं हैं, तो मामले की सुनवाई आखिर करे तो कौन करे. प्राइवेट स्कूलों में फीस बढ़ोतरी से परेशान अभिभावक आखिर अपनी फरियाद लेकर जाएं तो जाएं कहां. अध्यक्ष के नहीं होने से ट्रिब्यूलन पूरी तरह से पंगु हो गया है. प्राइवेट स्कूलों के प्रबंधन द्वारा मनमानी फीस बढ़ोतरी की जा रही है. हर साल किताबें और स्कूल ड्रेस बदल दी जा रही हैं और अभिभावक मुंह बंद कर स्कूलों की मनमानी झेलने को विवश हैं. न तो स्कूल प्रबंधन उनकी कुछ सुनता है और न ही ऊपर कहीं उनकी पीड़ा दूर करने के लिए सुनवाई की व्यवस्था है. ट्रिब्यूनल खुद ही बीमार-परेशान है. जब उसकी ही सुननेवाला कोई नहीं, तो भला वह किसकी परेशानी सुन सकता है. 2022 में 15 मामले ट्रिब्यूनल में आए, पर नहीं हुई सुनवाई. आखिर लोग कहां करें फरियाद, कहां रखें अपनी समस्याएं.

खुद समस्याओं से गिरा है ट्रिब्यूनल, ठेके पर कर्मचारी, मानदेय भी नहीं : ट्रिब्यूनल की अंदरुनी समस्याएं भी कम नहीं हैं. ट्रिब्यूनल के लॉ सेक्शन में 2 साल से कंप्यूटर खराब है , लेकिन कोई ध्यान देनेवाला भी नहीं.यहां कार्यरत कर्मचारियों को मानदेय नहीं मिल रहा है. रखरखाव या उपकरणों का मेंटेनेंस नहीं हो पा रहा है. के विद्यासागर का कार्यकाल 13 दिसंबर 2021 में पूरा होने के बाद से अब तक कोई नया अध्यक्ष नियुक्त नहीं हुआ है. अध्यक्ष के नहीं होने से ट्रिब्यूनल में कार्यरत कर्मचारियों को पिछले 11 महीने से मानदेय नहीं मिल रहा है. इन कर्मचारियों की नियुक्ति 2007 में संविदा पर की गयी थी. कर्मचारी 12 साल से मानदेय पर कार्य कर रहे हैं. 5 फरवरी 2018 को नियमों का हवाला देते हुए इनकी नियुक्ति को नियमित नहीं बताया गया और अब इन्हें 359 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से मानदेय का भुगतान किया जाता है. रविवार और छुट्टियों का पैसा इन्हें नहीं दिया जाता है. इन्हें दैनिक वेतनभोगी बना दिया गया. सेक्शन ऑफिसर महानंद शर्मा से अध्यक्ष की नियुक्ति न होने से हो रही परेशानियों के संबंध में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि मुझे कुछ भी मालूम नहीं है. मेरी भी तो नियुक्ति नहीं हुई है.

न अध्यक्ष न व्यवस्था, कौन करे सुनवाई

झारखंड हाईकोर्ट के निर्देश के बावजूद अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं

झारखंड एजुकेशन ट्रिब्यूनल में अध्यक्ष पद की नियुक्ति नहीं हो पाई है. सितंबर 2022 में हाईकोर्ट ने झारखंड सरकार को निर्देश दिया था कि 3 महीने के अंदर झारखंड एजुकेशन ट्रिब्यूनल में अध्यक्ष पद की नियुक्ति की जाए. ट्रिब्यूनल में पिछले 1 साल से अध्यक्ष का पद खाली है. इस कारण कई मामले लंबित हैं. विलंब के कारण 12 याचिकाकर्ताओं ने अपने मामले वापस ले लिए हैं. जानकारी के अनुसार अध्यक्ष का पद खाली रहने के कारण ट्रिब्यूनल के अन्य पद भी नहीं भरे जा पा रहे हैं. मालूम हो कि जमशेदपुर के एक निजी स्कूल के शिक्षक सुमन सिंह ने वेतन भुगतान को लेकर झारखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए 13 सितंबर 2022 को हाईकोर्ट ने झारखंड सरकार को निर्देश दिया था कि 3 महीने के अंदर झारखंड एजुकेशन ट्रिब्यूनल में अध्यक्ष समेत अन्य पदों पर नियुक्ति की जाए.

