भारत की अपेक्षा है कि समझौता होने पर भारतीय नागरिकों के लिए ब्रिटेन जाना आसान हो जाएगा। लेकिन ब्रिटेन ने साफ कर दिया है कि उसका ऐसी सुविधा देने का कोई इरादा नहीं है।ब्रिटेन ने भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते को लेकर अब जो अपना रुख जाहिर किया है, उसके बाद उचित ही भारत में यह सवाल उठाया गया है कि आखिर ऐसा समझौता होना ही क्यों चाहिए? ब्रिटेन के रुख से साफ है कि इस समझौते के जरिए वह सिर्फ अपने उत्पादों के लिए भारतीय बाजार में पहुंच को आसान बनाना चाहता है। जबकि भारत की अपेक्षा यह रही है कि यह समझौता होने पर शिक्षा या रोजगार के लिए भारतीय नागरिकों का ब्रिटेन जाना आसान हो जाएगा। लेकिन एक इंटरव्यू में ब्रिटेन की अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्री केमीं बेडेनोच ने साफ कर दिया कि ब्रिटेन का भारत को ऐसी सुविधा देने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि ब्रिटेन इसीलिए यूरोपियन यूनियन से अलग हुआ, क्योंकि वह लोगों का खुलेआम आना-जाना रोकना चाहता था। इसलिए अब यह सुविधा भारत को नहीं दी जा सकती। उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि ऑस्ट्रेलिया के साथ मुक्त व्यापार समझौते में शामिल ऐसे प्रावधान को भारत के साथ करार में मॉडल नहीं बनाया जा सकता।बेडेनोच पिछले महीने भारत आई थीं और यहां मुक्त व्यापार समझौते को लेकर उनकी वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल से बातचीत हुई थी। साफ है कि उस बातचीत में बात आगे ना बढऩे के बाद लंदन लौटने पर उन्होंने एक अखबार को इंटरव्यू देकर ब्रिटेन के रुख को सार्वजनिक कर दिया। तो अब प्रश्न यह है कि अगर ब्रिटेन इस बिंदु पर रियायत करने को तैयार नहीं है, तो फिर उससे मुक्त व्यापार समझौता होना ही क्यों चाहिए? ब्रिटेन से पिछले साल उससे 17.5 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था। यानी वह भारत का एक मध्यम दर्जे का ट्रेड पार्टनर है। इसलिए उसे आयात शुल्क में सुविधा देकर भारत को ज्यादा कुछ हासिल नहीं होगा। ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने पिछले वर्ष दिवाली तक मुक्त व्यापार समझौता करने का लक्ष्य जताया था। वह समयसीमा पहले ही निकल चुकी है। स्पष्टत: ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि ऐसे समझौते में दोनों देशों के हितों का मेल नहीं हो पा रहा है। हालांकि बेडेनोच ने कहा है कि इस वर्ष यह समझौता हो जाएगा, लेकिन भारत के पास क्या अब ऐसी आशा रखने का कोई कारण बचा है?
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