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चीनी कंपनियों ने दवाइयों के कच्चे माल के दाम 20% तक बढ़ाए ; इंदौर के फार्मा सेक्टर पर असर, अब बढ़े हुए दामों पर हो रही बुकिंग

भारत और चीन के बीच चल रहे सीमा विवाद का असर व्यापारिक संबंधों पर भी दिखना शुरू हो गया है। चीन की कंपनियों ने दवाओं के लिए आने वाले कच्चे माल के दाम में 15 से 20 फीसदी तक बढ़ोतरी कर दी है। कंपनियां अब बढ़े हुए दामों पर ही बुकिंग कर रही हैं। अकेले इंदौर और पीथमपुर में हर साल औसत 5 हजार करोड़ का दवाइयों का कच्चा माल आता है और यहां से हर साल आठ से नौ हजार करोड़ की दवाइयां निर्यात की जाती हैं।

बेसिक मैन्युफैक्चरिंग ड्रग्स एसोसिएशन के महासचिव जेपी मूलचंदानी बताते हैं, जिन दवाइयों का कच्चा माल पहले 45 हजार रुपए किलो था, वह अब 55 हजार रुपए किलो हो गया है।


एजीथ्रोमाइसिन का कच्चा माल पहले सात हजार रुपए किलो में बुक होता था, उसका रेट 11 हजार रुपए कर दिया है। 

16 हजार करोड़ के पैकेज से उम्मीद
मूलचंदानी के अनुसार, दवाओं का 65 फीसदी कच्चा माल चीन से आता है, लेकिन वहां बनी दवाओं की अन्य देशों में मांग नहीं है, इसलिए यह माल हमारे यहां आता है और फिर यहां से दवाएं निर्यात होती हैं। आत्मनिर्भर भारत के तहत केंद्र ने दवा उद्योग को 16 हजार करोड़़ का पैकेज दिया है, इससे कच्चे माल के उत्पादन की शुरुआत हो सकती है। 


मशीनरी व घरेलू सामग्री में चीन से बड़ा आयात
चीन और इंदौर के बीच मशीनरी का बड़ा कारोबार है। औद्योगिक क्षेत्रों में ज्यादातर मशीनें चीन की बनी हुई लगी हैं। फर्नीचर, खिलौने, लोहे की बनी सामग्री में भी चीन से काफी माल आता है। इलेक्ट्रॉनिक्स,  ई रिक्शा, पटाखे का 2 हजार करोड़ का कारोबार चीन के साथ होता है। एसोसिएशन ऑफ इंडस्ट्रीज मप्र के उपाध्यक्ष योगेश मेहता के मुताबिक, अब यहीं अधिक से अधिक माल बनाने की योजना पर काम शुरू किया है।

एचसीक्यू का 80% इंटरमिजिएट चीन से, 14 से 70 हजार रुपए प्रति किलो कर दिया था भाव
हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) का राॅ मटेरियल देश में तीन कंपनियां ही बनाती हैं, जिसमें एक है इप्का लेबोरेटरी। इसकी एक शाखा इंदौर तो दूसरी रतलाम में है। गुजरात में यह काम वाइटल करती है। इस राॅमटेरियल को बनाने का इंटरमिजिएट चीन से आता है। हमारी निर्भरता उस पर 80% है जब इसकी डिमांड बढ़ी तो रॉ मटेरियल के रेट 14 हजार रुपए किलो से धीरे-धीरे 25 हजार और फिर 70 हजार रुपए किलो तक हो गए। हालांकि दामों के नियंत्रण के लिए डीपीसीओ (ड्रग प्राइस कंट्रोल अथॉरिटी) है, लेकिन वह सिर्फ देश में ही रेट तय करता है, एक्सपोर्ट के लिए नहीं। 31 मार्च को केंद्र ने निर्यात पर रोक लगा दी। हालांकि अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते 25 दिन बाद ही प्रतिबंध हटाना पड़ा।