प्राइवेट स्कूलों की मनमानी बढ़ गयी है, रोक लगनी चाहिए: बसंत

लातेहार के थाना चौक के बसंत प्रसाद ने कहा कि प्राइवेट स्कूलों की मनमानी काफी बढ़ गयी है. आज प्राइवेट स्कूल में बच्चों को पढ़ाना काफी मुश्किल हो गया है. प्रति वर्ष बच्चों की फीस बढ़ रही है, लेकिन आमदनी सीमित है. ऐसे में परेशानी हो जाती है. फीस अगर एक नियम के तहत बढ़ायी जाती है तो ठीक है. लेकिन ऐसा नहीं होता है. स्कूल प्रबंधन अपने ढंग से फीस बढ़ा देती है. प्रत्येक वर्ष बच्चों के रि-एडमिशन के नाम पर वसूली की जाती है. अभिभावकों के पास भी कोई विकल्प नहीं होता है. वे चाहकर भी इससे बच नहीं पाते हैं. वे किसी तरह फीस भर देते हैं. वे सालोंभर आर्थिक दबाव में रहते हैं.

प्राइवेट स्कूलों में हर साल बदल दी जाती है किताबें: आजाद

लातेहार रेलवे स्टेशन के आजाद खान ने कहा कि प्राइवेट स्कूलों में प्रत्येक वर्ष बच्चों की किताबें बदल जाती हैं. ऐसे में उन अभिभावकों को अधिक परेशानी होती है, जिनके घरों में कई बच्चे हैं. अगर वे फीस नहीं भरते हैं तो स्कूल प्रबंधन नोटिस थमा देता है. इसके बाद उनकी टेंशन बढ़ जाती है. फिर वे इसे पूरा करने में लग जाते हैं. स्कूल प्रबंधन को नियंत्रित करने के लिए सरकार को कोई प्रावधान बनाना चाहिए. कोरोना काल में तो स्कूल प्रबंधन ने ऑनलाइन क्लासेस के नाम पर भी भारी भरकम फीस ली थी. प्रति वर्ष स्कूल फीस व ट्यूशन फीस में बढ़ाेतरी की जा रही है.

 प्रति वर्ष प्राइवेट स्कूलों में बच्चों की फीस बढ़ा दी जाती है: भोला

लातेहार के मेन रोड निवासी भोला प्रसाद सुरभी ने कहा कि उनकी इतनी हैसियत नहीं कि वे अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों मे पढ़ा सकें. इस कारण उनके बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं. लेकिन उनके पड़ोस के कई बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं. उनके अभिभावको से बातचीत होती है. उनका कहना है कि प्रति वर्ष प्राइवेट स्कूलों में बच्चों की फीस बढ़ा दी जाती है. अगर बच्चा पांचवी से छठी में जाता है तो रिएडमिशन के लिए भी काफी पैसा लगता है. एक कक्षा की किताबों में आठ से दस हजार रुपए तक लगते हैं. वे महंगाई के दौर में फीस को लेकर परेशान रहते हैं. किसी तरह फीस भरते रहते हैं.

प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना अब काफी कठिन: सतीश कुमार

थाना चौक के सतीश कुमार ने कहा कि आज बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाना काफी मुश्किल हो गया है. एक तो प्रति वर्ष फीस बढ़ा दी जाती है. दूसरी ओर प्रति वर्ष किताबें भी बदल दी जाती हैं. ऐसे में परेशानी हो जाती है. खासकर उनके घरों में जहां बच्चे एक-दूसरे के नीचे की क्लास में पढ़ते हों. अगर किताबें नहीं बदली जाती तो उन किताबों को कोई दूसरा पढ़ सकता है. लेकिन यह सुविधा भी नहीं मिल पाती है. उन्हें स्कूल की बात माननी पड़ती है. चाहे फीस कितने भी हों, उन्हें समय पर जमा करनी पड़ती है. जमा नहीं करने पर फाइन भी लगती है.

