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‘लिफाफा’ का ‘राज’ खोले बिना चले गए राज्यपाल रमेश

Kaushal Anand
Ranchi : छत्तीसगढ़ निवासी रमेश बैस की नियुक्ति 7 जुलाई 2021 में बतौर राज्यपाल झारखंड के रूप में नियुक्ति हुई. एक साल, सात महीने और 12 दिन के अपने कार्यकाल में राज्यपाल रमेश बैस कई विषयों के लिए जाने जाएंगे. बतौर राज्यपाल के रूप में नियुक्त होने के बाद राज्य के सीएम हेमंत सोरेन के साथ उनके संबंध शुरू में काफी अच्छे रहे. कई मौके पर राज्यपाल रमेश बैस और सीएम हेमंत सोरेन एक साथ एक गाड़ी में सवार होकर आते-जाते रहे. मगर अचानक दोनों के संबंध खराब हो गए. संबंध इतने खराब हुए कि राज्यपाल रमेश बैस 15 नवंबर को स्थापना दिवस समारोह में मुख्य अतिथि बनाए जाने के बाद भी कार्यक्रम में नहीं गए. जिसके बाद सरकार पर कई तरह के आरोप लगे. कहा गया कि सरकार द्वारा जरूरी प्रोटोकॉल फ्लो नहीं किया गया. इतना ही नहीं राज्यपाल पर सीधे तौर पर राज्य सरकार को अस्थिर करने का भी आरोप लगा. सीएम सीधे तौर पर कई बार राज्यपाल को निशाने पर लिया. इतना नहीं राज्यपाल रमेश बैस ने भी कई तरह के ऐसे बयान दिए, जिससे झारखंड की सिसायत में विवाद पैदा हुआ. राज्यपाल रमेश बैस झारखंड सरकार 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति सहित कई विधेयक को वापस करने के लिए भी याद किए जाएंगे.

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ऐसे शुरू हुई सरकार से तल्खी

-10 फरवरी 2022 को पूर्व सीएम रघुवर दास ने प्रेस वार्ता करके सीएम हेमंत सोरेन पर अनगड़ा पत्थर खनन लीज मामले पर गंभीर आरोप लगाए. इसके बाद भाजपा नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल से मिला. हेमंत सोरेन को जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 की धारा 9 (ए) के तहत विधायक पद से अयोग्य ठहराने और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू करने की मांग की.
– इसके बाद राज्यपाल ने इसपर त्वरित कारवाई शुरू करते हुए इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया से मंतव्य मांगा. आयोग ने परामर्श देने से पहले सीएम और भाजपा नेताओं को अपना-अपना पक्ष रखने के लिए नोटिस दिया. 27 अप्रैल को दिल्ली में पीएम और गृह मंत्री से राज्यपाल मिले. इसके बाद अचानक राज्य की राजनीति गर्म हो गयी. 28 जून को आयोग ने सुनवाई शुरू की और 12 अगस्त तक चार तारिखों में बहस पूरी हो गयी. आयोग ने अपना मंतव्य देने से पहले 18 अगस्त तक दोनों पक्षों से लिखित जवाब मांगा.
-फिर अचानक यह खबर आयी कि आयोग का मंतव्य राजभवन को प्राप्त हो गया. अफवाहों और सूत्रों का बाजार गर्म हो गया. सभी मीडिया ने अपने-अपने स्तर से विभिन्न तरह की खबरें प्रचारित की. किसी ने कहा कि सीएम को 7 साल के लिए, किसी ने कहा 2 साल के लिए. अब कभी भी सीएम इस्तीफा दे सकते हैं. यहां तक कि सीएम के उत्तराधिकारी को लेकर भी कई तरह के नाम आने शुरू हो गए.
-विधायकों को एयरलिफ्ट करने भी काम शुरू हो गया. सीएम ने दो-दो बार एक बार खूंटी और दूसरी बार छत्तीसगढ़ ले जाया गया. आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया.

जब सीएम और झामुमो के सीधे निशाने पर आए राज्यपाल

राजनीतिक अस्थिरता का दौर इतना बढ़ गया कि सीएम हेमंत सोरेन और झामुमो के निशाने पर सीधे राज्यपाल आ गए. यूपीए के प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल से मिले और मांग की गयी कि अगर आयोग का जो भी मंतव्य आया है, उसे राजभवन क्लीयर करे, क्योंकि राज्य में राजनीतिक अस्थिरता का महौल बन गया है. सीएम हेमंत सोरेन ने भी राजभवन से मांग किया कि अब मामले का पटाक्षेप हो जाना चाहिए.