शिक्षा को पैसे से जोड़ दिया, इसलिए महंगी हो गयी है : प्रदीप

धनबाद निवासी प्रदीप कुमार झा ने कहा कि बेटा किड्स गार्डन स्कूल में पढ़ता है. जब नाम लिखवाया था तो काफी प्रसन्न था. सोचा कि बच्चे को अच्छी शिक्षा मिलेगी. लेकिन जब फीस का पता चला तो स्थिति सोचनीय हो गयी. यह सही है कि स्कूल प्रबंधन मनमाने तरीके से प्रत्येक वर्ष ट्यूशन फीस बढ़ा देता. हर जगह की यही स्थिति है. अभिभावकों के पास कोई विकल्प नहीं होता है. हर जगह उन्हें इन्हीं सब चीजों से सामना करना होता है. वहीं हर साल किताबें भी बदल दी जाती हैं. जबकि पहले ऐसा नहीं होता था. पूछने पर बताया जाता है कि इससे बच्चों को लाभ होगा. जबकि वे खर्चे के बारे में नहीं सोचते हैं. इतना ही नहीं, एक-दो साल बीच कर ड्रेस भी बदल दी जाती है. इससे अभिभावकों का खर्चा बढ़ जाता है. अभिभावकों पर अनुचित आर्थिक दबाव पड़ता है. प्राइवेट स्कूलों ने शिक्षा को पैसे से जोड़ दिया है. ऐसा महसूस होता है कि गरीबों के लिए शिक्षा है ही नहीं.

फीस वृद्धि को लेकर नियम बनाया जाना चाहिए : ऋषिकांत यादव

ऋषिकांत यादव का बेटा डीएवी स्कूल कोयलानगर में पढ़ता है. वे भी फीस को लेकर परेशान हैं. ऋषिकांत बताते हैं कि सरकार या जिला प्रशासन को फीस वृद्धि का नियम तय करना चाहिए. जब नियम बनेगा तो व्यवस्था के संचालन में आसानी होगी. सभी नियम का पालन करेंगे. इसके तहत फीस बढ़ाएंगे. इस पर दृढ़ता के साथ अमल भी होना चाहिए. जिला प्रशासन दिखावे के लिए जिला शुल्क समिति का गठन तो कर देता है, लेकिन इससे आगे कुछ नहीं करता है. वहीं स्कूल का मनमानी चलता रहता है. कोई इसे सुननेवाला नहीं होता है. इसका खामियाजा अभिभावकों को भुगतना पड़ता है. प्रत्येक वर्ष एडमिशन फीस समेत अन्य शुल्क में मनमाना वृद्धि की जाती है. इसके अलावा निजी पब्लिकेशन की किताबें खरीदने को बाध्य किया जाता है. इसे लेकर अधिका सवाल भी नहीं किया जा सकता है. इसका स्कूल के पहले से ही जवाब रहता है. कुल मिलाकर देखा जाय तो किसी को फायदा नहीं है.

अब स्कूलों की मनमानी सहना अभिभावकों की मजबूरी : दीपक

दीपक कुमार का बेटा माउंट ब्रेसिया स्कूल में पढ़ता है. वे बताते हैं कि निजी स्कूल सरकार की भी बात नहीं मानते हैं. इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है. जबकि सरकार को इस पर गंभीरतापूर्वक कार्रवाई करनी चाहिए. लेकिन ऐसा होता नहीं है. अभिभावकों के पास रोने के अलावा कोई रास्ता नहीं होता है. जो स्कूल कहता है उसे मानना पड़ता है. कोरोना काल में सरकार ने ट्यूशन फीस के अलावा बाकी सभी फीस लेने पर पाबंदी लगा दी थी. इसके बावजूद स्कूलों ने मनमाने तरीके से सभी प्रकार की फीस अभिभावकों से वसूली. कई अभिभावकों ने जिला शिक्षा विभाग से लेकर राज्य सरकार तक शिकायत की, लेकिन कोई हल नहीं निकला. निजी स्कूलों की मनमानी सहना अभिभावकों की मजबूरी बनती जा रही है. वे चाहकर भी इससे छूट नहीं सकते हैं. उनके पास स्कूल छोड़ने का विकल्प तो रहता है, लेकिन बीच में कहीं जाने पर वहां भी एडमिशन फीस और मंथली फीस भी देनी पड़ जाती है. जो अधिक है.

एक्टिविटीज के नाम पर काफी पैसे लिये जाते हैं : निमाय महतो

निमाय महतो का बेटा धनबाद पब्लिक स्कूल में पढ़ता है. वे बताते हैं कि निजी स्कूलों ने जिस प्रकार लगातार फीस में वृद्धि की जाती है वह उचित नहीं है. वर्तमान में एक बच्चे की फीस दो से तीन हज़ार रुपए से ऊपर हो गई है. इसे पूरा करने के बाद बस की फीस लगती है. वह भी एक से डेढ़ हजार तक होती है. प्रतिमाह स्कूल एक्टिविटीज के नाम पर भी 500 से 1000 रुपया खर्च हो जाता है. किताब-कॉपी से लेकर स्कूल आने-जाने का खर्च मिलाकर प्रति बच्चा 5 से 6 हज़ार रुपए का खर्च आता है. यह तो एक बच्चे का हिसाब है. वहीं जिसके दो-तीन बच्चे हैं, उनका बजट तो और बढ़ जाता है. उन्हें पढ़ाने में आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है. लेकिन इस पर सुनवाई नहीं होती है. जो सुननेवाले हैं, वे इस पर ध्यान नहीं देते हैं. इसके लिए अधिकारियों को सजग रहना चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं है. अधिकारी मौन रहते हैं. अभिभावकों भी एकजुट नहीं रहते हैं. वे भी स्कूल की बात मानने को विवश रहते हैं. वास्तविकता यही है.

हजारीबाग : फीस पर सरकार को गंभीरता बरतने की जरूरत : कृष्णा पंडित

प्राइवेट स्कूलों के बढ़े फीस से हजारीबाग के अभिभावक भी परेशान हैं. वे भी इसका समाधान चाहते हैं. न्यू महेंद्र कॉलोनी निवासी कृष्णा पंडित कहते हैं कि प्राइवेट स्कूलों की फीस पर सरकार को गंभीरता बरतने की जरूरत है. एलकेजी में नामांकन फीस के नाम पर प्राइवेट स्कूल काफी पैसे लेते हैं. वह फीस बहुत अधिक होती है. साथ ही स्कूल के द्वारा बताए दुकान से ही यूनिफॉर्म और पुस्तकें लेने की बाध्यता भी है. दूसरी जगह से खरीदा नहीं जा सकता है. वहीं दूसरी जगह से खरीदने पर मान्य भी नहीं होता है. यह एक गंभीर समस्या है. यह बाध्यता खत्म होनी चाहिए. यह सही है कि स्कूल को संचालित करने के लिए पैसे की जरूरत होती है, लेकिन यह जरूरत तक ही सीमित नहीं है. अब यह व्यावसायिक रूप ले चुका है. इस वजह से अभिभावकों के लिए बढ़ी फीस समस्या बनती जा रही है. इस पर सरकार के साथ स्थानीय प्रशासन को भी संज्ञान लेने की जरूरत है.

मध्यमवर्गीय परिवार के लिए सरकारी स्कूल ही अच्छा : सरोज

सिंदूर निवासी सरोज देवी कहती हैं कि मध्यमवर्गीय परिवार के लिए सरकारी स्कूल ही अच्छा है. प्राइवेट स्कूलों की भारी-भरकम फीस भरना सबके लिए आसान नहीं है. ऊपर से स्कूल से ही किताब और यूनिफॉर्म खरीदने का फरमान होता है. जब खरीदने जाओ तो उसके दाम होश उड़ानेवाले होते हैं. इतनी महंगी होती है कि पूरा घर का बजट ही गड़बड़ा जाता है. प्राइवेट स्कूल के मनमानेपन पर रोक लगाई जानी चाहिए. आखिर हमारी आमदनी सीमित होती है. स्कूल फीस की तरह हर साल हमारी आय में बढ़ोतरी नहीं होती है. इसलिए हमलोगों के लिए इस खर्च को वहन करना काफी कठिन होता है. इसके लिए सरकार को अथॉरिटी बनाने की जरूरत है. हर वर्ग के लिए कम से कम नामांकन फीस तय होनी चाहिए. जब फीस तय होंगे तब किसी को दिक्कत नहीं होगी. सभी पर एक समान नियम लागू होगा. इससे प्राइवेट स्कूल नामांकन के नाम पर अनाप-शनाप फीस नहीं ले पाएंगे.