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जानें सीएम का राज्यपाल को लेकर दिए गए महत्वपूर्ण बयान

-राज्यपाल राज्य में राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर रहे हैं.
-राज्यपाल संवैधानिक पद पर नियुक्त हैं या फिर यहां की राजनीति समझने आएं हैं, वही बता सकते हैं.
-खतियान आधारित स्थानीय नीति लौटाने पर कहा-यह दिल्ली-अंडमान नहीं है, झारखंड है. यहां कि चुनी हुई सरकार जो चाहेगी वही होगा. राज्यपाल बताएं कि कौन सी राज्य में वहां के स्थानीय लोगों के लिए नीति नहीं बनी है.
-झामुमो ने कहा-राज्यपाल राज्य सरकार को परेशान कर रहे हैं, राज्यपाल के जवाब का इंतजार करेंगे.
-राज्यपाल को नहीं सुहाते सीएम, दिल्ली जैसा हाल कर रहे हैं .
-गैर भाजपा शासित राज्यों की सरकारों को भाजपा राज्यपाल के जरिए परेशान कर रही रही है.
-राज्यपाल का लिफाफा को लेकर एटम बम गिरने का बयान पर सीएम ने कहा- राज्यपाल को मर्यादित बयान देना चाहिए, क्योंकि वह एक संवैधानिक पद पर बैठे हैं.
– ईडी का सम्मन जारी होने पर सीएम ने कहा- इसमें राज्यपाल की भागीदारी है.
– भाजपा राज्य सरकार को गिराना चाहती है और इसे राज्यपाल का संरक्षण प्राप्त है.

राज्यपाल का सरकार को लेकर दिए गए महत्वपूर्ण बयान

-सरकार द्वारा चुनाव आयोग के मंतव्य को सार्वजनिक करने की मांग पर पत्रकारों के एक सवाल के जवाब में कहा-‘चिठ्ठी चिपक गया, खुल ही नहीं रहा है’. इसके पहले कहा था कि दो से तीन दिनों में सार्वजनिक कर दिया जाएगा.
-27 अक्तूबर को राज्यपाल ने रायपुर में कहा-‘राज्य में कभी भी एकाद एटम बम फट सकता है’.
-सीएम के आरोप पर राज्यपाल ने कहा- यदि मुझे सरकार गिरानी होती तो यह मैं पहले ही कर चुका होता. मैंने संवैधानिक प्रावधानों के तहत चुनाव आयोग से मंतव्य मांगा है.
-सरकार के लग रहे आरोप और यूपीए की मांग पर राज्यपाल ने कहा कि हमने दूसरी बार संवैधानिक प्रावधानों के तहत मंतव्य मांगा है.
-इस बीच राज्यपाल एवं सरकार के बीच तल्खी इतनी बढ़ी कि राज्यपाल 15 नवंबर को स्थापना दिवस समारोह में मुख्य अतिथि बनाए जाने के बाद भी वे कार्यक्रम में नहीं गए.

इन विधेयकों को राज्यपाल ने वापस किया

-1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति विधेयक को वापस कर दिया. इसे वापस करने के के बाद राज्यपाल रमेश बैस सीधे तौर पर सीएम के निशाने पर आ गए. सीएम ने कई बयान राज्यपाल को लेकर दिया.
-भीड़ हिंसा (मॉब लिंचिंग) निवारण विधेयक. इसे दोबारा अभी तक विधानसभा से पारित नहीं किया गया.
-पंडित रघुनाथ मुर्मू जनजातीय विश्वविद्यालय विधेयक को लौटाया गया. इसके बाद इसे पुन: विधानसभा से पारित करके राजभवन भेजा गया. दूसरी बार में राज्यपाल ने मंजूरी प्रदान की.
-झारखंड राज्य कृषि उपज और पशुधन विपणन को वापस किया. सरकार ने दोबारा इसे भेजा, इसके बाद राज्यपाल ने मंजूरी प्रदान की. मगर कुछ शर्तों और सुझावों के साथ.
-कोर्ट फीस (झारखंड संसोधन) विधेयक को लौटाया और पुनर्विचार करने का निर्देश दिया. दोबारा भेजने के बाद राज्यपाल ने इसकी मंजूरी प्रदान की.
-कराधान अधिनियम बकाया राशि समाधान विधेयक को वापस किया. सरकार ने इसे दोबारा पारित करके भेजा. दूसरी बार राज्यपाल ने इसे मंजूरी प्रदान की.
-वित्त विधेयक 2022 को राज्यपाल ने दूसरी बार वापस कर दिया. राज्यपाल ने इसमें जरूरी सुझाव देते हुए फिर से समीक्षा करने का निर्देश दिया.

अब नए राज्यपाल की भूमिका पर टिकी होगी हेमंत सरकार का भविष्य

झारखंड में अब नए राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन की नियुक्ति हो गयी है. अब नए राज्यपाल की भूमिका पर सूबे की सरकार और राजनीति टिकी होगी. क्योंकि रमेश बैस ने जहां अब तक चुनाव आयोग के मंतव्य का राज नहीं खोला है. वहीं राज्य की सबसे बड़ी नीति 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति को वापस कर दिया है. इन दोनों मसलों को लेकर राजभवन और सरकार के बीच तलवारें खींची रहेंगी. राधाकृष्णन कोयंबटूर से दो बार सांसद रहे हैं. इनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि भाजपा और आरएसएस से जुड़ी रही है. सीपी राधाकृष्णन ने 2004 के चुनाव के लिए अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के साथ संबंध बनाने के लिए राज्य इकाई के साथ काम किया. वे दक्षिण और तमिलनाडु में भाजपा के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से हैं.

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