कोडरमा : एडमिशन के नाम पर काफी पैसा वसूला जाता हैः अमरदीप रॉय

अमरदीप रॉय का कहना है कि कहने को तो स्कूल को शिक्षा का मंदिर कहा जाता है. यही सोचकर सभी वहां बच्चे का एडमिशन कराते हैं. लेकिन जब एडमिशन हो जाता है तब कई बातें सामने आती हैं. उन्होंने कहा कि दरअसल स्कूल में एडमिशन के नाम पर काफी पैसा वसूला जाता है. कभी नये ड्रेस के नाम पर पैसे लिये जाते हैं तो कभी किसी और नाम पर लिये जाते हैं. पेरेंट्स भी बच्चों के भविष्य के लिए कुछ भी बिना बोले पैसे दे देते हैं. उनके पास कोई विकल्प नहीं होता है. वे चाहकर भी स्कूल नहीं बदल सकते हैं. जहां जाएंगे वहां पर उन्हें इसी तरह के प्रबंधन से सामना होगा. ऐसे में वे फीस जमाकर अपनी जान छुड़ाना ही बेहतर समझते हैं. होता भी यही है. हर जगह यही स्थिति होती है. सरकार को इसमें सुधार करना चाहिए. आखिर सरकार ही जनता की उम्मीद है. सिस्टम बदलना चाहिए. साथ ही सख्ती करनी चाहिए, ताकि फीस बढ़ोतरी पर लगाम लग सके.

स्कूल प्रबंधन को सिर्फ पैसे से मतलब होता हैः सोनू सिंह

फीस को लेकर झुमरीतिलैया के लोग भी परेशान हैं. एडमिशन का मौसम आया नहीं कि वे स्कूल की जानकारी जुटाने में लग गये हैं. सोनू सिंह का कहना है कि स्कूल वाले कभी नहीं सोचते हैं कि पेरेंट्स कितने मुश्किल से पैसे जुटा रहे हैं. उनके पास सिर्फ एक फीस का ही खर्च नहीं होता है. कई तरह के खर्चे होते हैं. कोरोना के बाद तो हालात बिगड़े ही हैं. कई लोगों की नौकरी चली गयी तो कई लोगों का कारोबार बैठ गया. जब इससे निकले तो अब बच्चों को पढ़ाई के लिए स्कूल से संघर्ष कर रहे हैं. सोनू ने कहा कि स्कूल को हर बार फीस बढ़ाने से पहले दो बार सोचना चाहिए कि इस महंगाई के दौर में कितना मुश्किल है पैसे जुटाना. स्कूल इस पर ध्यान दे तो समाधान हो सकता है. स्कूल को सिर्फ पैसे से मतलब है. पढ़ाई के नाम पर सिर्फ प्रोजेक्ट दिया जाता है. उसके बाद अभिभावक उसे पूरा करने में सामान खरीदने में लगे रहते हैं. ऐसे कई खर्चे हैं, जो अभिभावकों को जुटाना पड़ता है.

हर साल फीस बढ़ाने से हमें काफी परेशानी होती है : पार्वती देवी

कटकमदाग निवासी पार्वती देवी कहती हैं कि प्राइवेट स्कूल में बच्चों के नामांकन के नाम पर हर साल फीस बढ़ा दी जाती है. एडमिशन का मौसम आते ही सभी स्कूलों में नामांकन के लिए खींचातानी होने लगी है. सभी अपने-अपने स्कूलों को ब्रांडेड बताने में लगे हैं. सभी अपने स्कूल को बेहतर बताकर तरह-तरह की सुविधा की बात करते हैं. लोग इसके जाल में फंस जाते हैं. एक बार एडमिशन होने के बाद फिर फीस का खेल शुरू हो जाता है. कदम-कदम पर फीस, यूनिफॉर्म और पुस्तकों के नाम पर मोटी रकम वसूली जाने लगती है. कभी एनुअल चार्ज के नाम पर फीस बढ़ा दिया जाता है तो कभी मंथली ट्यूशन के नाम पर फीस बढ़ा दिया जाता है. अभिभावकों इसे समझने में असमर्थ रहते हैं. जब पूछताछ की जाती है तो इस पर उनके ढेरों तर्क होते हैं. ऐसे में अभिभावक फीस देकर जान छुड़ाना ही बेहतर समझते हैं. इस पर सरकार और प्रशासन को संज्ञान लेना चाहिए.

अच्छे स्कूल में पढ़ाना बहुत मुश्किल हो गया हैः बबलू पांडेय

कोडरमा के बबलू पांडेय ने बताया कि वैसे ही इतनी महंगाई बढ़ गई है. उस पर बच्चों की बढ़ी हुई फीस है. जो हालात हैं, उसमें अब अच्छे स्कूल में पढ़ाना बहुत मुश्किल हो गया है. उन्होंने बताया कि किसी भी मिडिल क्लास फैमिली के लिए एक महीने के खर्चे को मैनेज करना बहुत कठिन होता है. यही सच्चाई है. स्कूल प्रबंधन को नोटिस जारी कर देती है. इससे अभिभावकों की परेशानी बढ़ जाती है. नोटिस के बाद वे पैसे जुटाने में लग जाते हैं. जो सक्षम होते हैं, वे तो आसानी से जमा कर देते हैं. लेकिन सभी की स्थिति एक जैसी नहीं होती है. इसके बाद उधार लेकर फीस जमा करते हैं. ऐसी शिक्षा का क्या मतलब है. सरकार समान शिक्षा की बात करती है तो लेकिन उससे आगे कुछ नहीं करती है. जबकि अधिकारियों को सबकुछ पता है. उनके बच्चे भी तो प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं. इसलिए सरकार हो या प्रिंसिपल या किसी सब्जेक्ट का टीचर हो, सभी को इस मामले में सोचना जरूरी है.

फीस मामले में प्राइवेट स्कूलों पर कार्रवाई होनी चाहिए : संजय

शिवपुरी निवासी संजय उपाध्याय कहते हैं कि प्राइवेट स्कूलों की मनमानी बढ़ती जा रही है. शुरुआत में फीस को लेकर ये नरम रहते हैं. बाद में उनकी मांगें बढ़ने लगती है. फीस में इतने तरह के चार्ज जोड़ दिये जाते हैं, जिसे समझना काफी मुश्किल होता है. कहने को एक बार एडमिशन फीस लिया जाता है. लेकिन यह बंद नहीं होता है. जब दूसरा साल आता है तब रिए़डमिशन लिया जाता है. उसमें भी कई तरह के चार्ज जोड़ दिये जाते हैं. यह समझ से परे होता है. कहा जाता है कि स्कूल में नये साल में कई तरह के बदलाव किये गये हैं. उस वजह से बढ़ा है. जबकि बढ़ी फीस की कहीं सुनवाई नहीं होती है. जबकि एडमिशन चार्ज एक बार ही होना चाहिए. बार-बार फीस बढ़ाने से मध्यमवर्गीय परिवार पर बोझ बढ़ता है. उनके घर का बजट प्रभावित होता है. सरकार को फीस निर्धारित करना चाहिए, ताकि बेहतर तरीके से अभिभावक अपने बच्चों को अच्छे विद्यालयों में शिक्षा दिला सकें.

यूनिफॉर्म और किताबों में बरती जानी चाहिए रियायत : उमेश

सदर प्रखंड स्थित चंदवार निवासी उमेश पांडेय कहते हैं कि बच्चों की फीस, यूनिफॉर्म और किताबों में रियायत होनी चाहिए. यह तीनों ही काफी महंगे होते हैं. कहने को तो तीन चीजें हैं, लेकिन जब इसका पूरा हिसाब लगाएंगे तो यह हजारों में होगा. फीस का असर सीधा घर के बजट पर पड़ता है. एक तरफ महंगाई से हमलोग पहले से ही परेशान हैं. दूसरी तरफ स्कूल का फीस. दरअसल इतने अधिक पैसे प्राइवेट स्कूल वाले ले लेते हैं कि घर चलाना मुश्किल हो जाता है. हमारे घर में तीन बच्चे हैं. सभी प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं. तीनों को मिलाकर हर महीना काफी खर्च होता है. भारी-भरकम फीस की वजह से प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाना समस्या बन गई है. स्कूलों में फीस संतुलित होना चाहिए, ताकि बच्चे भी पढ़ सकें. इस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए. अगर सरकार इस पर काम करेगी तो स्कूल अपने हिसाब से फीस नहीं बढ़ा पाएंगे. अभिभावकों की आधी परेशानी दूर हो जाएगी.

जिला प्रशासन को सख्त व कारगर कदम उठाना चाहिए: नवीन सुधांशु

झुमरीतिलैया निवासी नवीन सुधांशु ने बताया कि जब सरकार और जिला प्रशासन सख्त व कारगर कदम उठाये तो सारी समस्या का समाधान हो सकता है. सरकार की ओर से नियम बनाये जाते हैं, लेकिन उसे सख्ती से लागू नहीं किया जाता है. ऐसा नहीं होना चाहिए. वहीं जब दूसरे मामले में नियम बनाए जाते हैं तो उसे सख्ती से लागू करती है. इसलिए सरकार को स्कूल फीस मामले को देखना चाहिए. इस कारण स्कूल अपनी मनमानी करते रहते हैं.समस्या सिर्फ फीस को लेकर ही नहीं होती है. जब किताब और ड्रेस की बात आती है तो उसे भी बताए जगह से खरीदने को कहा जाता है. दूसरी जगह से खरीदने पर नहीं मानते हैं. अभिभावकों के पास कोई रास्ता नहीं होता है. इसलिए वे इसे मान लेना ही बेहतर समझते हैं. कई बार तो स्कूल बीच में भी कुछ किताब बदल देते हैं. यह गंभीर मामला है. इसकी गंभीरता को देखते हुए सरकार को इस पर पहल करनी चाहिए. तभी अभिभावकों को राहत मिलेगी.

फीस से लेकर किताब और ड्रेस में मनमानी की जाती हैः संजय

कोडरमा निवासी संजय बर्णवाल ने बताया कि प्राइवेट स्कूल प्रबंधन फीस से लेकर किताब और ड्रेस में मनमानी करती है. पहले तो फीस के लिए नोटिस जारी करती है. इसे देखकर ही अभिभावक का टेंशन बढ़ जाता है. यह पूरा भी नहीं हुआ कि फिर किताब खरीदने का नोटिस आ जाता है. दुकान जाने पर इसकी कीमत का पता चलता है. एक छोटी पुस्तक की कीमत भी सौ रुपए से कम नहीं होती है. वहीं जब पूरी किताब खरीदी जाती है तब इसकी कीमत हजार पार होती है. उस वक्त अभिभावकों के माथे पर बल पड़ जाते हैं. इसलिए इसके लिए एनसीईआरटी की किताबें ठीक हैं. इसे ही लागू कर देनी चाहिए. चाहे कोई स्कूल किसी भी बोर्ड से संबद्ध क्यों न हो. इससे फायदा यह होगा कि हर जगह किताबें उपलब्ध होंगी. किताबें किफायती दरों पर उपलब्ध होंगी. इससे अभिभावकों को महंगी और हर साल नयी-नयी किताबें खरीदने का बोझ नहीं झेलना पड़ेगा. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए.

गिरिडीह : फीस बढ़ी तो उनकी परेशानी भी बढ़ गयी, लेकिन देना ही होगा: अविनाश स्वर्णकार

सिरसिया निवासी अविनाश स्वर्णकार स्कूल फीस को लेकर परेशान हैं. जब उन्होंने एडमिशन कराया था तो उन्हें काफी खुशी हुई थी. बाद में फीस बढ़ी तो उनकी परेशानी भी बढ़ गयी. अविनाश ने कहा कि प्राइवेट स्कूलों में नामांकन फीस के नाम पर अभिभावकों से ज्यादा फीस ली जा रही है. एडमिशन के समय ये कुछ बातें कहते हैं. वही बाद में कुछ और कहते हैं. उन्हें समझना काफी कठिन होता है. शुरू में तो ये ठीक रहते हैं, लेकिन बाद में इनकी बातें बदलती रहती हैं. ये एनुअल चार्ज के नाम पर फीस बढ़ा देते हैं. जब इससे पूरा नहीं होता है तब मंथली चार्ज लिया जाता है. जब इतना से पूरा नहीं होता है तब अन्य में जोड़ दिया जाता है. सभी को जोड़कर फीस हजारों में हो जाता है. इसलिए नामांकन में ज्यादा फीस लिया जाना गलत है. अभिभावकों को इन स्कूलों के खिलाफ एकजुट होकर खड़ा होना चाहिए. साथ ही इस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए.

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